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Updated: 19 मई, 2020 07:24 PM
नवेद शिकोह
नवेद शिकोह
  @naved.shikoh
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मंस्जिद-मंदिर और गुरुद्वारे सूने है. रोजा इफ्तार पार्टियां और बड़े मंगल (Bada Mangal) के भंडारे नहीं लगे. इससे धर्म खतरे में नहीं पड़ा है बल्कि अपने-अपने धर्म पर आस्था रखने वाले धर्म को प्रयोगात्मक धरातल पर लाने का अवसर मान रहे हैं. मुसीबत के इस दौर में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो अपना धर्म निभा रहे हैं. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ (Lucknow) की गंगा जमुनी तहजीब की तमाम एतिहासिक मिसालें हैं. इसमें बड़े मंगल के भंडारे का इतिहास भी हिंदू-मुस्लिम सौहार्द की एक अटूट मिसाल है. यहां अलीगंज स्थित हनुमान मंदिर में बड़े मंगल के भंडारे की शुरुआत लखनऊ के मुस्लिम बादशाह ने की थी. इससे प्रभावित कई मुसलमान अपने हिंदू भाइयों के साथ हर वर्ष भंडारे का आयोजन करते रहे हैं. इस बार बड़े लॉकडाउन (Lockdown) के कारण लखनऊ में बड़े मंगल पर भंडारे नहीं हुए लेकिन भूखों को खिलाने के जज्बे की मानवता के भंडार देखने को मिले. इंसानित और सौहार्द की टू इन वन भावना ने बजरंगबली के नाम पर भूखों को भोजन कराने का सिलसिला जारी रखा. सोशल डिस्टेंसिंग (Social Distancing) का पूरा ख्याल रखते कुछ मुस्लिम एक्टिविस्ट्स ने बड़े मंगल पर भंडारे के स्थान पर गरीबों और भूखों को खाना खिलाने की पहल की.

Bhandara, Food, Coronavirus, Lockdown, Migrant Workersलखनऊ के दो युवक चर्चा में हैं जिनका यही प्रयास है कि कोई भूखा न सोए

बीस वर्षों से हनुमान जी के नाम पर बड़े मंगल का भंडारा आयोजित करने वाले लखनऊ के जुबैर अहमद और अब्दुल वहीद सहित उनकी एसोसिएशन के अन्य लोग इस बार बड़े मंगल पर भंडारा ना कर पाने पर उदास थे. तब उन्हें ख्याल आया कि वो भंडारे का रूप बदल कर भी अपनी नियत और इरादों को अंजाम दे सकते हैं. इन लोगों ने फैसला किया कि लॉकडाउन में खाने को मोहताज गरीबों का पेट भरेंगे. अब ये मुस्लिम दल हर बड़े मंगल को हनुमान जी के प्रसाद के नाम पर जरूरतमंदों को ढूंढ-ढूंढकर उन तक भोजन पंहुचाने की व्यवस्था की जिम्मेदारी निभा रहे हैं.

कोरोना काल के इस कठिन वक्त में ऐसी ख़बरे राहत देती हैं और आगे कुछ बेहतर होने की उम्मीद की रौशनी दिखाती हैं. वायरस कोई भी हो सामाजिक दूरी पैदा करता है. इंसान से इंसान को ज़ुदा करता है. दरारें और खाई पैदा करता है. जान और माल को नुकसान पंहुचाता है. देश की प्रगति, स्मृद्धि और उन्नति में बाधा पंहुचाता है. अर्थ व्यवस्था बिगाड़ता है. भूख, मंहगाई और गरीबी की तबाही मचाता है.

ये सारे ख़तरे कोरोना वायरस से पैदा हुए हैं और नफरत का वायरस भी कुछ ऐसी ही हानियां पंहुचाता है. इन खतरनाक और विध्वंसकारी शक्तियों से लड़ने के लिए बहुआयामी शक्तियों की जरुरत है. ऐसी ताकत हिंदुस्तान की मट्टी की सुगंध मे हैं. यहां की गंगा जमुनी तहज़ीब और सर्व धर्म सद्भाव की ताकत मे हैं. अली और बजरंग बली की प्रेरणा मे है.

Bhandara, Food, Coronavirus, Lockdown, Migrant Workersलखनऊ में समाजसेवा करते इन युवकों का यही मकसद है की सबको खाना मिलता रहे

दस सिर वाले रावण और यज़ीद जैसे ज़ालिम बादशाह को भी नेस्तनाबूद करने के लिए हमारे धर्मिक संस्कारों ने हमें शक्ति दी है. भगवान राम ने असत्य के खिलाफ सत्य की रक्षा के लिए युद्ध में वन पशुओं के साथ मिलजुल कर रावण का अंत किया था.

इमाम हुसैन ने आतंकी शासक यजीद के खिलाफ जंग में रंग और नस्ल का भेद नहीं किया था. इसलिए हम देश के लिए खतरा बने हर वायरस के खिलाफ लड़ेंगे. लड़ाई चाहे हमारी कोरोना वायरस के खिलाफ हो या नफरत के वायरस के खिलाफ. इनसे हम मिलजुलकर लड़ेंगे भी और जीतेंगे भी.

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लेखक

नवेद शिकोह नवेद शिकोह @naved.shikoh

लेखक पत्रकार हैं

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