अभी बहुत कुछ है मुसलमानों के लिए, जो करना बाकी है...
याद रखिये, जो क़ौम खुद को समय के साथ नहीं बदलती तो गर्त में समां जाती है.
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तुझसे मेरी शर्ट कम सफेद क्यों! टशन का मामला है साहब! आप खुद देख लीजिये घरों में गहरी तारीकी (अंधकार) है, लेकिन मस्जिद में दिए रौशन किये जा रहे हैं. बात महज़ चराग़ की नहीं. महंगे फ़ानूस और क़ालीनों से मस्जिदों को सजाया जाने लगा है. फर्श पर क़ीमती पत्थर और टाइल्स. बदहाल मुसलमानों के मेहनत-पसीने से क़ायम मस्जिदों और दरगाहों की छटा, क्या आपको विचलित नहीं करती.
मुसलमानों की बेकली पर सिर्फ सजदे में सर रगड़ने से कुछ नहीं होगा. कुछ सोचिये! मस्जिद नुमाइश की जगह नहीं. उन पैसों से आप तालीमी मीनार बुलंद कर सकते हैं. मदरसों में आधुनिक शिक्षा का नज़्म कर सकते हैं. सरकार का रोना कब तक कीजिएगा. कब तक इस सियासी दल से उस दल के गोद में उचकते रहियेगा! अब कोई मौलाना आज़ाद नहीं है कि जामा मस्जिद के मेंबर से वलवला अंगेज़ तक़रीर करे. मुल्क और ईमान का वास्ता दे. उसके आंसुओं का वजू आपको पिघला दे.
मुस्लिम समाज से खुद को बदलने की गुजारिश |
तुमने शादियों को एक कारोबार बना डाला. दहेज़ के बढ़ते नासूर तुम्हारी बेटियों को बुढा बना रहे हैं. वहीं इस मौक़े की फिज़ूल खर्ची. हुज़ूर ने भी बेटी को जहेज़ दिया था. यह हदीस आपके कुकर्मों को ढंक नहीं सकती. वहीं कई मुददे पर आपकी सांप्रदायिक सोच आप ही के पैरों पर कुल्हाड़ी मारती है. तुलसी का पौधा आप देश के हर गांव-क़स्बे के आँगन और शहरों की बालकोनियों में पाएंगे. कितना गुणकारी पौधा. हमारे अधिकांश भाई इसके प्रति श्रद्धा रखते हैं. लेकिन आपने शायद ही इसे किसी मुस्लिम के घर इस पौधे को देखा होगा. हम उसके गुणकारी लाभ से इसलिए वंचित हैं कि हिन्दू उसकी पूजा करते हैं, हमारा उससे क्या लेना-देना? बरादर! आप को बता दूं कि इस्लामी मान्यता अनुसार हजरत आदम बेआबरू होकर परवर दिगार के कूचे से निकले, तो जन्नत से अपने साथ कुछ खास पौधे भी लेते चले. इनमें एक तुलसी का भी पौधा था. और अब अधिकतर इतिहासकर एक मत हैं कि आदम हिंदुस्तान की धरती पर उतरे थे. यहाँ हिंदुस्तान से आशय भारत उपमहाद्वीप से है, जिसमें पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बर्मा, श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल और भारत आदि देश हैं.
आपकी हदीस कहती है कि दरिया का पानी सबसे पाक है. उसकी हिफाज़त करें. जल संरक्षण की भी ताकीद है. हुजूर कह गए, ख्वाह वजू ही क्यों न कर रहे हो और दरया किनारे क्यों न हो, पानी कम से कम खर्च करो! साथियों! बोलो तो ज़रा तुमने अपने गाँव, कस्बे और शहर की नदियों को प्रदूषण से बचाने के लिए क्या किया. गंगा और यमुना तुम्हारी भी उतनी ही है. कितनी मस्जिदें, दरगाहें, दर्सगाहें इनके किनारे हैं, इनकी आब्यारी पाते हैं. पड़ोसी के घर से गर धुआं उठता न दिखे तो तुरंत उसकी खोज-खबर करो. उसके यहाँ खाना पहुँचाओ. पडोसी आपका किसी भी मज़हब का हो. यह भी हदीस ही कहती है.
एक बार एक व्यक्ति हुज़ूर के पास आया. शिकायत की कि कोई गैर-मुस्लिम उसे नाहक़ सता रहा है. जब तफ्तीश हुई तो दोषी मुसलमान निकला. पैगम्बर बहुत नाराज़ हुए. कहा, मैं अल्लाह के सामने उस गैर-मुस्लिम के पक्ष में खड़ा रहूँगा. यह बताने का वाहिद मकसद है कि अपने पड़ोसियों से नेक व्यवहार कीजिये. ऐसी हरकत मत कीजिये जिससे किसी को परेशानी हो. किसी का दिल तोडना भी गुनाह है.
शायद यही सबब रहा होगा कि पहले मुग़ल बादशाह बाबर ने हुमायूँ को वसीयत में यह बात बगौर लिखी: 'हिन्दुस्तान के हिन्दू गाय की पूजा करते हैं, गौ कशी पर पाबंदी रखना.' दोस्तों! आप खुद बढ़कर क्यों नहीं एक भाई की श्रद्धा की खातिर गौ कशी पर बंदिश लगाने की मांग सरकार से करते हैं. आप इसका गोश्त नहीं खायेंगे तो मर नहीं जायेंगे. न ही मरने के बाद जहन्नम में चले जायेंगे. इसका खाना सवाब क़तई नहीं. इससे बीमारी ज़रूर फैलती है. जानवर पालना आपके पैगम्बरों का शौक़ रहा है. पालिए. इसके ढूध, मक्खन और घी का सेवन कर सेहत-बाग़ कीजिये. याद रखिये, जो क़ौम खुद को समय के साथ नहीं बदलती तो गर्त में समां जाती है.
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