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Updated: 30 जनवरी, 2023 09:45 PM
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पिछले दिनों एक फैक्टचेकर खूब सुर्ख़ियों में था. शांति के लिए नोबल प्राइज मिलते मिलते रह गया. क्या ऑल्ट न्यूज़ के जुबैर इकलौते फैक्टचेकर हैं? शायद मान्यता प्राप्त वे एक ही हैं वरना तो किस किस को जेल में डालते? खैर! ये तो हुआ लाइटर नोट पर! सवाल है जुबैर से क्या शिकायत हो सकती थी? बिल्कुल हो सकती थी, कइयों को तो आज भी हो रही है. लेकिन क्या शिकायत इतनी गंभीर थी कि उन्हें जेल में डाल दिया गया? शायद नहीं!

प्रथम दृष्टया किसी को अपने विचारों के लिए जेल में नहीं डाला जाना चाहिए, न उस पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए; खासकर उन विचारों के लिए जो केवल सोशल मीडिया पर जाहिर किए गए हों! हम एक जीवंत लोकतंत्र के बाशिंदे हैं, यदि कट्टर हैं भी तो चमड़ी मोटी होनी चाहिए. फिर कोई निंदक है भी तो उसकी स्वतंत्रता है निंदा करने की, ऐसे कानून हो ही क्यों कि उसके इस्तेमाल करने की इच्छा बलवती हो निंदक को सबक सिखाने के लिए? कबीर वाणी भी तो है, "निंदक नियरे राखिए ऑंगन कुटी छवाय, बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय."

लेकिन जुबैर से वाजिब शिकायत इसलिए बनती थी क्योंकि उन्होंने नूपुर शर्मा एपिसोड को व्यापकता दी. जरुरत नहीं थी क्योंकि मामला रफा दफा सा ही था ठीक वैसे ही जैसे पुराने कई हिंदू देवी देवताओं से संबंधित वाक़ये सोशल मीडिया पर और फिल्मों में भी आए गए हो गए थे. फिर जुबैर के इरादे नेक थे, संदेह है. ईशनिंदा को लेकर नजरिया दोहरे मापदंड लिए तो नहीं हो सकता ना!

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, Internet Censorshipकिसी को अपने विचारों के लिए जेल में नहीं डाला जाना चाहिए

वन नेशन वन राशन कार्ड/वन इलेक्शन की तर्ज पर नियम, कायदे, कानून, व्यवहार आदि सब भी एक समान ही होने चाहिए एक राष्ट्र इंडिया में फिर चाहे बंगाल हो , यूपी हो , बिहार हो, पंजाब हो, तमिलनाडु हो या कोई और राज्य. लेकिन ऐसा दिखता नहीं है. 'किसी' ने थ्योरी दी थी पिछले दिनों ही कि भारत एक राष्ट्र नहीं है बल्कि राज्यों का संघ है लेकिन तब वे सज्जन अपनी थ्योरी को प्रतिपादित नहीं कर पाए थे क्योंकि उनके इरादे नेक नहीं थे ; शायद आज कर पाएं तपस्वी संत जो कहे जा रहे हैं.

आज वाकई विभाजन दिखता है - भाजपा शासित राज्य बनाम गैर भाजपा शासित राज्य. ऐज़ ए सिटीजन ऑफ़ द ग्रेट नेशन, नो राकेट साइंस नीडेड टू नोट द डिफरेंस! कहाँ आप सप्ताह के कुछ खास दिनों या त्योहारों के मौसम में स्वतंत्र तौर पर मांस बेच सकते हैं, कहां आप कोई चुटकुला सुना सकते हैं, कौन सी जगह है जहाँ आप बिना डर प्राइमटाइम टीवी पर चीख-चिल्ला सकते हैं, कहां धार्मिक स्तर पर निर्धारित कपड़े पहनकर स्कूल जा सकते हैं, कहां सार्वजनिक स्थलों पर नमाज़ पढ़ सकते हैं या अपने धर्म स्थल में लाउडस्पीकर का इस्तेमाल कर सकते हैं, किस जगह की पुलिस आपको उठा सकती है, दलबदलुओं का सेफ हाउस किस राज्य में होगा, एक राज्य की न्यायालय राहत देगी तो दूसरे राज्य की लटका देगी जबकि इंडियन पीनल कोड की धारा सब जगह वही है आदि आदि!

