योगी जी, सब्जी और दूधवालों को भी एक नजर देख लीजिए...
योगी सरकार ने मीट विक्रेताओं को गाइडलाइन्स तो जारी कर दीं लेकिन इन नियमों ने कई सवाल और खड़े कर दिए हैं. सारे नियम और कायदे केवल मीट विक्रेताओं के लिए ही क्यों होने चाहिए, सब्जी और दूध बेचने वालों के लिए क्यों नहीं?
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उत्तर प्रदेश में मीट कारोबारियों के लिए सीएम योगी आदित्यनाथ ने कई नए नियम जारी किए हैं. देखा जाए तो ये गाइडलाइन्स कोई नई नहीं बल्कि पुरानी ही हैं जिन्हें दोबारा जारी किया गया है. लेकिन इन नियमों के बारे में कहा जा रहा है कि इन्हें पढ़कर शायद मीट विक्रेताओं के हौसले पस्त हो जाएं और वो कोई और धंधा कर लें. मीट कारोबारियों का कहना है कि इतनी सख्ती में मीट बेचना बहुत मुश्किल होगा.
पहले नजर डाल लेते हैं इन नियमों पर
- मीट की दुकानें सब्जी की दुकानों के पास न हों.
- मीट की दुकानें धार्मिक स्थलों की परिधि से 50 मीटर की दूरी पर हो. इसके अलावा धार्मिक स्थलों के मुख्य द्वार से कम से कम 100 मीटर दूर हों.
- मीट की दुकानें शाकाहारी खानपान के नजदीक न हों.
- जानवरों को दुकान के अंदर नहीं काटा जा सकता.
- जानवरों को काटने से पहले और बाद में जांच होनी चाहिए.
- मीट की दुकानों पर काम करने वालों को सरकारी डॉक्टर से हेल्थ सर्टिफिकेट लेना अनिवार्य होगा.
- मीट की क्वॉलिटी पशु डॉक्टर द्वारा प्रमाणित कराई जाए.
- बीमार या प्रेगनेंट जानवरों को न काटें.
- एक घंटे में कम से कम 12 और दिन में 96 पशुओं की एंटी मार्टम जांच हो.
- लाइसेंस के लिए जमीन निजी हो या 99 साल की लीज पर हो.
- बूचड़खानों से निकला खून सीधे नालियों में न जाये और उसके लिए ड्रेनेज सिस्टम हो.
- अवशेष निस्तारण का इंतजाम हो.
- हर छह महीने पर अपनी दुकान की सफेदी करानी होगी.
- जानवरों को काटने वाले हथियार स्टील निर्मित हों.
- कूड़े के निपटारे के लिए समुचित व्यवस्था हो.
- बूचड़खानों से खरीदे जाने वाले मीट का पूरा हिसाब रखा जाए.
- ग्रामीण इलाकों में मीट दुकानदारों को ग्राम पंचायत, सर्किल अफसर और एफएसडीए से लेनी होगी एनओसी.
- शहरी इलाकों में सर्किल ऑफिसर और नगर निगम से अनुमति के बाद चलेगी दुकान फूड सेफ्टी एंड ड्रग्स एडमिनिस्ट्रेशन से भी लेनी होगी अनुमति.
- मीट को इंसुलेटेड फ्रीजर वाली गाड़ियों में ही ढोया जाना चाहिए.
- मीट को जिस फ्रिज में रखा जाए और दरवाजे पारदर्शी हों.
- इन मीट की दुकानों पर गीजर होना अनिवार्य है.
- दुकानों के बाहर पर्दे या गहरे रंग के ग्लास की भी व्यवस्था होनी चाहिए.
- किसी भी मानक का उल्लंघन होते ही लाइसेंस तुरंत रद्द कर दिया जाएगा.
ये तो हुई मीट विक्रेताओं को दी जाने वाली गाइडलाइन्स. लेकिन इन नियमों ने कई सवाल और खड़े कर दिए हैं. क्या सारे नियम और कायदे केवल मीट विक्रेताओं के लिए ही होने चाहिए?
एक सर्वे के मुताबिक भारत के 70% लोग मांसाहारी हैं. फिरभी इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि हर रोज साग-सब्जी और फल की खपत मांसाहार से ज्यादा होती है. ये जरूरी नहीं कि मांसाहारी लोग हर रोज ही मांसाहार लें, कोई भी सिर्फ मांसाहारी नहीं होता. इसलिए शाकाहारी और मांसाहारी भले ही अलग-अलग किस्म के लोग हों लेकिन सब्जियां दोनों ही खाते हैं. तो लोगों की सेहत की परवाह करने वाले योगी जी की सारी चिंता केवल मांसाहारियों के लिए क्यों है. नियम और कायदे केवल मीट विक्रेताओं के लिए ही क्यों हों, सब्जी या दूध बेचने वालों के लिए क्यों नहीं होने चाहिए? जबकि देश में शाकाहारी भोजन की खपत सबसे ज्यादा होती है.
