गुना में किसान का पेस्टीसाइड पीना जानिए किसका गुनाह है...
मध्य प्रदेश के गुना (Madhya Pradesh Guna Farmer suicide) में बाप की लाश को गोद में रखकर रोते बिलखते बच्चों की जो तस्वीर इंटरनेट पर वायरल (Guna farmer Viral Photo) हुई है वो न केवल पीड़ादायक है बल्कि पूरी मानवता को शर्मसार करने वाली है.
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इस देश में ग़रीब किसान (Farmer) का बच्चा बड़ा होकर किसान नहीं बनना चाहता. करेगा भी क्या बनकर? एकदिन उसे भी मजबूर होकर या तो फांसी लगानी पड़ेगी या पेस्टीसाइड (Pesticide) पीना होगा. सुबह की पहली तस्वीर गोद में बाप का सिर रखकर बिलखते बच्चों को देखना पीड़ादायक होता है. ये किसान ग़रीबी के बोझ तले इतने दबे होते हैं कि आप और हम शायद ही अंदाज़ा लगा पाएं. जब सुबह की पहली ही ख़बर आपके गृहनगर से पढ़ने को मिले और इतनी दुर्भाग्यपूर्ण हो कि शर्म से ना सिर्फ सर झुक जाए बल्कि आप एक बार फिर पुलिस-सिस्टम, अमीर-ग़रीब नाम की इस व्यवस्था पर लानत भेजना चाहें. गुना प्रशासन, मॉडल कॉलेज बनाने के लिए जिस ज़मीन को एलोकेट करता है उस ज़मीन पर डब्बू पारधी नामक एक व्यक्ति कब्ज़ा किए बैठा था. डब्बू पर कई आपराधिक मामले भी दर्ज हैं. लेकिन सरकार ने असली अपराधी को ना पकड़ेगी ना पीटेगी. डब्बू ने यह कब्ज़ा की हुई ज़मीन ग़रीब किसान राजकुमार को पट्टे पर दे दी. जो इस पर खेती कर रहे थे. गुना प्रशासन (Guna Administration) ने इस ज़मीन से अतिक्रमण हटवाने के लिए पुलिस, (अधिकारी तहसीलदार समेत) और जेसीबी भेजी. ज़मीन नापी के बाद उस ज़मीन से कब्जा हटाया जाने लगा तो राजकुमार और उसके परिवार ने मिन्नतें कीं कि उनकी फसल को बर्बाद ना किया जाए. वह ज़मीन उनकी नहीं है लेकिन फ़सल और मेहनत तो उनकी थी.
मध्य प्रदेश के गुना में जो पुलिस ने एक किसान के साथ किया वो शर्मसार करने वाला है
मैं पहले भी कई बार यह बात कह चुकी हूं कि मुआवजा कभी भी मुनाफ़े की भरपाई नहीं कर पाता. हालांकि इसका कहीं भी ज़िक्र नहीं है कि सरकार ने राजकुमार को मुनाफ़ा देने की बात की. उल्टा उसे और उसकी पत्नी पर पुलिस की लाठियां बरसने लगीं. मामले को समझाकर भी हल किया जा सकता था. लेकिन ग़रीब बोलता हुआ किसे अच्छा लगता है?
राजकुमार और उसकी पत्नी जब मार खाकर भी अपनी बात नहीं समझा पाए तब उन्होंने हारकर पेस्टीसाइड पी लिया. उनके बिलखते हुए बच्चे देखकर भी उन अधिकारियों का कलेजा ना पसीजा होगा. खड़ी फ़सल जिसमें एक ग़रीब किसान ने उधार लेकर बीज बोया होगा, उधार लेकर ही खाद डाली होगी.
ग़रीब की मेहनत की तो क़ीमत नहीं है. उस एक फ़सल के दम पर उसने कुछ उम्मीदें पाली होंगी. जब वे सभी उम्मीदें जेसीबी और पुलिस की लाठियों से दब गईं तो आत्महत्या के अलावा क्या चारा बचेगा?
प्रशासन को मारना ही था तो डब्बू को खोजती उसे मारती, या ज़मीन ख़ाली कराने के लिए वह समय देखती जब फ़सल कटकर खेत ख़ाली होते हैं. भरी बारिश में जब कंस्ट्रक्शन वर्क ठंडा रहता है तब ज़मीन का भूमि पूजन करके सरकार क्या उखाड़ना चाहती थी? डब्बू जैसे लोगों को भी नहीं पकड़ती प्रशासन जो अनाधिकृत तरीक़े से ज़मीन हड़पते हैं और चोरी से उसे ग़रीब किसान को देते हैं. मारा जाता है तो सिर्फ़ ग़रीब.
और हम इस देश में संस्कृति-सभ्यता बचाने की बात करते हैं. सुनिए ये जो ग़रीब किसान हैं ना ये इस देश की हज़ारों वर्ष पुरानी संस्कृति-सभ्यता के रखवाले हैं. इन्हें मंदिर से पहले रखिए.
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