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Updated: 03 सितम्बर, 2018 08:06 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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जन्माष्टमी का त्योहार आता है तो अपने साथ दही-हांडी का उत्सव भी लाता है. हर उत्सव की तरह इसे भी लोग हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं, लेकिन जाते-जाते ये त्योहार बहुत से लोगों की आंखों में आंसू दे जाता है. कुछ को तो जिंदगी भर का दर्द भी दे देता है. यहां बात हो रही है दही-हांडी के लिए गोविंदा बनने वाले किशोरों-नवयुवकों की. कृष्ण का भेष धारण कर के ये गोविंदा तो बन जाते हैं, लेकिन बेहद ऊंचाई पर लटकी दही की हांडी को फोड़ने के चक्कर में कई बार ये बुरी तरह से घायल हो जाते हैं. इस बार के दही-हांडी उत्सव में 2 बजे तक ही 36 गोविंदा के घायल होने की पुष्टि हो चुकी है.

जन्माष्टमी, श्रीकृष्ण, मुंबई, महाराष्ट्र, कोर्टइस बार के दही-हांडी उत्सव में भी 36 गोविंदा घायल हो चुके हैं.

गोविंदा नहीं, सरकार की दलीलें गिरी हैं

कोर्ट ने दही-हांडी के उत्सव को जान का खतरा न बनने देने से बचाने के लिए कुछ नियम बनाए और उन्हें लागू किया. ये नियम दही-हांडी उत्सव में भाग लेने वाले गोविंदा के लिए थे और साथ ही उनके द्वारा बनाए जाने वाले पिरामिड पर भी लागू होते थे. यकीनन वो नियम लागू होते तो इक्का-दुक्का गोविंदा को ही चोट आती, वो भी तब जब कोई लापरवाही हो जाती. लेकिन महाराष्ट्र सरकार को हाईकोर्ट का ये दखल रास नहीं आया. सरकार ने एड़ी-चोंटी का जोर लगा दिया और अपनी दलीलों को कोर्ट से मनवा भी लिया. नतीजा आप लोगों के सामने है. बहुत से गोविंदा बने बच्चे किशोर औन नवयुवक घायल पड़े हैं. दही-हांडी उत्सव में सिर्फ गोविंदा नहीं गिरे हैं, बल्कि उनके साथ सरकार की दलीलें भी औंधे मुंह गिरी हैं, जो उन्होंने हाईकोर्ट के सामने पेश की थीं.

शायद सरकार ने दलीलें देते वक्त सोचा था कि गोविंदा से बना पिरामिड फेविकॉल का जोड़ है, जो टूटेगा नहीं, लेकिन ऐसा नहीं हो सका. लगता है सरकार ने फेविकॉल के विज्ञापन से प्रेरित होकर अपनी दलील रख दी, लेकिन उस विज्ञापन में लिखी चेतावनी को नहीं पढ़ा, जिसमें लिखा था कि यह सब एक्सपर्ट्स की निगरानी में किया गया है. आप इसे करने की कोशिश ना करें.

कोर्ट में यूं सालों तक चला मामला

इसकी शुरुआत हुई 11 अगस्त 2014 से, जब महाराष्ट्र हाईकोर्ट ने दही-हांडी उत्सव पर फैसला सुनाते हुए कहा कि 18 साल से कम उम्र के बच्चे इसमें भाग नहीं ले सकते और पिरामिड की ऊंचाई 20 फुट से अधिक नहीं रखी जा सकती है. महाराष्ट्र की सरकार को ये फैसला मंजूर नहीं था, इसलिए उन्होंने इस फैसले को चुनौती दी और सुप्रीम कोर्ट जा पहुंचे. सुप्रीम कोर्ट ने भी महाराष्ट्र हाईकोर्ट के फैसले को बदलने से इनकार कर दिया और मामला 1 अगस्त 2017 को वापस महाराष्ट्र हाईकोर्ट को सौंप दिया और दोबारा सुनवाई के आदेश दिए.

इसके बाद 7 अगस्त 2017 को इस मामले की सुनवाई एक बार फिर महाराष्ट्र हाईकोर्ट में हुई और हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार की दलीलें मान लीं. महाराष्ट्र हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि दही-हांडी उत्सव में 14 साल के कम के बच्चे हिस्सा नहीं ले सकेंगे, जो पहले 18 साल था. इसके अलावा पिरामिड की ऊंचाई 20 फुट से अधिक ना होने के नियम को भी खत्म कर दिया. यानी अब जितना चाहे उतना ऊंचा पिरामिड बनाया जा सकता है.

सरकार ने पिछले साल अपनी दलीलें महाराष्ट्र के सामने रखी थीं, जो इस साल धराशाई हो गई हैं. सरकार को और हाईकोर्ट को भी इस बारे में दोबारा सोचना होगा कि दही-हांडी के उत्सव में बिना सुरक्षा के उपायों के एक दूसरे से प्रतियोगिता करना जरूरी है या फिर गोविंदा की जान की अहमियत ज्यादा है. दही-हांडी के उत्सव में गिरने वाले कई गोविंदाओं को गंभीर चोट भी लग जाती हैं, जो सारी जिंदगी का दर्द बन जाती हैं. इससे पहले ऐसे मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें गिरने की वजह से बच्चों की रीढ़ की हड्डी को काफी नुकसान पहुंचा.

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