सब्जी वालों के लिए भी क्यों जरूरी हैं नियम
ज्यादातर देखा जाता है कि सब्जियां नदियों के किनारे की जमीन पर उगाई जाती है. नोएडा में देश की सबसे प्रदूषित हिंडन नदी के किनारे भी सब्जियां उगाई जा रही हैं और यहां इसी नदी के प्रदूषित पानी का ही इस्तेमाल किया जाता है. यहां उगाई जा रही सब्जियों की जांच करने पर इनमें ऐसे रासायन पाए गए हैं जिससे गंभीर बीमारियां होने का खतरा है. गंगा नदी के किनारे बसे इलाकों के भूजल में भी आर्सेनिक की मात्रा बहुत ज्यादा है. भूजल में घुला आर्सेनिक और दूसरे केमिकल सिंचाई के पानी के जरिए सब्जियों में पहुंचते हैं और फिर खाने की थाली के जरिए हमारे शरीर में. आर्सेनिक से कैंसर, दिल का दौरा, डायबिटीज, किडनी की बीमारी, बीपी आदि कई गंभीर बीमारियां हो सकती हैं.
सबसे ज्यादा प्रदूषित है हिंडन नदी
फलों और सब्जियों को ताजा और आकर्षक बनाए रखने के लिए कॉपर सल्फेट से रंगा जाता है और ऑक्सीटॉक्सिन नामक हॉर्मोन के इंजक्शन लगाए जाते हैं. और ये भी हमारे शरीर में जहर का ही काम करते हैं. देश में खेती के लिए जगह कम है और जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है. ऐसे में ज्यादा पैदावार बढ़ाने के लिए किसान सब्जियों में केमिकल और कीटनाशक धड़ल्ले से डाल रहे हैं. ये कैमिकल सेहत के लिए खतरनाक हैं.
इसके अलावा सब्जीवाले फल और सब्जियां कहां बेचते हैं ये भी सेहत से जुड़ा मामला है. सब्जी वाले नालों और कूढ़े के पास सब्जियों की रेहड़ी लगाकर सब्जियां बेचते हैं, कोई नाली के बगल में बैठकर सब्जियां बेचता है, क्या वहां बेचे जाने वाले फल और सब्जियां प्रदूषित नहीं होतीं?
सब्जियों को गंदे पानी से ही धोया जाता है
मिलावट करने के लिए दूध सबसे आसान साधन है. पैकेट वाला दूध दूसरा विकल्प है लेकिन ये दूध न ही जैविक होता है और न ही ताज़ा. ये दूध कत्रिम तरीके से बनाया जाता है, इसमें मिलावट होती है. जब जांच की जाती है तब सामने आता है कि बड़े- बडे ब्रांड की दूध कंपनियों के दूध में मिलावट है. कुछ दिन लोग वो दूध नहीं पीते, दूसरी ब्रांड का दूध लेते हैं, लेकिन उन बड़े ब्रांड्स पर कभी कोई कार्रवाई होते नहीं दिखी, उनका कारोबार धड़ल्ले से चलता रहता है.
वहीं गाय और भैंसे ज्यादा दूध दें उसके लिए इंजक्शन लगाकर दूध निकाला जाता है. ये इंजक्शन न तो जानवरों के लिए अच्छे होते हैं और इससे दूध भी प्रभावित होता है. 2012 में FSSAI ने 33 राज्यों में स्टडी की जिसमें दूध में पानी, डिटर्जेंट, फैट, और यूरिया पाया गया.
ये जानकर आश्चर्य होगा कि ग्लोबल फूड सोर्स मॉनीटरिंग कंपनी 'फूड सेंट्री' के अनुसार दुनिया भर में जो देश खाद्य मानकों का सबसे ज्यादा उल्लंघन करता है वो भारत है. FSSAI के मुताबिक देश में जिन राज्यों में फूड फ्रॉड सबसे ज्यादा है, वो उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, केरल और आंध्रप्रदेश हैं. ये सिर्फ आंकड़ा नहीं बल्कि इसकी खतरनाक प्रभावों को आप नकार नहीं सकते. खाने पीने की चीजें, चाहे फल-सब्जियां हों या दूध, हर चीज में जहर घुल चुका है. किसकी बात करें और किसे छोड़ें, हालात ये हैं कि मिलावट करने वालों के लिए ये महज मुनाफा है और उनके लिए कानून का डर खत्म हो गया है, क्योंकि सजा किसी को नहीं मिलती दिखाई देती.
लेकिन इसपर सरकार कितनी सजग है, ये नजर आता है. ऐसे में अगर सरकार सिर्फ बीफ बैन और मीट की बिक्री को लेकर ही अपनी सक्रीयता दिखाएगी तो ये बात गले नहीं उतरती. लिहाजा अगर जनता के स्वास्थ्य और सेहत की परवाह है तो मांसाहारियों और शाकाहारियों दोनों के बारे में सोचें. धर्म और कट्टरता की राजनीति के इतर मिलावट के खिलाफ निर्णायक जंग शुरू की जाए.
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