Mothers Day Exclusive : वाक़ई मां बनना कोई मामूली बात नहीं है, बड़ी हिम्मत चाहिए
Mothers Day Exclusive: एक महिला (Woman) को सम्पूर्ण तब मन जाता है जब वो मां (Mother) बनती है. तब ये उसके जीवन का सबसे खूबसूरत एहसास होता है और उस समय वो उन तमाम तकलीफों को भी भूल जाती है जिनका सामना उसे इस पूरी प्रक्रिया में करना पड़ा है.
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मैं जब हॉटेल में दाख़िल हुई तब वह रसोई में कुछ सब्जियां धो रही थी. दूसरी टर्किश औरतों की तरह वह बेहद ज़हीन और ख़ूबसूरत थी. मैं हैरान रह गई थी यह देखकर कि लाउंज में लगी उनकी टीवी पर ज़ी टीवी का एक पॉपुलर शो चल रहा है. यकीनन वह टर्किश भाषा में ट्रांसलेट होकर चल रहा था लेकिन वह मुझे इतना समझाने के लिए काफ़ी था कि अपने देश से हज़ारों मील दूर जिस औरत (Woman) को मैं देख रही हूं. यह तो बिल्कुल मेरे देश की हज़ारों दूसरी औरतों जैसी है. मेरा यह यकीन तब पुख़्ता हुआ जब अगले दिन मैं स्पा जाने के लिए नीचे आई और अपने बेटे को अपने पति को सौंपते हुए जाने लगी. उसने टूटी फूटी अंग्रेजी में कहा, 'today spa, tomorrow Paragliding and no son with you, son with husband, very clever, very clever' उसका ये जो 'very clever' कहना था ना, ये मुझे अंदर तक लगा. उसका अर्थ नकारात्मक नहीं था वह बहुत ही ख़ुश और उत्साहित थी. जैसे कह रही हो, मैं तो नहीं कर सकती पर चलो कोई तो यह कर रहा है.
किसी भी महिला के लिए मां बनना एक खूबसूरत एहसास है और उसकी तकलीफों को भी केवल वही समझती है
उसके बाद वहां बिताए उन दो दिनों में मुझे लगा जैसे वह मेरी मां जैसी ही कोई औरत है. बस रूप-रंग, भेष-भूसा, भाषा अलग है. बाक़ी सब कुछ वैसा ही है जैसा मेरी मां का था. जैसा हर दूसरी मां का होता है, एक 'डेडिकेट' मां का. घर, बच्चे और ज़्यादा हुआ तो पति का काम संभालते-संभालते वह औरत ख़ुद क्या थी यह भूल चुकी होती है.
ऐसी ही औरतें मुझे श्रीलंका के उस घर में मिली थीं जहां हमें हमारा ड्राइवर उसके परिवार से मिलाने ले गया था. और ऐसी ही बहुत सारी औरतें मुझे इटली में मिली थीं. हर बार बस बाहरी आवरण का फ़र्क था. भीतरी रूप-रवैया काफ़ी हद तक एक जैसा मिला.
गांव देहात हो या शहर, पीठ पर बच्चा बांधे काम पर निकली औरतें ढेर दिख जाती हैं. यहां कहने वाले कहेंगे कि बच्चा दूध पीता है इसलिए. जनाब बच्चा दूध पीना छोड़ दे उसके बाद भी मसला बदलता नहीं. जानते हैं क्यों? क्योंकि परवरिश को मातृत्व का अभिन्न अंग बना दिया गया है. 'आप मां हैं' कहकर आपको ना जाने कितनी बार चुप करा दिया जाता है. 'मम्मी ने यही सिखाया' कहकर कइयों बार मातृत्व को कटघरे में रखा जाता है.
दूसरे देशों की छोड़ देती हूं सिर्फ अपनी बात करती हूं. मैं जब पहली बार किसी शहर में रहने आई तब नौ-दस वर्ष की थी. वहां मैंने जब देखा कि औरतें भी नौकरी करती हैं, काम पर जाती हैं तो मुझे बड़ी हैरानी हुई थी. मैं कौतूहल वश उन औरतों को देखती. इससे पहले मैंने किसी की 'मम्मी' को काम पर जाते नहीं देखा था. गांवों में कहां यह चलन होता है. देखा भी होगा तो वह सिर्फ 'टीचर' बने हुए. दिनभर दफ़्तर जाते नहीं. फिर समाज आगे बढ़ा. अब पहले से ज़्यादा स्त्रियां नौकरी करती हैं, लेकिन इस आगे बढ़े हुए समाज में जो आगे नहीं बढ़ा वो है औरत का काम के साथ-साथ घर और बच्चे संभालना.
