मछली खाने वालों को अक्सर नहीं पता होता ये जानलेवा 'सच'
10 जुलाई को गोवा, तमिलनाडु के मछलियों के सैंपल में Formalin कैमिकल पाया गया था. ये काफी टॉक्सिक होता है और सिस्टम में जहर की तरह बनता है. इससे सांस से संबंधित बीमारियां या फिर स्किन से जुड़ी बीमारियां हो सकती हैं.
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मछली खाने वालों के लिए दिन में एक समय के भोजन में भी अगर मछली न हो तो यकीनन उन्हें इसकी कमी काफी खलती है. मछली खाने के फायदे कितने होते हैं इसमें भी कोई दो राय नहीं है, लेकिन कई Sea Food शौकीनों को ये नहीं पता होता कि मछलियां जहरीली भी होती हैं और हर तरह की मछली खाना जान के लिए खतरनाक भी साबित हो सकता है.
फ्लॉरिडा में एक 71 साल के व्यक्ति की मृत्यु ऑयस्टर्स (कस्तूरी) खाने से हो गई. इसके पहले भी एक 32 साल की महिला की मृत्यु Oysters खाने से हुई थी. ऑयस्टर्स भी समुद्री खाना होता है जिसे लोग काफी चाव से खाते हैं.
पर अगर इन्हें कच्चा खाया जाए या ये समुद्र से निकाले जाने के काफी समय बाद खाए जाएं तो इनसे बैक्टीरिया शरीर में फैलने का डर होता है. ऐसी ही समुद्री सीपदार मछलियों में Vibrio vulnificus नाम का बैक्टीरिया होता है. अगर इनमें से किसी भी मछली को ठीक से पकाया नहीं गया तो ये बैक्टीरिया इंसानों में फैल सकता है और इससे उनका मांस अंदर ही अंदर सड़ता जाएगा. हालांकि, ये हर बार हो ये जरूरी नहीं, लेकिन इस बैक्टीरिया के फैलने से मौत भी हो सकती है.
इस बैक्टीरिया के कारण Vibriosis हो सकती है जो खतरनाक बीमारी है इंसानों के लिए. अकेले अमेरिका में ही Vibriosis हर साल 80 हज़ार लोगों को होती है और इसमें से 100 लोग हर साल इससे मारे जाते हैं.
सबसे खतरनाक मछलियां...
दुनिया की सबसे खतरनाक मछली खाने के लिए है पफर फिश और इससे बनने वाली डिश है फुगु. ये मछली इतनी खतरनाक है कि इसे दुनिया में सिर्फ गिने-चुने लोग ही बना सकते हैं. और अगर ये गलत बनी तो मौत की गुंजाइश बहुत ज्यादा है. पफर फिश की ही तरह ऐसी 90 मछलियां हैं जो अगर ठीक से पकाई नहीं गईं तो या तो इन्फेक्शन या फिर मौत का कारण बन सकती हैं. खास तौर पर सीपदार मछलियों को खाने और पकाने का तरीका बहुत ही संजीदा होता है.
लॉब्सटर खाने का तरीका...
लॉब्सटर और अन्य सीपदार मछलियां जिनका खोल होता है जैसे ऑयस्टर उनमें खतरनाक बैक्टीरिया होता है. ये आम तौर पर उनके गोश्त में होता है. एक बार लॉब्सटर मर गया तो ये बैक्टीरिया बहुत जल्दी फैलता है जो पकाने पर भी नहीं जाता. यही कारण है कि लॉब्सटर को जिंदा ही उबाला जाता है. बहुत से देशों में इसपर पाबंदी लगाई जा रही है जैसे न्यूजिलैंड, लेकिन इससे फूड पॉइजनिंग का खतरा भी बढ़ जाता है.
फार्म की मछलियां..
एक होती है वो मछली जो सीधे समुद्र या नदी से पकड़कर लाई जाती है और एक होती है वो मछली जिसे फार्म में पैदा किया जाता है. फिश फार्म की मछलियां ताज़ा पानी वाली मछलियों से 10 गुना ज्यादा कैमिकल वाली होती हैं. इसलिए लोकल मछलियां खाना ज्यादा बेहतर होता है.
सभी मछलियों में होता है पारा (Mercury)..
लगभग सभी मछलियों में पारा होता है और अगर छोटे बच्चों या गर्भवति महिलाओं को ये खिलाया जा रहा है तो ये बहुत ज्यादा मात्रा में न हो और ज्यादा खतरनाक मछलियां न हों इसका ध्यान रखना चाहिए. जैसे सैलमन (भारत में रावा) में ज्यादा पारा नहीं होता है, लेकिन टूना मछली में पारे की संख्या ज्यादा होती है.
मछली या कैमिकल?
2009 में चीन से इम्पोर्ट की गई मछली में अमेरिका ने तीन तरह की एंटीबायोटिक पाई गई थी. इसी तरह से भारतीय मछलियों में भी कई तरह की बीमारियां और कैमिकल पाए जाते हैं. 10 जुलाई को गोवा, तमिलनाडु के मछलियों के सैंपल में Formalin कैमिकल पाया गया था. ये कैमिकल 37% पानी, और formaldehyde गैस का बना होता है. HCHO इसका कैमिकल फॉर्मूला होता है. मछलियां जल्दी खराब न हो, इसलिए उन्हें फॉर्मलिन में रखा जाता है.
Formaldehyde काफी टॉक्सिक होता है और सिस्टम में जहर की तरह बनता है. इससे सांस से संबंधित बीमारियां या फिर स्किन से जुड़ी बीमारियां हो सकती हैं. दक्षिण भारत में मछलियों की पैदावार बहुत होती है और यहां न सिर्फ पूरे भारत में बल्कि कई अन्य देशों में भी सप्लाई की जाती है.
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