वो क्या बातें हैं जो 'पीरियड की छुट्टी' को गंभीर मुद्दा नहीं बनने देतीं
वर्किंग महिलाओं ने पीरियड में काम को मैनेज कर लिया है. वे खुद पीरियड लीव नहीं लेना चाहती हैं. आजकल कंपनियों में कंपटीशन बढ़ गया है. उन्हें लगता है कि अगर मैं पीरियड लीव लूंगी तो कोई साथ काम करने वाली दूसरी महिलाएं इसका फायदा उठा लेंगी.
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सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई है कि महिलाओं को मासिक दर्द के लिए छुट्टी मिलनी चाहिए. याचिका में कहा गया है कि कुछ कंपनियों में यह लीव पहले से दी गई है. याचिका में यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन की एक रिसर्च का भी हवाला दिया गया है, जो यह कहती है कि पीरियड्स में किसी महिला को उतना ही दर्द होता है है जितना किसी व्यक्ति को दिल का दौरा पड़ने पर.
यह सच है कि पीरियड्स में महिलाओं को तेज दर्द, क्रैंप्स, मितली, उल्टी, दस्त और हैवी ब्लीडिंग का सामना करना पड़ता है. कुछ महिलाओं को तो इतना दर्द होता है कि वे रोने लगती हैं. कुछ हॉट बैग लिए हुए दिन बिता देती हैं. फिर भी वर्किंग महिलाओं के लिए पीरियड में छुट्टी लेना पॉसिबल नहीं है. इसकी कई वजहें हैं, आइए इस पर चर्चा करते हैं.
महिलाएं खुद पीरियड लीव नहीं लेना चाहती हैं
औरतें मैनेज कर लेती हैं
महिलाएं पीरियड में हो रही परेशानियों को मैनेज कर लेती हैं. एकल परिवार में रहने वाली महिला को अगर पीरिडय होता और एक दिन वह रसोई का चूल्हा नहीं जलाती तो उसके घरवालों को समझ आता कि पीरियड में आराम की कितनी जरूरत है. मगर बात तो यही है कि वह महिला मैनज करके कुछ ना कुछ तो परिवार के लिए बना ही देती है. वहीं से पीरियड में आराम की जरूरत खत्म हो जाती है.
वर्किंग महिलाओं ने भी पीरियड में काम को मैनेज कर लिया है. पहले के समय में पीरियड्स में रसोई में ना जाना शायद यही सोचकर बनाया गया होगा कि वे किचन में काम नहीं कर सकतीं. पूजा नहीं कर सकतीं ताकि वे आराम कर सकें. उस वक्त पैड, टैम्पोन जैसी व्यवस्था भी तो नहीं थी. महिलाएं असहज महसूस करती होगीं. पहले के समय में लोग ज्वाइंट फैमिली में रहते थे. जिस महिला को पीरियड होते थे वह रसोई में नहीं जाती थी. तो क्या, कोई दूसरी महिला रसोई के काम को संभाल लेती थी. इस तरह महिलाएं मिलकर मैनेज कर लेती थीं. कुल मिलाकर घर का काम तो अकाज नहीं होता था.
कंपनियों में कंपटीशन
महिलाएं खुद पीरियड लीव नहीं लेना चाहती हैं. आजकल कंपनियों में कंपटीशन बढ़ गया है. महिलाओं को लगता है कि अगर मैं पीरियड लीव लूंगी तो कोई साथ काम करने वाली दूसरी महिलाएं इसका फायदा उठा लेगी. आज भी कई कंपनियों में शादीशुदा महिलाओं को जॉब ऑफर कम मिलता है. अगर उनके बच्चे हैं तो फिर जॉब ना देने के कारण और बढ़ जाते हैं. सच बात यह है कि कंपनियां इसलिए नौकरी नहीं देती कि आपको पीरियड लीव दे. उन्हें अपना फायदा देखना होता है. हो सकता है कि कोई महिला लगातार यह लीव ले तो उसकी जॉब चली जाए.
घर पर आराम कहां
बहस यह होती है कि मान लीजिए कि महिला ने कंपनी से पीरियड लीव ले लिया तो भी क्या? उसे घर पर तो काम करना ही पड़ेगा. वह घर पर सिर्फ आराम तो करेगी नहीं. घर में सिर्फ खाना बनाने का ही काम नहीं होता, 10 काम और होते हैं. ऐसे में महिलाओं को ना चाहते हुए भी घर में कुछ ना कुछ तो करना ही पड़ता है.
भेदभाव का आरोप
इससे लैंगिक समानता में फर्क हो सकता है. पुरुष साथी इसे अपने साथ हो रहे भेदभाव की तरह देखते हैं. उन्हें पीरियड लीव का मतलब यह समझ आता है कि महिलाएं बहाना बना रही हैं. वे काम नहीं करना चाहती हैं इसलिए छुट्टी ले रही हैं. वे इस छुट्टी के नाम पर गलत फायदा उठा रही हैं. कहीं ऐसा ना हो कि इससे पुरुषों और महिलाओं के बीच सैलरी का अंतर बढ़ जाए.
महिलाओं की झिझक
हम साल 2023 में जी रहे हैं. मगर पीरियड्स औऱ सेक्स पर बात करना आज भी टैबू माना जाता है. तभी तो पैड को न्यूज पेपर या काली पॉलीथीन में छिपाकर दुकान से घर लाया जाता है. कई महिलाएं शर्म औऱ झिझक के मारे पुरुष बॉस से पीरियड लीव की बात नहीं कर पाती हैं. उन्हें शर्मिंदगी महसूस होती है कि उनके बाकी साथिय़ों को इस बारे में पता चल जाएगा.
दरअसल हमारे समाज में पीरियड्स को एक बीमारी के रूप में पेश किया जाता है. जबकि यह कोई बीमारी नहीं है. यह सिर्फ एक जैविक प्रक्रिया है. कहीं ऐसा न हो कि पीरियड लीव मिलने पर इसे एक कलंक के रूप में पेश कर दिया जाए. जबकि इसकी वजह से ही महिलाएं प्रजनन करने में सक्षम होती हैं.
लोगों को लगता है कि पीरियड्स में लीव लेना कोई अहम मुद्दा नहीं है. कुछ महिलाएं खुद ही इस लीव का विरोध करती हैं, क्योंकि कहीं ना कहीं उनके मन में पिछड़ जाने के डर बैठा है. उन्हें पता है कि वे जॉब नहीं छोड़ सकती. उनके लिए नौकरी जरूरी है ना कि पीरियड लीव.
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