लड़की की ना का मतलब ना ही होता है ये समझना क्या इतना मुश्किल है?
मैं ऑफिस में गॉसिप का विषय नहीं बनना चाहती थी. इसके अलावा 21 साल की उम्र में मुझे कम से कम इतना तो समझ आ गया था कि चीजें बहुत कॉम्प्लेक्स हैं.
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मुझे जॉब मिल गई थी. रिपोर्टिंग की ये पहली जॉब थी. कॉलेज से पास हुए मुझे कुछ महीने ही बीते थे और मैं एक बड़ी पत्रिका के साथ जुड़ गई थी. मेरे साथी रिपोर्टर मुझसे उम्र में बड़े थे और अविवाहित भी. एक लड़के ने मुझे भी बाहर खाने पर चलने का प्रस्ताव दिया. मेरे मना करने पर उसने दोबारा मुझे कभी परेशान नहीं किया. मुझसे कुछ साल सीनियर मेरा एक सहयोगी ने मुझे कॉफी पीने के लिए ऑफर किया, जिसे मैंने ठुकरा दिया.
इसके बाद एक बार वो मेरे पास आया और पूछा- तुम्हें बैलून राइड करनी है? कोई कंपनी ये मजेदार राइड करा रही थी और उसके लिए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस है. मैं उत्सुक हो गई थी. और मुझे लगा ये तो एक प्रेस कॉन्फ्रेंस है. वहां तो आस-पास दर्जनों पत्रकार होंगे. जब हम वहां जाने के लिए निकले तो पता चला कि वो बैलून राइड किसी नेशनल पार्क में है. चारों तरफ मीलों घना जंगल. काफी दूर घने जंगल में जाने के बाद उसने एक सुनसान जगह पर स्कूटर रोक दिया.
लड़की की ना का मतलब ना ही होता है
अब मैं थोड़ी नर्वस हो गयी थी. मैं वहां से निकल जाना चाहती थी. वो मुझे रुकने के लिए मनाने लगा. लेकिन मैं वापस जाने की जिद पर अड़ी रही. आखिरकार थक कर उसने मुझे पास के एक ऑटो स्टैंड पर छोड़ दिया. इस घटना के बारे में मैंने ऑफिस में किसी से कुछ नहीं कहा. अब वो मुझे परेशान करने के तरीके खोजने लगा. कभी वो मेरी पीठ या कंधे पर हाथ मारता तो कभी अचानक मेरी कंप्यूटर स्क्रीन में कुछ देखने के बहाने मेरी कुर्सी पर झुक जाता.
मुझे पता था कि सभी पुरुषों को ये बात अच्छे से समझ आ रही है कि वो मेरी मर्जी के खिलाफ मुझे छूता है और इसके लिए कई बार सभी के सामने मैंने उसे मना भी किया है पर वो नहीं सुनता. एक दिन अपने चीफ रिपोर्टर के सामने ही मैं उस पर चिल्ला पड़ी. मैंने कहा कि- 'मैंने कई बार तुम्हें कहा है कि मुझे मत छुओ. बस अब मत करो ये आखिरी बार कह रही हूं मैं.' इसके बाद उसने दुबारा मेरा साथ ऐसा कभी नहीं किया.
आप कहेंगे कि मैंने उत्पीड़न की शिकायत क्यों नहीं की? इसके पीछे कारण शायद ये था कि मैं ऑफिस में गॉसिप का विषय नहीं बनना चाहती थी. इसके अलावा 21 साल की उम्र में मुझे कम से कम इतना तो समझ आ गया था कि चीजें बहुत कॉम्प्लेक्स हैं. उसने मुझे बाहर चलने के लिए कहा इसमें कोई बुराई भले नहीं थी लेकिन मेरे मना करने के बाद भी उसका मुझे छूना गलत था.
महिला की ना को बर्दाश्त करना सीखें
मैं अपने पुरुष पाठकों को ये बताना चाहती हूं कि जो महिलाएं ऑफिसों में काम करती हैं, जो कैफे में अजनबियों से मिलने के लिए जाती हैं और ये देखती हैं कि हम उनके साथ काम कर सकते हैं या नहीं, जो मीटिंग के लिए घरों को ही ऑफिसों में तब्दील कर दिए गए जगहों पर जाती हैं, जो ये सोच भी नहीं सकतीं कि उस ऑफिस में और भी कई लोग बैठे हो सकते हैं- ऐसी औरतें ना तो उपलब्ध होतीं हैं ना ही सेक्स के प्रति उदास.
मैं अपने पाठकों को कहना चाहती हूं. दुनिया मुश्किलों से भरी पड़ी है. यहां प्यार और अच्छी नौकरी मिलना बहुत मुश्किल है. और अपने इस तरीके के व्यवहार से अपने सहयोगियों के लिए और बदतर मत बनाएं. अगर सच में आप उसे पसंद करते हैं और आपको लगता है कि वो भी आपको पसंद करती है, तो उससे पूछें कि क्या वो आपके साथ बाहर जाना चाहती है. इस सवाल के लिए ऑफिस की जगह किसी सार्वजनिक का चुनाव करें. अगर ऑफिस के बाहर वो आपसे मिलना नहीं चाहती तो समझ जाइए कि वो आपके साथ बाहर जाने में इंटरेस्टेड नहीं है. अगर उसने ना कह दिया है और उसके इंकार से आप दुखी हैं, गुस्सा हैं या इस रिजेक्शन को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे तो अपनी नौकरी छोड़ दें. आप अपनी इच्छाओं और अहंकार को दबा नहीं पा रहे तो इसमें उसकी कोई गलती नहीं है और जॉब की हकदार वो आपसे ज्यादा है.
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