दिल्ली में साफ हवा भी बिकने लगी, अब तो जागो सरकार!
दिल्ली में बढ़ता प्रदूषण भले ही सरकार के लिए बड़ी बात न हो लेकिन कारोबारियों के लिए हाथ आया मौका ही है जिसका फायदा उठाकर अपना धंधा चमकाया जा रहा है. South Delhi में लोगों के लिए oxygen bar खुला है जहां साफ हवा बेची जा रही है.
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भारत कई मामलों में दुनिया भर में अपना नाम कर चुका है, प्रदूषण में भी. WHO के आंकड़ों के मुताबिक दुनिया के 20 सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में से 14 शहर भारत के ही हैं. जिनमें बाजी मारी है राजधानी दिल्ली ने. अब इसके बाद कहने सुनने को कुछ नहीं रह जाता. प्रदूषण से बचने के प्रयास किए जा रहे हैं, निपटने के नहीं. सरकार के हाथ में सिर्फ इतना है कि वो प्रदूषण के नाम पर स्कूलों की छुट्टी कर सकती है. इसके अलावा दिल्ली सरकार का ऑड ईवन चल रहा है. सरकार के सिर्फ यही प्रयास आप देख सकते हैं. और ये कहने में जरा भी हिचक नहीं होती कि ये सिर्फ खानापूर्ति है. बच्चों को भी कितने दिन घर पर बैठाया जा सकता है, और उनका क्या जो स्कूल पास कर चुके हैं?
लेकिन ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जिनके लिए वायु प्रदूषण आपदा नहीं बल्कि हाथ आया हुआ मौका है. जिसका फायदा उठाकर अपना धंधा चमकाया जा रहा है. South Delhi के एक बड़े से मॉल में बड़े लोगों के लिए बार खोला गया है. ये एक oxygen bar है, नाम है Oxy Pure.
यहां हर सांस की कीमत है
यहां लोगों को सांस लेने के लिए साफ हवा यानी ऑक्सीजन मुहिया करवाई जा रही है. खासतौर पर उन लोगों के लिए जिन्हें jet lag से आराम चाहिए, ठीक से नींद नहीं आ रही, हैंगओवर हो यहां तक कि डिप्रेशन से जूझ रहे लोगों को भी. यहां 15 मिनट सांस लेने की कीमत है 299 रुपए और अगर चाहते हैं कि सांस के साथ खुशबू भी आए तो कीमत 499 तक चली जाती हैं.
इसके अलावा यहां ऑक्सीजन की बोतलें भी मिल रही हैं जिसकी कीमत 650 रुपए है. लेने वाले ले भी रहे हैं. पैसेवालों की कमी भी तो नहीं है.
650 रुपए में मिलेगी साफ हवा की बोतल
प्रदूषण का भी अच्छा खासा मार्केट है
सिर्फ यही नहीं साफ हवा पाने और प्रदूषित हवा से बचने के लिए बहुत से प्रोडक्ट उपलब्ध हैं और तेजी से अपना बाजार जमा रहे हैं. एयर प्यूरिफायर की डिमांड बढ़ रही है, वहीं mask का बाजार भी खूब सजा हुआ है. बताया जा रहा है कि 2023 तक भारत में air purifier का मार्केट 39 मिलियन डॉलर का हो जाएगा. इसके अलावा नाक में पहनने के फिल्टर्स (nasofilter) भी बाजार में उपलब्ध हो रहे हैं. इन्हें nano technology का इस्तेमाल करके एक सामान्य कपड़े के धागे के व्यास को 100 गुना कम करके नैनो फाइबर बनाया है जो प्रदूषकों को छानने का काम करता है. छोटे से फिल्टर को सीधे नाक पर ही चिपका लिया जाता है.
