कंडोम का एड करने पर सनी लियोनी को कब तक कोसेंगे ?
महिलाओं को शर्मिंदगी से बचाने और उनके मान सम्मान की रक्षा करने के लिए बेहतर तो ये होगा कि उन्हें वस्तु की तरह इस्तेमाल ही न किया जाए. और उनकी जगह भी पुरुषों को ही दे दी जाए.
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महिला दिवस बस आने ही वाला है, और देश की महिला ब्रिगेड ने इस खास दिन पर कुछ क्रांतिकारी करने की पूरी तैयारी भी कर ली है.
नमूना देखिए, गोवा की कुछ महिलाओं ने गोवा महिला आयोग में राज्य परिवहन की सभी बसों से सनी लियोन के कंडोम विज्ञापन और सार्वजनिक स्थानों पर लगे गर्भनिरोधक के विज्ञापनों से महिला मॉडल्स की तस्वीर हटाए जाने की मांग की, क्योंकि इसमें महिला के शरीर को वस्तु की तरह इस्तेमाल किया गया है. रणरागिनी ने अपनी अर्जी में महिलाओं को शर्मिंदगी से बचाने और उनके मान सम्मान की रक्षा करने के लिए ये मांग की थी, और महिला आयोग ने ये मांग पूरी भी कर दी.
भला हो सनी लियोन का जो 'रणरागिनी' की महिला सदस्यों को आवाज उठाने का एक मुद्दा दे गईं, नहीं तो आने वाले महिला दिवस पर एक उपलब्धि कम गिनी जाती.
इस तस्वीर में क्या कुछ भड़काऊ नजर आया ?
ये सच में अधिकारों की लड़ाई है या कुछ और...
हद है, महिलाओं के नाम पर मुद्दे खोद-खोदकर ढूंढने की. माना सनी लियोन को देखने से गोवा की महिलाओं को परेशानी है, पर गर्भनिरोधक गोलियों का विज्ञापन करती महिलाओं से क्या परेशानी है भला, वो तो सूट और साड़ी में ही दिखाई दे रही होंगी. पर अगर विज्ञापनों में महिलाओं की तस्वीर आने से ऐतराज है, उन्हें वस्तु की तरह इस्तेमाल किए जाने से ऐतराज है तो फिर ऐतराज का स्तर भी तर्कसंगत होना चाहिए.
प्रचार के लिए लगाए गए पोस्टर महिलाओं को परेशान करने लगे, पर चौबीसों घंटे टीवी पर प्रोडक्ट बेचती महिलाएं दिखाई नहीं देतीं, पुरुषों के अंडरवियर बेचती मॉडल्स को देखकर महिला अधिकार याद नहीं आते, पान मसाला बेचती हुई मॉडल्स को देखकर क्या आंदोलन करने का मन नहीं करता? पुरुषों के डियोडरेंट पर लार टपकाती महिलाओं को देखकर शर्मिंदगी महसूस नहीं होती? पर 'कुछ तो करना है' के नाम पर इन्हें केवल अपने इलाके के नजारे दिखाई दिए.
बंद हो ये महिला अधिकारों की पंचायत, या फिर ऐसी हो कि दुनिया देखे.
महिलाओं को शर्मिंदगी से बचाने और उनके मान सम्मान की रक्षा करने के लिए बेहतर तो ये होगा कि उन्हें वस्तु की तरह इस्तेमाल ही न किया जाए. और उनकी जगह भी पुरुषों को ही दे दी जाए.
क्यों न ऐसा किया जाए कि -
- वॉशिंग मशीन के विज्ञापनों में कपड़े धोते हुए महिलाएं नहीं पुरुष दिखाई दें. महिलाओं की जगह पुरुष मॉडल रखे जाएं जो बताएं कि कपड़े धोना सिर्फ महिलाओं का ही काम नहीं.
- सफेदी की चमकार से लोगों को चौंकाने वाले विज्ञापनों से महिलाएं गायब हों और पुरुष बाल्टी में वॉशिंग पाउडर घोलते और कॉलर से मैल निकालते दिखें और दर्शकों को चौंका दें.
- कंडोम के विज्ञापनों में केवल पुरुषों का एक्साइटमेंट दिखे, महिलाओं की लस्ट गायब हो, आखिर कंडोम का इस्तेमाल पुरुष ही करते हैं.
- गर्भनिरोधक गोलियों और प्रेगनेंसी टेस्ट किट के बारे में पुरुष बताएं, महिलाओं की हाइजीन से जुड़े विज्ञापनों में महिलाएं नहीं पुरुष दिखाई दें.
- काले और घने बालों पर तो पुरुषों का भी अधिकार होना चाहिए, वो भी तो घर पर वही तेल लगाते हैं, तो फिर विज्ञापन में भी पुरुष दिखाए जाएं.
- नेल पॉलिश, लिपस्टिक जैसे प्रोडक्ट्स भले ही महिलाएं इस्तेमाल करती हों, लेकिन अगर पुरुष इसका विज्ञापन करें तो क्या कहने, ऑफटर ऑल पुरुषों के अंडरवियर के विज्ञापन में महिलाओं के योगदान को नहीं भूलना चाहिए.
- टाइटन की घडियां तो महिला और पुरुष दोनों के लिए होती हैं, फिर विज्ञापन महिलाओं पर आधारित ही क्यों होता है, अब से पुरुष ही महिला और पुरुष दोनों घड़ियों के लिए विज्ञापन करें.
हीरे की अंगूठियों और सोने की चेन का शौक तो पुरुषों को भी होता है, और आजकल तो नाक और कान भी छिदवाने लग गए हैं. फिर गहनों के विज्ञापनों से महिलाएं हटाई जाएं और पुरुष मॉडल ही दिखाए जाएं.
फूड प्रोडक्ट्स को ही लीजिए, क्या खाना बनाने की ठेकेदारी केवल महिलाओं की ही होती है, नूडल्स का विज्ञापन हो या फिर सूप का, माताएं ही करछी चलाती दिखती हैं, पुरुष क्यों नहीं. अब से फूड प्रोडक्ट्स के विज्ञापन पुरुषों पर ही आधारित हों.
- और मजा तो तब आए, जब सैनिटरी पैड्स के विज्ञापन भी पुरुषों से करवाए जाएं. आखिर भारत में महिलाएं शर्मिंदगी से बचने के लिए सैनिटरी पैड्स लाने का काम पतियों से ही तो करवाती हैं.
शायद यह पढ़ने में ज्यादातर मर्दों को बेतुका लगेगा, लेकिन बेमेल बातें भी ऐसी ही बेतुकी होती हैं. जैसे, सनी लियोन और कंडोम एड, पुरुषों के अंडरवियर वाले एड में महिलाएं.
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