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Updated: 29 दिसम्बर, 2019 06:59 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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निर्भया मामले (Nirbhaya Case Timeline) की शुरुआत 16 दिसंबर 2012 से हुई, जब राम सिंह (Ram Singh), मुकेश सिंह (Mukesh Singh), अक्षय ठाकुर (Akshay Thakur), विनय शर्मा (Vinay Sharma), पवन गुप्ता (Pawan Gupta) और एक नाबालिग (Juvenile) ने निर्भया (Nirbhaya) का गैंगरेप किया. ये घटना गैंगरेप से भी बड़ी थी, जिसे दरिंदगी भरी हैवानियत कहना चाहिए. निर्भया की हालत इतनी खराब थी कि दिल्ली में उसका इलाज भी नहीं हो सका और उसे एयरलिफ्ट कर के सिंगापुर ले जाना पड़ा. आखिरकार 29 दिसंबर 2012 को निर्भया की सांसों की डोर टूट गई. इस मामले में 18 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अक्षय ठाकुर की रीव्यू याचिका खारिज की तो लगा कि अब चंद दिनों में निर्भया के दोषी फांसी के तख्ते पर लटकते दिखेंगे, लेकिन पहले सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने दया याचिका के लिए मोहलत दे दी और फिर दोषियों में से एक पवन गुप्ता ने अपराध के समय खुद के जुवेनाइल (Juvenile Act) होने का दावा सुप्रीम कोर्ट में ठोंक दिया. इसके बाद विनय शर्मा, पवन गुप्ता और अक्षय ठाकुर ने राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दायर कर दी. निर्भया से गैंगरेप की वारदात को 7 साल पूरे हो चुके हैं और जिस स्पीड से ये केस चल रहा है, कोई नहीं कह सकता कि कब जाकर इन दोषियों को फांसी होगी. शुरू से लेकर आखिर तक इस मामले में लेट-लतीफी दिखी है.

Nirbhaya Case Timeline Hight Court Supreme Courtनिर्भया की मौत को 7 साल हो चुके हैं, लेकिन अब तक उसके दोषियों को फांसी नहीं हुई.

ट्रायल कोर्ट ने तो 9 महीने में ही फांसी दे दी

निर्भया मामले में अगर तेजी से फैसला सुनाने की बात करें तो ट्रायल कोर्ट ने 9 महीनों में अपना फैसला सुना दिया था, लेकिन हाईकोर्ट (Delhi High Court) और सुप्रीम कोर्ट की देरी के चलते निर्भया के दोषी आज भी जिंदा हैं. आइए जानते हैं ट्रायल कोर्ट में इस मामले में क्या-क्या हुआ.

- 16 दिसंबर 2012 को निर्भया का गैंगरेप करने वालों के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने एक्शन लिया. 3 जनवरी 2013 को दिल्ली पुलिस ने 5 वयस्क और 1 नाबालिग के खिलाफ गैंगरेप, हत्या की कोशिश, अगवा करने, लूट और अप्राकृतिक काम करने का चार्ज लगाते हुए चार्जशीट दायर की.

- 28 जनवरी 2013 को जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने फैसला सुनाया कि इस अपराध का छठा आरोपी जुवेनाइल है.

- 2 फरवरी 2013 को बाकी पांचों अपराधियों के खिलाफ हत्या समेत 13 मामलों में चार्जशीट दायर की.

- 11 मार्च 2013 को तिहाड़ जेल में बंद दोषियों में से एक राम सिंह ने फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली.

- 21 मार्च 2013 को रेप से जुड़े कानून में बदलाव किया गया. नया एंटी रेप लॉ बना, जिसके तहत बार-बार ऐसे अपराध करने वाले के लिए मौत की सजा तय की गई.

- 31 अगस्त 2013 को जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने नाबालिग अपराधी को गैंगरेप और हत्या के लिए 3 साल की अधिकतम सजा सुनाते हुए सुधार गृह भेज दिया.

- 13 सितंबर 2013 को फास्ट ट्रैक कोर्ट ने चार दोषियों को मौत की सजा सुनाई और ट्रायल कोर्ट ने फिर से केस दिल्ली हाई कोर्ट के पास भेज दिया, जहां उनकी फांसी पर मुहर लग सके.

हाईकोर्ट ने 5 महीने में फैसला सुना दिया, लेकिन...

1 नवंबर 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने निर्भया केस में सुनवाई शुरू की और 13 मार्च 2014 को चारों की फांसी की सजा बरकार रखने का फैसला सुना दिया. यानी देखा जाए तो 5 से भी कम महीनों में दिल्ली हाईकोर्ट ने निर्भया गैंगरेप मामले में अपना फैसला सुना दिया. लेकिन सुप्रीम कोर्ट पहुंचने में इसे कई साल लग गए, लेकिन क्यों?

