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Updated: 21 सितम्बर, 2018 05:20 PM
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मुहर्रम के मौके पर अक्सर हुसैन को याद किया जाता है. लगभग हर कोई हुसैन की शहादत की बात करता है और हुसैनी ब्राह्मण या दत्त के 7 बेटों की कहानी भी लोगों के बीच कही जाती है, लेकिन कर्बला के युद्ध में याजिद के खिलाफ लड़ाई में हुसैन के परिवार के कई लोग कुर्बान हुए थे. उस लड़ाई में हिस्सा लिया था एक ऐसी शख्सियत ने जिसका नाम इतिहास के पन्नों में उतना मश्हूर नहीं है.

ये नाम है हुसैन की बहन ज़ैनब का. ये वही बीबी ज़ैनब हैं जो कर्बला के युद्ध के समय एक लीडर बनकर उभरी थीं. अगर ज़ैनब न होतीं तो हुसैन को शायद सिर्फ एक ऐसे योद्धा के रूप में याद किया जाता जिसने तत्कालीन राजा के खिलाफ युद्ध छेड़ा था.

हुसैन और उनके परिवार के पुरुष सदस्य तो कर्बला में शहीद हो गए थे, लेकिन ज़ैनब के भाषण और उपदेश ही थे जिन्होंने हुसैन की कुर्बानी को लोगों के बीच पहुंचाया था.

हुसैन की मौत तो कर्बला के युद्ध में 680AD या 61 हिजरी (इस्लामिक कैलेंडर) के दसवें मुहर्रम में ही हो गई थी. हुसैन ने अपनी लड़ाई लड़ ली थी अब ज़ैनब की बारी थी.

कौन थीं ज़ैनब?

सयैद ज़ैनब बिन्त अली असल में पैगंबर मोहम्मद की नवासी थीं. पैगंबर की बेटी फातिमा की बेटी ज़ैनब. यानी हुसैन और हसन की बहन. अपने परिवार के बाकी सदस्यों की तरह ही ज़ैनब ने भी इस्लामिक इतिहास में अहम हिस्सा निभाया था. ज़ैनब की शादी अब्दुल्लाह इब्न जफर से हुई थी और जब इमाम अल हुसैन या इमाम हुसैन ने याजिद के खिलाफ लड़ाई छेड़ी थी तब ज़ैनब ने उनका साथ दिया था. ज़ैनब ही वो थीं जिन्होंने कर्बला में हुसैन के एक बेटे अली इब्न अल हुसैन जैन उल अबीदिन (Zain-ul Abidin) की जान बचाई थी और ऐसे शिया इतिहास में हुसैन के वंश को जिंदा रखा था. ज़ैनब की मौत के बाद उनका मस्जिद सीरिया के दमास्कस में बनाया गया.

जैनब, कर्बला, मुहर्रम, इस्लाम, सोशल मीडियाहुसैन की बहन जैनब ने ही लोगों तक ये बात पहुंचाई थी कि कैसे याजिद के खिलाफ हुसैन को शहादत मिली और क्यों वो कोई गद्दार नहीं थे

कुफा में ज़ैनब के भाषण..

11वें मुहर्रम के दिन महिलाएं, बच्चे और हुसैन का बेटा जैन उल अबीदिन याजिद की सेना द्वारा कैद कर लिए गए थे और कुफा के गवर्नर की अदालत में पेश किए जाने थे. कुफा वो शहर था जहां ज़ैनब और उनकी बहन उम्मे कुलसुम ने महिलाओं को कुरान के पाठ पढ़ाए थे. पैगंबर की नवासी ज़ैनब अपने पिता अली और भाई-बहनों के साथ इसी शहर में रही थीं.

इसी शहर में बंदी बनाकर ज़ैनब को लाया गया. जैसे ही कारवां कुफा में पहुंचा वहां लोगों की भीड़ लग गई उन लोगों को देखने के लिए जिन्हें सत्ता ने गद्दार साबित कर दिया था. कहा जाता है कि जिनकी मौत हुई थी कर्बला के युद्ध में उनका सिर लाने को कहा गया था और उस समय हुसैन और हसन का सिर लिए ज़ैनब चली आ रही थीं.

उसी समय ज़ैनब ने अपना पहला उपदेश दिया. जब लोग उन्हें गद्दार समझ रहे थे. लोगों की आवाज़ में ज़ैनब की आवाज़ दब गई और ज़ैनब ने जोर से चिल्ला कर लोगों के बीच अपनी बात पहुंचाई. वो उसी तरह से बोल रही थीं जैसे उनके पिता इमाम अली बोलते थे.

जो लोग गद्दारों की सज़ा का जश्न मना रहे थे वो भी मातम मनाने लगे जब ज़ैनब ने अपना उपदेश दिया और हुसैन की बात बताई. तब से लोग मातम मनाने लगे.

