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Updated: 08 मार्च, 2017 01:05 PM
प्रियंका ओम
प्रियंका ओम
  @priyanka.om
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आज के दिन हम महिलाएं सीधे मुंह बात नहीं करती हैं. पूरे साल जो तुम हमें घूंट-घूंट जहर पिलाते हो न, इसलिये आज हम नागिन बन जाती हैं! ज़्यादा बहस मत करना चमाट लगा दूंगी, वो क्या है न आज महिला दिवस है.

वैसे तो हर दिवस महिला दिवस है. मजाल है जो पूरे साल एक पत्ता भी हमारी मर्जी के बिना हिल जाए लेकिन आज के दिन हम अपने पत्ते खोलती हैं.

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तुमसे प्रेम करती हूं इसलिए तुम्हारी लम्बी उम्र के लिए तीज/ करवा चौथ करती हूं, एक दिन तुम भी भूखे रहकर देखो पता चल जाएगा हम बिना पानी के पूरा दिन कैसे रहती हैं. लेकिन तुम्हें क्या ? तुम सिर्फ़ साड़ी गहने देकर छुट्टी पा लेते हो. तुम्हारे लिये प्रेम का प्रतिकार साड़ी और गहने हैं और मेरे लिये उसे पहन कर सोशल मीडिया पर पिक्चर अपलोड करना !

सुनो तुम बुरा मात मानना आज के दिन हम जी भरकर तुम पुरुषों को कोसते हैं, अपनी नाकामयाबी का जिम्मेदार तुमको बताकर खूब संवेदनाएं समेटेते हैं.

जितना जहर उगलना होता है सोशल मीडिया पर ही उगलते हैं, घर में तो पूज्य पापा, प्यारा भाई और डार्लिंग हज़्बैंड होते हैं. सबके सब एक से बढ़कर एक आदर्श. लेकिन तुम जानते हो न तो सोशल मीडिया का कल्चर, यहां हम एक तीर से दो शिकार करती हैं. लिखती तो घर के मर्दों के लिए हैं लेकिन सुनाती तुमको हैं. अब उनको सीधा सीधा तो बोल नहीं सकती, इसलिये सोशल मीडिया ने जो वॉल फोकट में दिया है, वहां भड़ास निकालती हूं लेकिन बस आज के ही दिन, बाकी के दिन सेल्फी पोस्ट करती हूं.  

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अगर साफ-साफ घर के पुरुषों के बारे में लिख दूं न, तो बाकी की महिलाएं ऐसा बर्ताव करेंगी जैसे में कोई एलियन हूं. और उनके यहां के पुरुष तो बहुत प्रग्रेसिव हैं. किसी ग्रह से नहीं आई हूं, मैं भी बाकी औरतों जैसी हूं इसलिये मैं भी ऐसा ही करती हूं क्योंकि सोशल मीडिया की दुनिया दिखावे की दुनिया है.

सच कहती हूं, दम घुटता है इस माहौल में, यहां खुल के बोल भी ना सको. कुछ भी लिखो लोग पर्सनल हो ही जाते हैं. कुछ लोग तो संवेदना के बहाने से जख्म कुरेदते हैं. उन्हें क्या पता दर्द से हम कितना तिलमिलाते हैं.

मुझे पता है आज का दिन टीआरपी बढ़ाने का है. एक आध बोल्ड शब्द लिख दो हिंदी पढ़ने वालों के लिये वो छोटा मोटा पॉर्न बन जाता है. फिर सारे पुरुष अपने progressiveness का सबूत देने आ जाते हैं क्योंकि आज के दिन वो भी महिलावादी हैं.

लेकिन याद रखना एक से ज़्यादा कमेंट का पर्सनली हिसाब देना पड़ता है हमें. "वो फलना लौंडा कौन है जो बार-बार कॉमेंट कर रहा था" चलो हटो, जाने दो तुम भी तो यही करते हो. ये सोशल मीडिया है न, झूठ का अड्डा है अड्डा ! यहां लोग होते कुछ हैं और लिखते कुछ और हैं. मतलब सीधे शब्द में हाथी के दांत खाने के अलग और दिखाने के अलग.

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समय बहुत बदल गया है बेटी को भी बेटे के साथ इंग्लिश मीडियम में पढ़ाती हूं लेकिन पहली रोटी हमेशा बेटे को देती हूं, बचपन में मां भी ऐसा ही करती थी. कहती थी पहली रोटी खाने से बुद्धिमान बनते हैं और दिमाग की जरूरत तो सिर्फ लड़कों को होती है.

बेटे को दिन में दो बार दूध देती हूं. बिटिया ज्यादा दूध पिएगी तो जल्दी बड़ी हो जायेगी और ये जो खराब दुनिया है न फिर मेरी बड़ी हो गई बेटी पर बुरी नजर रखेगी.

ऐसा नहीं है कि हम आधुनिक नहीं हैं. मेरी बेटी भी स्पेगेट्टी पहनती है. हम मां बेटी एक साथ पाउट कर सेल्फी भी लगाती हैं, लेकिन बहू सिर्फ साड़ी में सर पे आंचल लिये अच्छी लगती है.

बेटी को तो दूसरे के घर जाना है इसलिये घर का काम काज भी सिखाती हूं. बेटे की जूठी प्लेट उसी से उठवाती हूं. बेटे को सिखाने की क्या जरूरत है, उसके लिये रेडीमेड सीखी सिखाई लाउंगी, जो सीख कर आइ हूं वही बेटी को सिखाती हूं. बिटिया भी सब सीख रही है. उसे भी तो परम्परा का निर्वहन करना है.

तो चलिए मनाते हैं... Happy women's day !

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लेखक

प्रियंका ओम प्रियंका ओम @priyanka.om

लेखक कहानी संग्रह 'वो अजीब लड़की' की ऑथर हैं

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