और अगर वह ऐसा नहीं करती तो दूसरे लोग छोड़िए वह ख़ुद ही गिल्ट में जीने लगती है. ये गिल्ट प्राकृतिक नहीं है, ये हमारी परवरिश से हमें मिलता है. मां बनने के बाद मैंने जाना कि 'मां' शब्द को कितना 'ओवररेटेड' बना दिया है. मां को फ्रस्ट्रेशन नहीं हो सकता. मां को थकान नहीं हो सकती. मां बीमार होकर भी बीमार नहीं दिख सकती. मां को स्वादिष्ट पकवान बनाने तो आने ही चाहिए. मां को सबकी पसंद मालूम होनी चाहिए. मां को खाना खाते में थाली छोड़कर बच्चे को पॉटी कराना और उसके बाद बिना ज़ायका ख़राब किए खाना खाना भी आना चाहिए. मां को पता होना चाहिए किस अलमारी में कपड़े कहां रखे हैं. मां को पीरियड्स में भी बच्चे के हर काम के लिए तत्पर रहना चाहिए. मां को रातभर बच्चे के साथ सोते-जागते रहना चाहिए.
इस सबके बाद अगर मां नौकरी करना चाहे तो ख़ूब करे, पर नौकरी पर जाने से पहले और आने के बाद वह उपरोक्त सभी बातों का ख़याल रखे. और अगर कहीं माँ वर्क फ्रॉम होम है तो फिर उसके काम की उतनी ही हैसियत रह जाती है जितनी पकवान के आगे दलिया-खिचड़ी की. तब आप गृहस्थी और काम के बीच नटनी का नृत्य कर रहे होते हैं.
जानते हैं इस सबमें बुरा क्या है? बुरा है कि हम आज भी अपनी बेटियों को आत्मनिर्भर होना, अपने लिए कमाना, अपने लिए जीना नहीं सिखाते. हम अपने बेटों को नहीं सिखाते कि तुम्हारा काम सिर्फ पैसे कमाना नहीं घर की हर ज़िम्मेदारी में हाथ बंटाना है.
मातृत्व पर लिखी गई कविता-कहानी में मां के समर्पण का महिमामंडन तो ख़ूब होता है लेकिन क्या कोई कविता-कहानी माँ की पसंद-नापसंद, सपने और उससे भी पहले इस पर बात करती है कि वह स्त्री माँ बनना भी चाहती थी या नहीं? बनना चाहती थी तो क्यों? इस क्यों के बहुत निराले जवाब मिलेंगे कभी पूछकर देखिएगा अपने आसपास. अधिकांश, कट-कॉपी-पेस्ट वाले मिलेंगे जो सामाजिक आदर्शवाद की फ़ाइल से उठाए गए होंगे.
इन जवाबों में मौलिकता की कमी और मातृत्व का महिमामंडन ही हमारे सामने वे आंकड़े रखता है जो कभी किसी प्राइमटाइम डिबेट का हिस्सा नहीं बन पाती.
वे आपको चिल्लाकर नहीं बताते कि भारत में हर साल 45000 औरतें बच्चे के जन्म के दौरान मर जाती हैं, (WHO report, Re : TOI, 2016). असुरक्षित गर्भपात के कारण भारत में हर दिन 13 महिलाओं की मौत हो जाती है. भारत में हर साल 6 लाख बच्चे जन्म के बाद 28 दिनों के भीतर मर जाते हैं. 23% प्रतिशत महिलाएं गर्भावस्था के दौरान अवसाद से जूझती हैं. अधिकांश महिलाएं बच्चे के जन्म के बाद मेमोरी लॉस से ग्रसित होती हैं जिससे उनकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में कई मुश्किलें होती हैं. 90 प्रतिशत महिलाएं गर्भावस्था के दौरान होने वाले हार्मोनल चेंजेस से परेशान होती हैं जिन्हें परिवार के सहयोग से दूर किया जा सकता है. 10 में से 8 महिलाएं गर्भावस्था से संबंधित मेडिकल जानकारी और प्रीकॉशन्स से अवगत नहीं होतीं, जिसकी उन्हें बेहद ज़रूरत है.
और हां, ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक़ लॉकडाउन की वजह से विश्वभर में करोड़ों स्त्रियों को अनचाहे गर्भ धारण करने पड़ेंगे क्योंकि गर्भ निरोधक गोलियां उन तक नहीं पहुंच पाएंगी. तो सुनो प्यारे, अगली बार अपनी मां को 'मदर्स डे' विश करो तो सिर्फ विश मत करना बल्कि उन्हें समझाना कि ख़ुद के लिए जीना बहुत ज़रूरी है, और उनसे पूछना कि उनको याद भी है उनके अपने सपने क्या थे?
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