क्या हुआ था गवर्नर की अदालत में?

जब अगले दिन गवर्नर की अदालत में पैगंबर का परिवार पहुंचा तो गवर्नर इब्न जियाद ने ज़ैनब को नहीं पहचाना. उनकी बदहवास स्थिती में भी वो आत्मविश्वास से भरी हुई थीं. उनके सामने हुसैन का कटा हुआ सिर रखा था. ज़ैनब की पहचान जानकर जब गवर्नर ने उनका मजाक उड़ाया तो ज़ैनब ने कहा कि गवर्नर ने खुद अपने पापों के कारण लानत ली है और उन्हें जल्द ही इसका पता चल जाएगा. ज़ैनब ने कहा कि वो खुशकिस्मत हैं कि वो अली की बेटी हैं और पैगंबर की नवासी और हुसैन की बहन जिसने शहादत हासिल की थी.

ज़ैनब के उपदेश..

जब ज़ैनब और उनके कारवां को दमास्कस जाना पड़ा तब 750 मील की वो सर्दियों की यात्रा उन लोगों पर काफी भारी पड़ी. उन लोगों को लंबा रास्ता लेना पड़ा ताकि गद्दारों से बचा जा सके. तब ज़ैनब उनकी बहन और हुसैन के बेटे जैन उल अबीदिन पर कारवां में मरने वाले बच्चों को दफनाने और रोती बिलखती मांओं को संभालने की जिम्मेदारी थी.

उस दौर में ज़ैनब के भाषण लोगों में स्फूर्ति लाते थे और उनकी बहन और फातिमा कुब्रा (हुसैन की बेटी) भी लोगों को जागरुक करते थे. ज़ैनब ने हुसैन की कुर्बानी की कहानी लोगों तक पहुंचाई, वो जहां भी जाती लोगों को अपने दादा, पिता और भाई की कहानी सुनाती और साथ ही गवर्नर की बातें भी बतातीं.

दमास्कस में पहुंचने के बाद उन्हें 72 घंटों तक बाज़ार के चौराहे पर खड़ा रखा गया. तब भी ज़ैनब ने भाषण दिया और लोगों को बताया कि हुसैन ने किस तरह अपना बलिदान दिया था. और लोगों को ये बताया कि वो गद्दारों की जीत का जश्न नहीं मना रहे हैं.

याजिद की अदालत..

कुफा से दमास्कस के रास्ते के बीच ज़ैनब और अन्य लोग कर्बला में अपने परिवार के शहीद लोगों का सिर देख रहे थे तो उन्हें बहुत दुख हो रहा था. उस समय जंग में जीतने वाली फौज हारने वाली फौज के लोगों का कटा हुआ सिर लेकर जाती थी और अपनी जीत का जश्न मनाती थी. याजिद की अदालत में भी हुसैन का कटा हुआ सिर ज़ैनब के सामने रखा था.

याजिद ने कई बड़े लोगों को बुलाया था ये देखने के लिए. सभी बंदी रस्सियों से बंधे हुए याजिद के सामने पहुंच रहे थे. उन्हें सिंहासन के सामने एक तख्त पर खड़ा किया गया और याजिद तब भी अपनी जीत का जश्न मना रहा था.

उस समय ज़ैनब ने पूरी ताकत लगाकर खड़े होकर कुरान की बातें बताईं और कर्बला के युद्ध को लेकर अपना भाषण दिया. उस समय वहां मौजूद हर शख्स चौंक गया था. यहां तक कि याजिद भी. ज़ैनब ने सबको रास्ता दिखाया था. उसके बाद बंदियों को एक साल तक टूटे घर में रखा गया और फिर याजिद ने सबको रिहा कर दिया. जैन उल अबीदिन ने अपनी बुआ से मश्वरा किया और याजिद को कहा गया कि सभी शहीदों के सिर लौटा दिए जाएं और उन्हें एक घर दिया जाए जहां वो मातम मना सकें. तब ज़ैनब ने अपनी पहली मिजलिस (कर्बला के शहीदों के लिए मातम) की थी. ज़ैनब इस पूरे दौर में हुसैन की शहादत के बारे में लोगों को जागरुक करती रहीं और कैदियों का मनोबल बढ़ाती रहीं.

ज़ैनब बुढ़ापे में मदीना वापस आई थीं और वहां भी अपने भाई के बलिदान की कहानी सुनाई थी. ज़ैनब की असली जीत यही थी कि उनके भाई की मौत की कहानी आज भी लोगों द्वारा याद की जाती है और अगर ज़ैनब न होतीं तो शायद हुसैन एक गद्दार की तरह देखे जाते. ज़ैनब ने ही शहादत का असली मतलब लोगों को समझाया था.

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