मां तुम क्या हो यार कभी थकती क्यों नहीं, रूकती क्यों नहीं?
एक बात है कि 'मां' का गुणगान तो हम सदियों से करते ही आ रहे हैं, पर इसके अलावा हमने उनके लिए और क्या किया है? इस सवाल का जवाब देने का वक़्त अब आ चुका है।
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'माँ' सुनते ही आंखों में जैसे कोई जादुई छड़ी घूमने लगती है। बात मेरी या आपकी मां की नहीं। ये कौम ही कुछ विशिष्ट है, बड़ी फुरसत में बनाई हुई। जो दिखती सामान्य इंसान-सी ही है पर, ईश्वर ने इसे एक दर्जन हाथ, सैकड़ों मस्तिष्क, रात भर जागने और अपने हर दर्द को सहन करने की अपार शक्ति का वरदान दिया हुआ है। ऐसा नहीं कि पिता की कोई अहमियत नहीं होती! बहुत होती है। अब समय बदल रहा है पर फिर भी भारतीय परिवारों में पिता ही घर का संरक्षक होता है और आमदनी कमाने की जिम्मेदारी मुख्यत: उसी के कंधे पर अधिक होती है। यही कारण है कि वह चाहते हुए भी परिवार को उतना समय कभी नहीं दे पाता, जितना कि मां दे सकती है।
'मां' की उपलब्धता ईश्वर सरीखी होती है, बच्चे ने याद किया तो वो नौकरी से भी भागती हुई चली आएगी। घर में कोई अस्वस्थ है, तो उसकी सेवा में दिन-रात एक कर देती है। कोई भी मौसम हो, घर के प्रत्येक सदस्य के पसंदीदा व्यंजन बनाने में थकती नहीं! बच्चों की स्कूल मीटिंग हो, प्रोजेक्ट में सहायता चाहिए हो, किसी विषय को समझने में दिक्कत हो, लास्ट मिनट स्कूल में कुछ मंगाया हो, फैंसी ड्रेस या किसी प्रतियोगिता के लिए तैयारी करनी हो.... सब कुछ किसी जादूगरनी-सा करती चली जाती है। यहां तक कि बिना कहे परेशानी भी भांप लेती है। न जाने इस सबके बीच भी उसकी मुस्कान कभी चूकती क्यों नहीं!
मां का प्यार कभी कम नहीं होता
कोई मेहमान आ जाये, तो उसे लाने, छोड़ने और पूरा शहर घुमाने में उसे कितना मज़ा आता है! भले ही फिर रात भर जागकर, अपने कामों को निबटाना पड़े और गजब देखो कि सुबह मुर्गे की बांग से भी पहले किचन से बर्तन की आवाज आनी शुरू हो जाती है। मां, यार तुम थकती नहीं? तुम मशीन हो या कोई रोबोट? ये, अपने को सबसे लास्ट में रखने का बेहूदा ख्याल तुम्हें आ कैसे जाता है? हर बात में कैसे कह लेती हो कि मेरी तो कोई बात नहीं!
अरे! कहीं जा रहे हो..... पूरे मन से तैयार होती हो और फिर जब लगता है कि गाड़ी में जगह कम है तो कहेगी, फलाना जगह तो मैंने दस बार देखी है, जाओ तुम लोग घूम आओ! खाने में तुम्हारी favourite dish कम हो तो कह दोगी, आज मेरा इसे खाने का मन ही नहीं, जी भर गया है खा-खा के! बुआ, चाची, ताई, मौसी, दोस्त, दूर-पास के रिश्तेदार सबके लिए अपने ह्रदय के द्वार बिना किसी शिकवे के कैसे खोल लेती हो? कैसे तुम कुछ लोगों का दुर्व्यवहार भूल सामान्य होकर बात कर लेती हो? सबके लिए अपना कलेजा तक निकालने को क्यों तैयार हो जाती हो?
घर में किसी का कोई भी सामान गुम हो जाए तो पल भर में ही ढूंढ, हाथ में थमा देती हो। कोई बाहर जाए, तो इंतज़ार में कैसी उदास हो जाती हो पर जाहिर नहीं करतीं कभी। थकती हो, पर शिकायत नहीं की किसी से। सबकी अपनी दिनचर्या है और तुम्हारी दिनचर्या, उनके हिसाब से घूमती रहती है। तुम धुरी हो घर की, सबसे समान रूप से जुड़ी हो। कोई बच्चों को हाथ भी लगाए तो ढाल बन खड़ी हो जाती हो। पिता तक बच्चों की हर सिफ़ारिश कैसे मुलायम तरीके से पहुंचाती हो। लेकिन अपनी इच्छाओं की भनक तक नहीं लगने देतीं! कमाल हो यार!
आखिर, हर कोई मां के गुण क्यों न गाए? वो मात्र जीवनदायिनी ही नहीं, उम्र भर संरक्षक का कार्य भी करती है। इनके जीवन में कोई भी आकस्मिक या वैकल्पिक अवकाश नहीं होता! अपनी जिम्मेदारी को कोई शत-प्रतिशत निभाता है तो वह मां ही है। उसके लिए ये न जिम्मेदारी है न त्याग, एक रूहानी सुकून है जो उसके चेहरे पर कभी मुस्कान, कभी तेज बन दमकता है। 'मां' सिर्फ एक संबोधन है, लेकिन इसके भीतर दसियों व्यक्तित्व रहते हैं। जो समय और परिस्थति अनुसार, अपनी भूमिका बदलते रहते हैं।
'मां' के बारे में पूरी तरह, मां बनने के बाद ही समझ आता है। कई अनुत्तरित प्रश्नों के हल अपने-आप मिलते चले जाते हैं और एक दिन हम सब भी वही कुछ दोहराने लगते हैं।
आज 'मदर्स डे' जरुर है पर अधिकांश माएं आज भी उसी दिनचर्या को फ़ॉलो कर रही होंगीं। हां, बच्चों ने गले लग विश जरुर किया होगा और इसी से उनका दिन बन गया होगा।
एक बात है कि 'मां' का गुणगान तो हम सदियों से करते ही आ रहे हैं, पर इसके अलावा हमने उनके लिए और क्या किया है? इस सवाल का जवाब देने का वक़्त अब आ चुका है। कहीं ऐसा न हो कि मां रिटायर होने की बात कहे और आप चारों खाने चित्त नज़र आओ!
हैप्पी मदर्स डे, MOM.
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