कितना दुर्भाग्यपूर्ण है आम के मीठेपन को भी कोरोना लील गया है!
इन दिनों कुछ खबरें ऐसी भी आई हैं जिनके अनुसार कई लोग आम के मीठेपन को मोटापा और शुगर बढ़ने के डर से खा नहीं रहे या बहुत कम खा रहे हैं. खबरों के अनुसार कोरोना के कारण लोगों में यह भ्रांति बन गई है कि आम खाने और मोटे हो जाने से उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होगी और उन्हें कोरोना होने के खतरा बढ़ जाएगा.
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मई जून का महीना हो घर में आम न आए. क्या अमीर क्या गरीब, भाई हर कोई साल भर बेसब्री से आम के मौसम का इंतजार करता है. यूं ही नहीं आम फलों का राजा है. पूरे भारत में आम की सैकड़ों किस्में पाई जाती है. हापुस से लेकर मलदहवा, दशहरी से लेकर लंगड़े आम का स्वाद भारतीयों के जीभ पर मानों बैठा हो. लेकिन लॉकडाउन और कोरोना ने पिछले साल की तरह इस बार भी आम के बाज़ार और उसकी बिक्री पर अपना असर दिखाया है. लॉकडाउन के दौरान बंदी के माहौल ने मई के महीने में आम की बिक्री को तो जो नुकसान पहुंचाया है वह तो है ही. लेकिन इधर बीच कुछ खबरें ऐसी भी आई हैं जिनके अनुसार कई लोग आम के मीठेपन को मोटापा और शुगर बढ़ने के डर से खा नहीं रहे या बहुत कम खा रहे हैं. खबरों के अनुसार कोरोना के कारण लोगों में यह भ्रांति बन गई है कि आम खाने और मोटे हो जाने से उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होगी और उन्हें कोरोना होने के खतरा बढ़ जाएगा. हालांकि यह गलत धारणा है जिसने आम के उत्पादकों को पहले से कम बिक्री की समस्या को और बढ़ाया ही है.
ये अपने में दुर्भाग्यपूर्ण है कि कोरोना की मार आम को भी झेलनी पड़ रही है
प्रकृति का कोई भी उत्पाद जिसे हम पीढ़ियों से खा रहे उससे पोषण पा रहे हों उसकी संतुलित मात्रा किसी भी रूप में कम से कम किसी स्वस्थ व्यक्ति को कोई नुकसान पहुंचाती हो, ऐसा तो कोई शायद ही मानता हो. भारतीय उपमहाद्वीप में कच्चे से लेकर पके आम को विभिन्न रूपों में खाया जाता है. कच्चे आम या कैरी की पुदीना के साथ बनने वाली चटनी, अचार और गर्मी में लू से बचने के लिए उसे भूनकर या उबालकर पना बनाकर बड़े चाव से पिया जाता है.
जिसे विटामिन सी के एक उत्तम स्रोत के रूप माना जाता है. पारंपरिक रूप से दाल में कच्चा देशी आम पकाकर खाने से पित्त की समस्या में काफ़ी लाभ मिलता है साथ ही शरीर के लिए यह गर्मी में एक सुरक्षा कवच की तरह माना जाता है. आयुर्वेद भी कच्चे आम , पके आम यहां तक उसके बौर, पत्ती तक को कई बीमारियों में औषधि के रूप में मान्यता देता है.
आयुर्वेद में आम के फल को वात पित्त कफ के संतुलन को बनाए रखने में सहायक कहा गया है. बाकी आम के गुणों का कहना ही क्या! पके आम के रस से मैंगो शेक से लेकर उसे सुखाकर अमावट बनाकर भी लोग खाते है. अमेरिकी स्वास्थ्य विभाग (USDA ) के अनुसार पके आम के प्रति 100 ग्राम में टोटल फैट (Fat) सिर्फ.04% और कॉलस्ट्रॉल (Cholesterol) 0% होता है वही फल शर्करा कार्बोहाइड्रेट के रूप में सिर्फ 15% के आसपास होती है.
यानि की जो व्यक्ति पूरी तरह से स्वस्थ है उन्हें एक सीजन में दिनभर में एक दो आम खाने से उन्हें शुगर होने या मोटा होने का जो डर बना है वह निराधार है. यही नहीं आम के प्रति 100 ग्राम में विटामिन सी 60% और विटामिन ए 21 % के लगभग होता है. साथ ही दिल जिगर और गुर्दा को स्वस्थ रखने के लिए कई आवश्यक मिनिरल्स भी प्रचुर मात्रा में होते है.
यानि एक सामान्य आम पूरी तरह से हमारे शरीर के लिए एक प्रकार से औषधि ही है. कई रिसर्च और डॉक्टर व डायटिशियन भी अक्सर यह सलाह देते है कि संतुलित मात्रा में मौसमी फल प्रत्येक व्यक्ति के लिए लाभकारी है. एक तरह से देखा जाए तो मौसम के अनुरूप विभिन्न फल और सब्जियां प्रकृति स्वयं उपजाती है ताकि हमारा पोषण उस विशेष मौसम के अनुरूप हो सके.
दिक्कत यही से ही शुरू होती है जब हम प्रकृति और उसके उत्पादों को मौसम के अनुसार ग्रहण नहीं करते. हम भी प्रकृति का ही हिस्सा है यह बात भूलकर अपनी मनमानी से अपने दिनचर्या को चलाते हैं. फ़िलहाल अगर आपको भी भ्रम है कि गर्मी में आम खाना आपको नुकसान करेगा तो एक बार कोई धारणा बनाने या उसे प्रचारित करने से पहले अपने चिकित्सक से ज़रूर परामर्श कर लें.
बाकी "अति सर्वत्र वर्जयेत" तो आपने सुना ही होगा यानि किसी भी चीज़ की आवश्यकता से अधिक उपयोग नुकसान दायक होता है. तो मेरी मानिए बिंदास होकर भांति भांति किस्मों के आम का स्वाद लीजिए. गर्मी बनी ही है आम के लिए अन्यथा फिर एक साल बाद ही इसका मौका मिलेगा.
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