शराब से सरकार को चाहिए रेवेन्यू भले क़ीमत देश की औरतें क्यों न चुकाएं
शराबियों की फ़िक्र के मद्देनजर शराब की दुकानें (Liquor Shops) खुलवाने वाली सरकार (Government) को उन महिलाओं (Women) के बारे में भी सोचना चाहिए था जो लॉकडाउन (Lockdown) के इस दौर में अब घरेलू हिंसा का दंश सहेंगी और कुछ नहीं कर पाएंगी.
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मुबारक हो खुल ही गयी आख़िरकार शराब की दुकान (Liquor Shops). सुन ही ली सरकार ने आख़िर आपकी ये फ़रियाद. राज्यों के लिए राजस्व (Revenue) पैदा हो इसलिए केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को अपने-अपने राज्यों में रेड, ग्रीन और ऑरेंज जोन में शराब की दुकानें अपनी सहूलियत के मुताबिक़ खोलने की इजाज़त दे दी है. अच्छा है चालीस दिन के लॉक डाउन (Lockdown) की वजह से देश की आर्थिक स्तिथि कहां से कहां पहुंच गयी है हम सबको पता है. लेकिन क्या देश की अर्थव्यवस्था (Economy) को पटरी पर लाने का ज़रिया शराब की दुकान खोलना है? क्या सरकार ने शराब की दुकानों को खोलने की इजाज़त देने से पहले एक बार भी देश की महिलाओं (Women) के बारे में सोचा होगा? क्या सरकार को नहीं पता कि लॉकडाउन की वजह से डोमेस्टिक-वायलेंस (डोमेस्टिक Violence) के केस किस क़दर बढ़ें हैं? सिर्फ़ भारत की ही बात नहीं कर रही डबल्यूएचओ की रिपोर्ट की माने तो लॉक-डाउन की वजह से घरेलू हिंसा में लगभग सत्तर फ़ीसदी बढ़ी है. वहीं भारत की बात करें तो नेशनल कमीशन फ़ॉर विमन (NCW) ने अपनी अप्रैल वाली रिपोर्ट में बताया है कि भारत में घरेलू हिंसा के मामले कई गुना बढ़ गए हैं. 23 मार्च से 16 अप्रैल के बीच 500 से ज़्यादा कॉल घरेलू हिंसा के संदर्भ में रिकॉर्ड हुए हैं.
शराब की दुकानें खुलने से परेशान महिलाएं हैं जिन्हें इसकी भारी कीमत चुकानी होगी
ये आधिकारिक बात हुई जबकि हक़ीक़त तो इससे कई गुना ज़्यादा बुरी है. लॉक डाउन की वजह से औरतें मज़बूर हैं अपने अब्यूज़र पति के साथ रहने के लिए. साथ ही साथ लॉक डाउन ने उनको एक और मजबूरी थमा दी है कि वो पुलिस को चाह कर भी फ़ोन नहीं कर पाती, क्योंकि पति आस-पास ही होता है. घर से बाहर निकलना मना है तो वो बाहर जा कर भी कॉल नहीं कर पाती हैं.
अब ऐसे में आज से शराब की दुकानें खोल दीं गयी हैं. अब तक ये औरतें जितनी हिंसा झेल रही थीं उससे कई गुणा ज़्यादा हिंसा वो आज से झेलेंगी. और ये हिंसा अब सिर्फ़ शारीरिक नहीं रहेगी. अब ये हिंसा, शारीरिक, मानसिक और आर्थिक तीनों में तब्दील हो जाएगी. मैं यहां साफ़ कर दूं कि इस हिंसा की सबसे ज़्यादा शिकार लोअर मिडिल क्लास, मिडिल क्लास और ग़रीबी रेखा के नीचे रहने वाली स्त्रियां होंगी.
वैसे डोमेस्टिक वायलेंस किसी के साथ भी हो सकता है लेकिन इन घरों की स्त्रियां ज़्यादा वॉल्नरेबल होती हैं. एक तो इन्हें अपना हक़ नहीं पता होता दूसरे ये आर्थिक रूप से भी सक्षम नहीं होती. इनके घर के पुरुष अपनी सभी फ़र्स्टट्रेशन को इन्हीं पर निकालते हैं.
अब शराब बिकने के बाद इनको अपनी पत्नियों को प्रताड़ित करने की वजह भी मिल गयी है. घर में पैसे नहीं होने पर ज़रूरी का सामान बेच कर या पत्नी ने जो घर चलाने के लिए पैसे बचा रखे होंगे थोड़े बहुत वो छीन कर पहले तो शराब पीएंगे. फिर शराब के नशे में घर में पैसों की तंगी, नौकरी जाने का ग़म, सैलरी नहीं मिलने की खुंदक सब बीवियों पर उतारेंगे. आख़िर पंचिंग बैग घर की औरतें ही होती हैं.
फिर जब मार-कुटाई से मन भर जाएगा तब ख़्याल सेक्स का आएगा. भारत में वैसे भी कन्सेंट के बारे में कितने लोगों को पता है? और जिनको पता है उसमें से कितने लोग इस बात को मानते हैं. हाल-फ़िलहाल के दिनों में ही संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष ने एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें लिखा था कि लॉक डाउन अगर तीन महीने लगातार चला तो अनचाहे गर्भवती स्त्रियों की संख्या पूरे विश्व में लगभग सात करोड़ हो जाएगी. जिसमें सबसे ज़्यादा औरतें ग़रीब तबके से होंगी. अब आप भारत का अंदाजा इसी रिपोर्ट के हिसाब से लगा कर देख लीजिए.
क्या सरकार की जिम्मेदारी अपने देश की औरतों के प्रति नहीं है. क्या रेवेन्यू जनरेट हो इसके लिए शराब की दुकान खोलना ही एक मात्र रास्ता था. आख़िर देश की आधी आबादी के लिए कौन सोचेगा. क्या केंद्र सरकार और राज्य सरकार ये बात नहीं जानती कि शराब पीने के बाद पति, पति नहीं रह कर पशु हो जाते हैं. क्या रास्ता बचता है उन औरतों के पास जो न ख़ुद कमा रही और न घर से बाहर निकल पा रही हैं. कैसे बचाएंगी वो अब इन शराबी पुरुषों से ख़ुद को. काश सरकार इन स्त्रियों के लिए भी सोचती.
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