स्कूल के सरकारी टैब में पोर्न दिखना कहीं जुगाड़ का नतीजा तो नहीं?
छत्तीसगढ़ के एक स्कूल में अटेंडेंस दर्ज कराने के लिए दिए गए सरकारी टैब में पोर्न खुलना कहीं अपनी नाकामी छुपाने की स्कूल की चाल तो नहीं है.
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भारतीय शिक्षा में 'टीचर्स' का कितना VC33योगदान है ये हमें शहर के एसी लगे स्कूल कभी नहीं बता सकते. स्कूल में टीचर और बच्चे कब और किस वक़्त आ रहे हैं. इस स्थिति को समझने के लिए हमें छोटे कस्बों और गांवों का रुख करना पड़ेगा. ये प्रायः ऐसे स्कूल हैं जहां छात्रों से सिर पर नवरत्न तेल की मालिश करवाते या फिर उन्हें बाजार भेजकर घर का सौदा मंगवाते मास्टरों को देखना, उनके बारे में सुनना कोई अनोखी चीज नहीं है. क्या बिहार क्या उत्तर प्रदेश स्थिति लगभग सभी जगहों पर एक जैसी है. कहीं स्कूलों में टीचर हैं, तो स्टूडेंट्स नहीं. कहीं स्टूडेंट्स इस इन्तेजार में हैं कि मास्टर जी आएं तो लिखाई पढ़ाई शुरू हो.
डिजिटल इंडिया के इस दौर में स्टूडेंट, टीचर के रिश्ते में कोई 'रजिस्टर' वाली गड़बड़ न हो इसके लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने अपने स्कूलों को टैब दिया था. वजह थी कि उसपर छात्रों की उपस्थिति दर्ज हो और सरकार ये जानें कि कितने बच्चे स्कूल आ रहे हैं. साथ ही जो बच्चे नहीं आ रहे हैं उनके स्कूल न आने का कारण क्या है. खबर ये है कि छत्तीसगढ़ के एक स्कूल में ये टैब अब 'खराब' हो गए हैं. विशेषज्ञ कह रहे हैं कि टीचर इनसे दूर रहें और बच्चों की पहुंच से भी इन्हें दूर रखा जाए.
स्कूल के टैब में पोर्न साइट का खुलना वाकई में हैरत में डालने वाला है
ऐसा क्यों हुआ इसका कारण बस इतना है कि जैसे ही अटेंडेंस के लिए इन टैबों को छुआ गया इससे पोर्न खुलकर खुद-ब-खुद सामने आ गई. बताया जा रहा है कि पोर्न के खुलने और बंद होने से सबसे ज्यादा दिक्कत स्कूल की महिला टीचरों को हो रही है. माना जा रहा है कि ऐसा एक वायरस के कारण हुआ है. जिसे स्कूल के प्रिंसिपल ने गलती से छू दिया था. प्रिंसिपल के ऐसा करने के बाद से ही टैब छूने पर अपने आप ही पोर्न क्लिप प्ले हो जा रही है.
आपको बताते चलें कि इन टैब्स का वितरण सरकार द्वारा 2017 में इस उद्देश्य से किया गया था. ताकि सरकार इसका इस्तेमाल अटेंडेंस दर्ज कराने के लिए करें. वर्तमान में टैब को लेकर स्कूल में स्थिति कुछ ऐसी है जिसके कारण अब स्कूल के शिक्षक इसपर हाथ रखना तो दूर इसे देखना तक पसंद नहीं कर रहे हैं.
गौरतलब है कि 'शालाकोष' नाम की परियोजना के तहत मानव संसाधन और विकास मंत्रायल की तरफ से इन टैब्स को बांटा गया था. अब जबकि जिले के जिला शिक्षा अधिकारी ने समस्या दूर होने तक टैब को इस्तेमाल न करने के आदेश दिए हैं. कहना गलत नहीं है कि टीचर्स के अच्छे दिन वापस आ गए हैं अब वो 'रजिस्टर' पर पुराने दिनों की तरह छात्रों को अनुपस्थित को उपस्थित करने के लिए स्वतंत्र हैं. ज्ञात हो कि गांवों और कस्बों में आज सबसे बड़ी समस्या ये है कि यहां बच्चों का नाम तो लिखा हुआ है मगर बात जब स्कूल आने की होती है तो मुट्ठी भर बच्चे घर से स्कूल भेजे जाते हैं.
अंत में हम ये कहते हुए अपनी बात खत्म करेंगे कि जिस तरह हमारी सरकारी संस्थाएं तकनीक से दूर भागती हैं कहीं ऐसा तो नहीं कि स्कूल में टैब्स का खराब होना एक प्लानिंग का हिस्सा हो जिपर सभी ने अपनी सहमती दर्ज की हो. हम ऐसा इसलिए भी कह रहे हैं कि, जिस तरह से आज देश में हर चीज में जुगाड़ फिट किया जाता है कहीं ये भी एक ऐसा जुगाड़ तो नहीं जिसके दम पर स्कूल अपनी करनी पर पर्दा डालने का काम कर रहे हैं और जनता के अलावा सरकार को बेवकूफ बना रहे हैं.
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