‘संस्कृति’ अभी तक कन्फ्यूज्ड है
बस की विंडो सीट पर सोती हुई लड़की जब साथ वाली सीट पे बैठे आदमी का हाथ उसकी छाती पे पाती है, तो गुस्से में उस आदमी को तीन चार थप्पड़ मार देती है. आसपास के लोगों का रिएक्शन एकदम नॉर्मल, मानो कुछ हुआ ही नहीं.
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पहला दृश्य: एक लड़का और लड़की पार्क में बैठे हैं. लड़के का हाथ लड़की की छाती के पास है. लड़की की सहमति है और वो सहज है. आसपास के लोग उन्हें ‘घूरकर’ देखते हुए आ जा रहे हैं. तभी भारतीय संस्कृति के तथाकथित रक्षक वहां पहुंचते हैं और उस ‘रोमियो’ को सबक सिखाकर ‘संस्कृति’ को तार-तार होने से बचा लेते हैं.
दूसरा दृश्य: लड़की ट्रेन से जा रही है. एक लड़का उसे घूर रहा है. लड़की असहज है. लड़के की हिम्मत बढ़ती है और उसे छूना शुरू कर देता. लड़की डर के मारे चुप है. और घरवाले तय करते है कि अगली बार कभी कहीं अकेले नहीं जाएगी, और ‘संस्कृति’ को बचा लिया जाता है.
तीसरा दृश्य: दो बहनें बस से जा रही हैं. तीन लड़के उन्हें छेड़ रहे हैं. दोनों विरोध करती हैं और बैल्ट से तीनों की पिटाई कर देती हैं. आसपास के लोग सिर्फ तमाशा देख रहे हैं. इस बीच कोई इस घटना की वीडियो बना लेता है. वीडियो वायरल होता है. लोग कह रहे हैं लड़कियां बहादुर हैं. सरकार उन्हें बहादुरी का अवार्ड देती है. इस बीच लड़कों के समर्थन में खाप पंचायत उतर आती है. और शुरू हो जाता है उन लड़कियों को ट्रोल करना. कोई कहता कि फेमस होने के लिए वीडियो बनाती हैं ये लड़कियां. तो कोई कहता छेड़खानी जैसा कुछ हुआ ही नहीं, वरना बस के बाकी लोगों ने भी रिएक्ट किया होता (क्योंकि बाकी लोगों ने रिएक्ट नहीं किया तो मतलब छेड़खानी हुई ही नहीं) सरकार अवार्ड वापिस ले लेती है. निष्कर्ष निकाला जाता है कि वे लड़कियां ही चरित्रहीन हैं और तीनों लड़के निर्दोष. तीनों लड़कों को बचाकर एक बार फिर ‘संस्कृति’ को बचा लिया जाता है.
दृश्य चार: लड़की बस की विंडो सीट पे बैठी सोती हुई जा रही है. अचानक उसकी आंख खुलती है और देखती है कि साथ वाली सीट पे बैठे आदमी का हाथ उसकी छाती पे है. (यहां लड़की की सहमति नहीं है) गुस्से में तीन चार थप्पड़ वो उस आदमी को मार देती है. आसपास के लोगों का रिएक्शन एकदम नॉर्मल मानो कुछ हुआ ही नहीं. थप्पड़ खाने के बाद भी वो आदमी वहीं बैठा रहा. न एण्टी रोमियो स्कवॉड वहां पहुंचता है और न लड़की डर के चुप बैठती है. न ही उन दोनों बहनों जितनी हिम्मत करके उस आदमी को उस सीट से उठाती है ताकी बाद में कोई उसको ट्रोल करके चरित्रहीन न बोल दे.
‘संस्कृति’ अभी तक कन्फ्यूज्ड है.
यहां पहले और तीसरे प्वाइंट से बहुतों को दिक्कत हो सकती है. दोनों प्वाइंट में कॉमन बात थी लड़की का अपना डिसीजन. जहां पहले प्वाइंट में उसकी सहमति होती है तो तीसरे में उसका कड़ा विरोध करती है. दूसरे प्वाइंट पे कोई चर्चा नहीं हुई जबकि सबसे ज्यादा होता वैसा ही है. रही बात चौथे प्वाइंट की तो छेड़खानी करने वाले इतना तो मानकर चलते ही हैं कि लड़की ज्यादा से ज्यादा गाली दे देगी या एकाध थप्पड़ मार देगी.
इन चारों प्वाइंट में जो असल मुद्दा था वो यही था कि जब भी कभी कहीं उपरोक्त चार घटनाओं जैसा कुछ होता है तो घटना होने के समय और उसके होने के बाद लोगों की प्रतिक्रिया क्या होती है. और ये जिन लोगों की मैं बात कर रही हूं, ये कोई एलियन नहीं हैं. ये हम और आप ही हैं.
याद कीजिए कितनी बार आपके सामने किसी लड़की से छेड़छाड़ हुई और आपने प्रतिरोध किया?
याद कीजिए जब कोई कपल हाथ में हाथ डालकर चल रहा हो और आपने घूरकर देखा या नहीं?
याद कीजिए आपकी अपनी बहन के साथ ऐसा हुआ हो और आपने उसे "ध्यान" रखने की नसीहत दी कि नहीं?
और ये भी याद कीजिए जब भी कोई छेड़छाड़ की घटना आपने खुद झेली या किसी और के साथ होते देखी तो कितनी बार आपने अपने घर के लड़कों और आदमियों को कभी ऐसा न करने की नसीहत दी?
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