नाक के लिए फिल्टर उपलब्ध हैं
इसके अलावा भी बहुत कुछ है जिसे आज के युवा बाजार में ला रहे हैं. कुछ दिनों में 'ऑक्सीज़न कॉकटेल' और 'लंग टी' जैसे प्रोडक्ट भी उपलब्ध हो जाएंगे. आप इस तरह के बाजार को देखकर समझ सकते हैं कि दिल्ली में प्रदूषण के हालात किस तरह के हैं.
ये सच है कि आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है. जरूरत है तभी चीजें उपलब्ध भी करवाई जा रही हैं. लेकिन आज हमारी जरूरत क्या है इस बात को समझने की जरूरत है. आवश्यकता प्रदूषण से बचने की तो है ही लेकिन उससे कहीं ज्यादा उससे निपटने की है. बाजार तो बैठा ही इसलिए है कि लोगों की जरूरतों का फायदा उठा सके और उससे मुनाफा कमा सके. लेकिन इस दिशा में सरकार के प्रयास ही चिंता का विषय बने हुए हैं क्योंकि प्रयास के नाम पर सिर्फ स्कूलों की छुट्टी कर दी जा रही हैं.
सरकार को इसके लिए बाकी देशों से सबक लेना होगा
चीन जिसे पूरी दुनिया का smog capital कहा जाता था. 2013 में तो चीन के हालात इतने बुरे थे कि तुरंत कुछ करना था. लेकिन सिर्फ पांच सालों में आलम ये हो गया कि कई दशकों का प्रदूषण एक साथ काबू में आ गया. देश की दशा सुधारने के लिए चीन ने ये प्रयास किए-
- चीन में प्रदूषण का रेड अलर्ट होता है तो सबसे पहले ऑड-ईवन फॉर्मुला लागू किया जाता है. पब्लिक ट्रांसपोर्ट की संख्या बढ़ा दी जाती है.
- अलर्ट के समय सिर्फ स्कूल नहीं बल्कि फैक्ट्रियां भी बंद कर दी जाती हैं.
- स्मॉग पुलिस भी तैनात की जाती है जो शहर की पैरवी करती रहती है और जैसे ही कुछ ऐसा दिखता है जिससे प्रदूषण फैल रहा हो उसे रोका जाता है और निर्धारित धारा लगाकर संबंधित लोगों को सज़ा दी जाती है.
- पब्लिक प्रोजेक्ट का कंस्ट्रक्शन बंद कर दिया जाता है.
- कोयले के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया गया. 5 साल में चीन में कोयले का इस्तेमाल करीब 50 प्रतिशत तक कम हो गया.
- 2011 में चीन में कार खरीदने पर बैन लगा दिया गया था. कार खरीदने के लिए चीन में अभी भी लॉटरी का सहारा लेना पड़ता है. लिमिटेड कार ही बिकती हैं उनमें से भी 60% कोटा एनर्जी कारों का है. सिर्फ 40% ही पेट्रोल, डीजल और गैस वाली कारें रहती हैं.
- चीन ने शहरों के बीच में जंगल बना दिए. बीजिंग शहर के बीचों बीच 21 छोटे-छोटे ग्रीन पार्क, 10 बड़े पार्क और 100 किलोमीटर के एरिया में ग्रीनवे बनाया गया.
क्या भारत इनमें से एक भी कर सकता है? सीखने के लिए तो बहुत कुछ है, लेकिन इन्हें करने वाली सरकार चाहिए. यहां तो इसी बात पर राजनीति खत्म नहीं होती कि प्रदूषण फैल किस वजह से रहा है- दिवाली से, गाड़ियां से या फिर पराली जलाने से और पराली भी किस राज्य में जल रही है वो भी राजनीति का ही विषय है. प्रदूषण दिल्ली में ज्यादा है तो दिल्ली सरकार ही चिंता करे, भारत सरकार क्यों करे. यानी प्रदूषण पर जितनी राजनीति हो सकती है हो रही है. जो नहीं हो रहे हैं वो हैं प्रदूषण से छुटकारा पाने के प्रयास.
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