Graphic Images: 'गर्भपात' कहना आसान है, लेकिन वह एक भयानक मौत का नाम है
अगर कोई मां प्रेग्नेंसी के दौर में अपना बच्चा खो दे तो मां को बहुत सहानुभूति दी जाती है, लेकिन क्या कभी किसी ने सोचा है कि बच्चों का क्या होता है? वो बच्चे जिनका अबॉर्शन करवाया जाता है क्यो होता है उनका?
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देश में गर्भपात के मामले बढ़ते जा रहे हैं. सिर्फ अस्पतालों की ही बात करें तो तीन साल में गर्भपात के मामलों में 13 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है. लेकिन इससे ज्यादा चिंताजनक बात है 15 साल से कम उम्र के बच्चियों के गर्भपात को लेकर. तीन साल में 144% की बढ़त. इन आंकड़ों की चर्चा इसलिए जरूरी है कि गर्भपात बच्चों का खेल नहीं है. अधिकारिक स्रोतों यानी अस्पतालों से मिले गर्भपात के आंकड़े तो हकीकत के सामने कुछ भी नहीं. गर्भस्थ बच्चों को मारने के लिए लोगों ने कई क्रूर तरीके अपनाए हैं और इनमें से कई तो जानलेवा भी हैं. लेकिन इस चर्चा के आगे उन बच्चों की बात नहीं होती, जिनके साथ यह क्रूरता होती है. इस कहानी से समझिए उन बच्चों के साथ मरने से पहले क्या होता है. ख्याल रहे, इस कहानी में उपयोग की गई कुछ तस्वीरें वास्तविक और विचलित करने वाली हैं :
कहानी है फेलिशिया कैश नाम की एक महिला की, जिसने एक फेसबुक पोस्ट लिखी है. फेलिशिया और उनके पति 13 सालों से बच्चे के लिए तरस रहे थे और इसी बीच उन्होंने 3 लड़कियों को गोद ले लिया. इसी बीच फेलिशिया प्रेग्नेंट हुईं और दो लड़कों को जन्म दिया. तीसरी बार फिर फेलिशिया प्रेग्नेंट हुईं इस बार ट्विन्स थे, लेकिन उनकी प्रेग्नेंसी में कुछ गड़बड़ियां थीं. एक बच्चा गर्भ में ही मर गया था. फिर भी दूसरे को बचाने की कोशिश की गई.
कुछ दिनों में फेलिशिया को समस्या हुई और हॉस्पिटल जाने के बीच ही उन्होंने अपने 14 हफ्ते के बच्चे को जन्म दिया. ये बच्चा मृत पैदा हुआ, लेकिन इसकी शक्ल देखकर उन्होंने इसे पूरी दुनिया के सामने दिखाने का फैसला किया.
फेलिशिया की फेसबुक पोस्ट
दरअसल, फेलिशिया ये बताना चाहती थीं कि साढ़े तीन महीने की अवधि में भी बच्चा कोई मांस का टुकड़ा या निर्जीव वस्तु नहीं होता. इतने कम समय में भी बच्चा विकसित हो जाता है. बच्चे की इन मार्मिक तस्वीरों को देखकर ये लगता है कि अबॉर्ट हुए बच्चों को कितनी तकलीफ होती होगी.
तो क्या होता है बच्चे के साथ जब वो 10 हफ्तों से बड़ा हो जाता है. उसके हाथ-पैर, सिर और पूरा शरीर विकसित हो जाता है. सिर्फ हाथ पैर ही नहीं 14 हफ्तों के होने तक बच्चे के नाखून भी दिखने लगते हैं. उसकी नसें और शरीर के बाकी अंग साफ-साफ दिखते हैं.
फेलिशिया की तरह ही एक और जोड़े ने 19 हफ्ते के अपने बच्चे को खोया था. ये मामला कुछ साल पुराना है. बात है 2013 की. एलिक्सिस और जॉशुआ नाम का ये जोड़ा अपने तीसरे बच्चे का इंतजार कर रहा था. 19 हफ्तों के अंदर कुछ परेशानियों के चलते एलिक्सिस ने बच्चे को जन्म दिया. बच्चा कुछ मिनट तक जीवित था. बच्चे का दिल धड़क रहा था. उसके दिल की धड़कन सुनी जा सकती थी. कुछ मिनट तक जिंदा रहा वो बच्चा बहुत तकलीफ में था. खाल ना होने के कारण उसे जलन हो रही होगी. उस बच्चे का शरीर ऐसे जल रहा होगा जैसे किसी ने खौलता पानी डाल दिया हो.
ये तो उन लोगों के बारे में है जिनके बच्चे ना चाहते हुए भी उनसे छीन लिए गए, लेकिन उनका क्या जो अबॉर्शन करवाते हैं. क्या आप जानते हैं कि उस समय बच्चों को कितनी तकलीफ होती है?
सैलाइन अबॉर्शन में गर्भ में इंजेक्शन की मदद से एक लिक्विड डाला जाता है जो बच्चे को मारता है. इस प्रक्रिया में बच्चे के फेफड़े और खाल जल जाती है और वो मर जाता है और मां एक मृत बच्चे को जन्म देती है, लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि आधा जला बच्चा जिंदा रह जाता है और फिर उसे मरने के लिए छोड़ दिया जाता है. उस बच्चे के पास ना तो कोई उसे संभालने जाता है और ना ही उसकी दवाई की जाती है.
एलिक्सिस का बेटाये सही है कि रेप से जन्मा बच्चा मां के लिए ठीक नहीं होगा और ना ही उसका कोई भविष्य होगा, लेकिन उन बच्चों का क्या जिनके मां-बाप ने जान बूचकर उन्हें मार दिया? हमारे देश में अभी भी कन्डोम खरीदना और सेनेट्री पैड खरीदना एक शर्म की बात मानी जाती है. उस देश में जहां गर्भ निरोध के तरीकों की जानकारी अधिक नहीं है, वो देश जहां बच्चियों को मिट्टी, पत्थर के नीचे या कूड़ेदान में फेंक दिया जाता है... ऐसे देश में बहुत ही कम लोग होंगे शायद जो इन अजन्मे बच्चों का दर्द समझ सकते होंगे. ये सही है कि कई बच्चों को पैदा नहीं किया जा सकता, उनकी परवरिश नहीं की जा सकती, लेकिन क्या इंसानियत ये कहती है कि इन्हें मार दिया जाए?
सिर्फ इसलिए क्योंकि वो बच्चा आपको दिख नहीं रहा, क्या उस बच्चे का वजूद नहीं होता? क्यों आखिर प्रोटेक्शन इस्तेमाल करने से लोग कतराते हैं, लेकिन बाद में ऐसे बच्चों को मार देते हैं. बेहतर होगा कि जोश में होश ना खोया जाए. किसी अजन्मे बच्चे को मारने से बेहतर है कि उसे गर्भ में आने ही ना दिया जाए.
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