ऐसी दुनिया जहां किसी को हराकर जीतना गुनाह है
नार्वे के लोगों को अपने बच्चे की जीत पर खुशी नहीं होती, क्योंकि यहां का कानून कहता है कि आप खुद को किसी से भी ज्यादा बेहतर नहीं समझ सकते.
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कुछ दिनों पहले बेटी को फुटबॉल कैंप ले गया. कई बच्चे साथ खेल रहे थे, लेकिन यह पिछड़ने लगी. देखा, बाकी के तेज बच्चे भी धीमे हो गये, सबने गति कम कर ली, बॉल पास किया और मेरी बेटी को गोल करने दिया. फिर जोश में यह भी दौड़ी, खेल की गति बढ़ी और सब मिल कर खेलने लगे एक गति से.
यह कैसा समाज है जहां टॉप करना या जीतना गुनाह है? अगर दो लोग रेस लगाते हैं, और दोनों में फासला ज्यादा हो तो आगे वाला गति धीमी कर देता है. यह एक नैतिक कानून है स्कैंडिनैविया में, जिसे 'यैंतालोव' या 'Law of Jante' कहते हैं.
जीत टीम की होती है किसी एक की नहीं |
यह कानून कहता है कि आप खुद को दूसरों से ज्ञानी, स्मार्ट, बेहतर या अमीर न समझें. आप किसी की कमजोरी पर न हंसे. यह भारत में भी कहा जाता है, पर यहां का बच्चा-बच्चा इसका पालन करता है. बल्कि कोई मां-बाप भी यह नहीं कह सकते कि उनके बेटे ने फलां मेडल जीता. यह खुशी उन्हें छुपानी होगी, क्योंकि किसी और के बेटे ने नहीं जीता.
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यह सब मुझे अजीब लगता है. 'किलर इंस्टिंक्ट' है ही नहीं, तभी ओलंपिक में कुछ खास नहीं करते. विंटर ऑलंपिक के दशकों से विजेता हैं, पर वो तो बर्फीला देश है, विंटर गेम इनकी रगों में है.
एक बच्चे को यह समझाना कि तुम्हें टॉप नहीं करना, कितना अजीब लगता है. मैनें पिताओं को इस विषय पर समझाते भी देखा है, कि तुम कहां आगे स्की किये जा रहे हो? पीछे मुड़कर देखो, सबके साथ चलो. अगर मेरा बच्चा आगे जाता, तो मैं रिफ्लेक्स से ताली बजाता, पर यहां उसे डांट कर पीछे कर देते हैं.
बच्चों को किसी और से आगे न निकलने की हिदायत दी जाती है |
यहां अधिकतर खेल या परिक्षाएं भी ग्रुप-टास्क होती हैं. जीत या हार 'ग्रुप' की होती है, एक की नहीं. और यह ग्रुप भी हर दूसरे दिन बदल दिए जाते हैं. किसी से पूछो 'बेस्ट-फ्रेंड', शायद न कह पाए. 'बेस्ट' शब्द ही गायब कर दिया है इन मंदबुद्धियों ने. खैर...
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