महाराष्ट्र में स्टैंड अप कॉमेडियन मुनव्वर फारूकी बिना किसी डर के परफॉर्म करते थे ; हालांकि अब नहीं कर पाएंगे, लेकिन शरद पवार के खिलाफ अपनी फेसबुक पोस्ट को लेकर अभिनेत्री केतकी चितले महीने भर जेल रह आई थी. पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी अपने आलोचकों के साथ कैसा व्यवहार करती हैं, यह सबको पता है.

पिछले दिनों ही यादवपुर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अम्बिकेश महापात्रा, जिनकी ग्यारह साल पहले पहले पिटाई की गई थी और फिर गिरफ्तारी भी हुई थी और इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट की धारा 66A के तहत मुकदमा भी दर्ज किया गया था, कह रहे थे, "कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन!" उनका कसूर क्या था, ममता दीदी का कार्टून जो शेयर कर दिया था ! लेकिन जब तृणमूल के साकेत गोखले बार बार गिरफ्तार किये जाते हैं गुजरात पुलिस द्वारा तब तृणमूल उत्पीड़न का आरोप लगाती है. कहने का मतलब दूध का धुला तो कोई भी नहीं है, एक दुसरे पर उंगली उठाना ही राजनीतिक धर्म है.

राज्य की पुलिस अपनी सीमाओं के बाहर कितनी सक्रिय है, "निर्भर" करता है! हाल ही रोहित रंजन (टीवी एंकर) एपिसोड और पिछले दिनों ही तेजेन्दर बग्गा एपिसोड सबने देखा है, सुना है और समझा भी है. तीन तीन राज्यों की पुलिस एक दूसरे के खिलाफ ताल ठोकती नजर आयी हैं. वैसे एक बार बंगाल पुलिस और दो बार यूपी पुलिस भी जलवा दिखा चुकी है. बंगाल पुलिस रोडडूर रॉय को गोवा से उठा ले आयी और यूपी पुलिस ने तो इस तरह का कारनामा दो साल में दो बार किया, तमिलनाडु से उठा लिया. वैसे तब कोई समस्या नहीं होती जब क्राइम और क्रिमिनल का राजनीति से कोई वास्ता नहीं होता. तब सभी पुलिस 'भाई भाई' हैं!

अब तो भाजपा के आलोचकों और समर्थकों के आधार पर देश में सुरक्षित और असुरक्षित जगहों को लेकर एक परसेप्शन बन चुका है. भाजपा शासन और गैर भाजपा शासन का टकराव तो अब कानून और व्यवस्था को भी ठेंगा दिखा रहा है. हालिया वर्षों में महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, छत्तीसगढ़ समेत कई राज्यों ने सीबीआई जांच को ना कहकर केंद्र की भाजपा सरकार को चुनौती दी है और केंद्र ऐसे में एनआईए को तैनात करके उन्हें पीछे धकेल रहा है क्योंकि जब एनआईए एक्टिवेट की जाती है, राज्य की अनुमति गैर जरूरी हो जाती है.

कुल मिलाकर कल फर्क जमीनी थे और फर्क की वाजिब वजहें थी. हम कहते थे उत्तर और दक्षिण; कहीं बंगाली है तो कहीं तमिल तो कहीं मराठा और वहां बिहारी है; गरीब राज्य बनाम अमीर राज्य; कुछ राज्य ज्यादा टैक्स देते हैं तो कुछ राज्य कम; कहीं चैत्र नवरात्रि नये साल की शुरुआत है तो कहीं गुडी पड़वा है तो वहां पोईला वैशाख! और फिर दम भरते थे "विविधता में एकता." लेकिन आज तो एक दूसरे को नीचा दिखाने की कुत्सित राजनीति ने फर्क के नैरेटिव ही बदल दिए हैं.

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लेखक

prakash kumar jain prakash kumar jain @prakash.jain.5688

Once a work alcoholic starting career from a cost accountant turned marketeer finally turned novice writer. Gradually, I gained expertise and now ever ready to express myself about daily happenings be it politics or social or legal or even films/web series for which I do imbibe various  conversations and ideas surfing online or viewing all sorts of contents including live sessions as well .

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