निकाहनामे की भाषा में फेरबदल करना बड़े परिवर्तन की छोटी पहल है!
इस्लाम धर्म में निकाहनामे में बड़ा महत्वपूर्ण परिवर्तन देखने को मिला है. काजियों की बदौलत अब निकाहनामा ट्रेडिशनल से मॉडर्न हुआ है. अब जो निकाहनामे शादियों की रस्मों में इस्तेमाल किये जा रहे हैं वो उर्दू भाषा में तो हैं ही, साथ ही लोग इन्हें आसानी से समझ सकें इसलिए इनमें अब हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं का भी भरपूर इस्तेमाल किया जा रहा है.
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हिंदू धर्म हो या फिर इस्लाम या कोई और धर्म. कई ऐसी चीजें हैं जिनको लेकर बुद्धिजीवियों का मत है कि समाज की बेहतरी के लिए उन्हें रिफार्म करना चाहिए. ऐसे वर्ग का मानना है कि यदि अपग्रेड की गुंजाइश है तो कमियों को दूर करना न केवल कई मायनों में फायदेमंद हैं बल्कि वो समाज जहां धर्म रिफार्म हो रहा है, अन्य धर्मों के सामने उदाहरण भी सेट करता है. अब क्योंकि बात रिफार्म और धर्म की चल रही है तो क्यों न इस्लाम धर्म और इसके अंतर्गत आने वाले निकाहनामे का जिक्र किया जाए जिसमें बड़ा महत्वपूर्ण परिवर्तन देखने को मिला है. काजियों की बदौलत निकाहनामा ट्रेडिशनल से मॉडर्न हुआ है. ध्यान रहे कि अब जो निकाहनामे शादियों की रस्मों में इस्तेमाल किये जा रहे हैं वो उर्दू भाषा में तो हैं ही, साथ ही लोग इन्हें आसानी से समझ सकें. इसलिए इनमें अब हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं का भी भरपूर इस्तेमाल किया जा रहा है. साथ ही अब निकाहनामे में मियां और बीवी की तस्वीरें भी रहेंगी. इससे होगा ये कि यदि पति पत्नी के बीच विवाद की स्थिति बनती है तो साबित करना आसान होगा कि मुफ़्ती/ मौलाना/काजी ने जिनका निकाह करवाया है वो लोग वही हैं.
निकाहनामे में फेरबदल कर मुस्लिम धर्मगुरुओं और काजियों द्वारा एक बड़ी पहल को अंजाम दिया जा रहा है
जैसा कि हम बता ही चुके हैं अब खुद काजी और मुफ़्ती भी हिंदी अंग्रेजी वाले निकाहनामे की वकालत कर रहे हैं. तो इस रिफार्म का जो सबसे बड़ा फायदा है वो ये कि निकाहनामे के जरिये हिंदी या इंग्लिश में निकाह होने से सरकारी कार्यों व विदेश जाने आदि के मामलों में भी निकाहनामा सुगमता लाएगा और व्यक्ति को अनुवाद कराने जैसी चुनौतियों का सामना नहीं करना पड़ेगा.
ध्यान रहे पूर्व में दो गवाहों की मौजूदगी में काजी निकाह कराते थे. तब उस दौर में निकाहनामे का चलन आज के मुकाबले कहीं कम था तो कई बार कपल के साथ साथ काजियों और मुफ्तियों को भी कानूनी पेचीदगियों का सामना करना पड़ा है. बाद में उर्दू में निकाह नामा बना जिसे वक़्त की ज़रूरत के चलते अप ग्रेड किया गया और आज वो निकाह नामा हमारे सामने हैं जो दो से अधिक भाषाओं में है.
बात आगे बढ़ाने से पहले ये बता देना भी बहुत जरूरी है कि पहले निकाहनामे में शौहर और बीवी की फ़ोटो नहीं लगती थी जिसके चलते कई सामाजिक कुरीतियां विकसित हुईं और हमने ऐसे भी मामले देखे जहां एक बीवी होते हुए व्यक्ति ने दूसरा निकाह किया.
अब चूंकि निकाहनामे में पति और पत्नी दोनों की तस्वीरें हैं इसलिए गड़बड़ घोटाले की संभावना दाल में नमक बराबर है. मुस्लिम धर्म के अंतर्गत काजियों के बलबूते समय समय पर निकाहनामा अप ग्रेड हुआ है होने को तो ये एक बहुत साधारण सी बात है लेकिन ये विशेष तब होती है जब इसका पालन एक ऐसे समाज द्वारा किया जाए जो अपने कट्टरपंथ और रूढ़िवादिता के लिए मशहूर हो और जमाने भर से तमाम तरह की आलोचना का सामना कर रहा हो.
आखिर मौजूदा वक्त में क्यों आई निकाहनामे को अपग्रेड करने की जरूरत
सवाल होगा कि आखिर क्यों एक परंपरागत चीज से छेड़छाड़ की गई और उसे अपग्रेड किया गया? बात चूंकि एक धर्म और उससे जुड़ी मान्यता में हुई फेर बदल से जुड़ी है तो ये सवाल माकूल भी है. तो जवाब देते हुए हम भी बस इतना ही कहेंगे कि आज मुस्लिम धर्म मे भी ऐसे युवकों और युवतियों की भरमार है जो उर्दू लिखना पढ़ना तो छोड़ ही दीजिये जिन्हें उर्दू बोलना तक नहीं आता.
खुद सोचिए अब अगर ऐसे लोगों के पास 100 टका उर्दू में छपा निकाहनामा पहुंच जाए तो यकीनन इनकी स्थिति काला अक्सर भैंस बराबर वाली होगी. अब क्योंकि उर्दू वाले निकाहनामे में भरपूर हिंदी और इंग्लिश है कम से कम आदमी ये तो समझ ही जाएगा कि जो लिखा है आखिर उसका अर्थ है क्या. वहीं अब जो निकाहनामे चलन में हैं उनमें दूल्हा दुल्हन का निकाह कराने वाले काजी की मोहर भी है. इससे न केवल पहचान में आसानी होगी बल्कि इससे भी कई कुरीतियों पर नकेल कसेगी.
कहते हैं कि छोटी पहल ही बड़े परिवर्तन लाती है. इसलिए देखना दिलचस्प रहेगा कि निकाहनामे की तर्ज पर क्या मुस्लिम धर्म भी अपने को अपग्रेड कर पाता है या नहीं जवाब समय देगा. ध्यान रहे मुस्लिम धर्म या ये कहें कि इस्लाम पर लगातार कट्टरपंथ और रूढ़िवादिता के आरोप लगे हैं. और अब जबकि निकाहनामे के जरिये एक बड़ी पहल को अंजाम खुद काजियों ने दिया है. तो कहना गलत नहीं है कि आने वाले समय में शायद हम और कई बड़े परिवर्तन के साक्षी बन जाएं.
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