इसी बीच नाबालिग की रिहाई कि दिन नजदीक आ गया, जिस पर हर तरफ खूब प्रदर्शन हुए. मांग की जाने लगी की उसे रिहा ना किया जाए, लेकिन 20 दिसंबर 2015 को दिल्ली हाईकोर्ट ने नाबालिग को रिहा किए जाने पर रोक लगाने से मना कर दिया और वह सुधार गृह से रिहा होकर अपने घर चला गया.

सुप्रीम कोर्ट में चला कानूनी दावपेंच का असली खेल

16 दिसंबर 2012 को हुए रेप के मामले को सुप्रीम कोर्ट पहुंचते-पहुंचते करीब साढ़े तीन साल लग गए और 3 अप्रैल 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई शुरू की. ये केस कितना धीरे चला इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि फांसी की सजा को बरकरार रखने के दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले पर मुहर लगाने में ही सुप्रीम कोर्ट को करीब साल भर लग गए. 27 मार्च 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में अपना फैसला सुरक्षित रखा और 5 मई 2017 को अक्षय ठाकुर, विनय शर्मा, पवन गुप्ता और मुकेश सिंह की फांसी की सजा को बरकरार रखा.

मौत की सजा बरकरार रखने के बाद 9 जुलाई 2018 को निर्भया के दोषियों पवन, मुकेश और विनय की रिव्यू याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया. यानी करीब साल भर सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ रीव्यू याचिका पर फैसला करने में लगा दिए. इसके बाद निर्भया केस जैसे किसी ठंडे बस्ते में चला गया. आखिरकार 29 अक्टूबर 2019 को तिहाड़ जेल ने निर्भया के दोषियों को 7 दिन का समय देते हुए कहा कि या तो वह दया याचिका दायर करें, वरना तिहाड़ जेल उनके खिलाफ कोर्ट जाकर ब्लैक वारंट ले आएगा. यानी उन्होंने सीधे-सीधे कहा कि अब फांसी पर लटकने का वक्त हो गया है. यहां से एक बार फिर मामला गरम हो गया है और फिर कैसे एक फाइल टेबल से टेबल घूमती है, वो वाकया शुरू हुआ.

महीने भर टेबल से टेबल तक घूमती रही दया याचिका

8 नवंबर 2019 को विनय शर्मा ने दिल्ली सरकार के पास दया याचिका दायर की, जिसे 29 नवंबर को दिल्ली गृह मंत्रालय ने चीफ सेक्रेटरी को भेजा. वहां से चीफ सेक्रेटरी ने 30 नवंबर को इसे गृह मंत्री सत्येंद्र जैन के पास स्पेलिंग चेक करने के लिए भेजा. जैन ने 1 दिसंबर को इसे एलजी ऑफिस भेज दिया. 2 दिसंबर को एलजी ने विनय की दया याचिका खारिज करने के प्रस्ताव को आगे गृह मंत्रालय को भेज दिया. गृह मंत्रालय ने 6 दिसंबर को इस याचिका को राष्ट्रपति के पास भेज दिया और वहां भी विनय की याचिका को खारिज करने पर मुहर लग गई. तो एक दया याचिका इस तरह खारिज होने में महीने भर लग गए.

कानून का तो मजाक बना दिया निर्भया के दोषियों ने

विनय की दया याचिका खारिज होते ही 10 दिसंबर 2019 को निर्भया के दोषियों में से एक अक्षय ठाकुर ने रीव्यू याचिका दायर कर दी, जिसने पहले याचिका दायर नहीं की थी. यानी ये कहा जा सकता है कि एक सोची समझी प्लानिंग के तहत उसने पहले रीव्यू याचिका दायर नहीं की थी, ताकि बाद में केस को कुछ दिनों तक लटकाया जा सके. खैर, हैदराबाद एनकाउंटर के बाद एक बार फिर देश भर में निर्भया को इंसाफ दिलाने और चारों दोषियों को फांसी पर लटकाने की मांग ने जोर पकड़ लिया था, जिसके चलते निर्भया के मामले ने भी सुप्रीम कोर्ट में तेजी पकड़ ली.

18 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अक्षय की रीव्यू याचिका को भी खारिज करते हुए 1 हफ्ते का समय दिया, ताकि इसमें दया याचिका दायर करनी हो तो कर लें. इसी बीच अब पवन गुप्ता ने अपराध के वक्त खुद के जुवेनाइल होने का दावा कर दिया है. एक ओर निर्भया के मां-बाप के लिए इंसाफ में होती एक-एक दिन की देरी भारी लग रही है, वहीं निर्भया के दोषी और उनके वकील कोई न कोई हथकंडा अपनाकर इस केस को खींचते जा रहे हैं. देखना दिलचस्प रहेगा कि इस साल भी इन्हें फांसी मिलती है या फिर अगले साल तक इंतजार करना होगा. वाकई, हमारी कानून व्यवस्था एक अपराधी को खुद को बचाने के इतने मौके देती है कि वह केस को घुमाता रहे और उम्र गुजर जाए.

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