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Updated: 26 फरवरी, 2022 07:04 PM
ज्योति गुप्ता
ज्योति गुप्ता
  @jyoti.gupta.01
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आपने कितनी महिला कैब ड्राइवर (female cab driver) को देखा है, वो भी बिहार (Bihar) के छोटे शहरों में? दिल्ली, मुंबई, बैंगलोर में शायद कुछ फीमेल कैब ड्राइवर दिख भी जाएं लेकिन छोटे शहरों में तो मैंने किसी महिला कैब ड्राइवर को नहीं देखा. असल में महिलाएं गाड़ी ही कम चलाती हैं.

Patna, Patna latest news, Patna first female cab driver, Patna cab driver, Patna first woman cab driverमहिलाएं अच्छी कैब ड्राइवर नहीं हो सकतीं क्योंकि गाड़ी ढंग से नहीं चला सकतीं

घर में गाड़ी तो रहती है लेकिन उसे घर के पुरुष चलाते हैं. महिलाओं को तो ड्राइविंग करने के लिए भी परमिशन लेनी पड़ती हैं. ऐसा माना जाता है कि महिलाएं अच्छी कैब ड्राइवर नहीं हो सकतीं क्योंकि गाड़ी ढंग से नहीं चला सकतीं. ऐसे में अर्चना पांडे लोगों की इस सोच को बदलने और दूसरी महिलाओं को बदलने का काम कर रही हैं.

दरअसल, पटना की अर्चना पांडे 4 बच्चों की मां हैं. वे अपने बच्चों की बेहतर शिक्षा और अच्छे भविष्य दिलाने के लिए कैब ड्राइवर बन गईं. अर्चना ने यह कार बैंक से लोन लेकर खरीदा है. वे न सिर्फ पटना बल्कि दूसरे जिलों में भी कैब चलाती हैं. अर्चना की शादी हुई, वे घर और बच्चों की जिम्मेदारियों में खुद को भूल ही गईं. वे दिन भर घर का काम करतीं. ससुराल में उनकी कोई वैल्यू नहीं थी ऊपर से 4 बच्चे भी हो गए.

अर्चना ने खुद को अलग करके अपने बच्चों की खातिर कुछ करने की ठानी. अर्चना मसाले बनाकर बेचने लगीं लेकिन वह बिजनेस कुछ खास नहीं चला. आखिरकार अर्चना को अपने हुनर की याद आई कि बेहतरीन कार चला सकती हैं और हिम्मत दिखाते हुए वे लगीं कार चलाने. शुरुआत में तो पहचान वालों के लिए ड्राइव करतीं बाद में एक कैब कंपनी से जुड़ गईं. शुरु में लोगों ने बातें बनाई, लेकिन बाद में वे भी अर्चना की मेहनत की सराहना करने लगे. महिलाएं इनके साथ सफर तय करने में खुद को ज्यादा सुरक्षित महसूस करती हैं.

पटना की पहली कैब ड्राइवर बनकर अर्चना ने बिहार की महिलाओं को यह पैगाम दिया है कि मन में हौसला हो तो दोचार पैसों के साथ खुद के सपनों को पंख दिया जा सकता है. वरना तो पितृसत्तात्मक समाज और खासकर बिहार में अधिकतर महिलाएं पढ़लिख कर भी घरों के अंदर सिमट कर रह जाती हैं. वे पति की लंबी उम्र की कामना में व्रत किए ही जिंदगी गुजार देती हैं.

लोग इस पोस्ट पर कमेंट कर रहे हैं, एक यूजर का कहना है कि जब पेट में आग लगी हो तो सारे सामाजिक अवरोध ख़त्म हो जाते हैं. औरतों को कमजोर और घरो में रहने की सलाह देने वाले लोग एक नजर प्रवासी मजदूरों के परिवार को देख लें या खेतो में काम करती महिला शक्ति को देख लें, यही परिवार की महिलाओं की शक्ति और योगदान उन्हें बौना कर देगा.

कई जगहों पर आज भी महिलाओं को घरों से निकलने पर पाबंदियां लगाई जाती हैं. अगर कोई महिला पढ़लिख कर घर में बैठ जाएं तो समानता का अधिकार गौण हो जाता है. सच तो यह है कि आज के समय में पति-पत्नी दोनों को पैसा कमाना चाहिए. मगर अधिकतर पुरूषों के लिए नारी एक भोग की चीज है जिसके अरमानों को हर पल कुचला जाता है.

घर में रहने वाली महिला भी बहुत मेहनत करती हैं. परिवार को संभालती है, बच्चों की परवरिश करती है लेकिन अपने हुनर और अपनी पहचान को खो देती है. अर्चना ने खुद को कैब ड्राइवर के रूप में स्वीकर कर लिया है, उनके हिसाब से गाड़ी चलाना सिर्फ पुरुषों का काम नहीं है. दूसरों के सामने बेचारी बनकर हाथ फैलाने से अच्छा है कि मेहनत का काम करके महिलाएं इज्जत की रोटी खाएं.

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लेखक

ज्योति गुप्ता ज्योति गुप्ता @jyoti.gupta.01

लेखक इंडिया टुडे डि़जिटल में पत्रकार हैं. जिन्हें महिला और सामाजिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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