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Updated: 30 जून, 2016 10:45 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
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पिता दहेज में 51 हजार रुपए नहीं दे पाए तो बेटी के माथे पर पति ने मशीन से गोद डाला कि 'मेरा बाप चोर है'. हाथ और शरीर के दूसरे अंगों पर भी गंदी-गंदी गालियां गोद दी गईं. जेठ और ससुर ने बलात्कार भी किया. यही नहीं उसे पूरे गांव में इसी तरह घुमाया भी गया.

पुलिस के हिसाब से ये मामला शायद उतना भी गंभीर नहीं था कि इसकी रिपोर्ट दर्ज की जाए. तभी तो 10 दिन बीत जाने के बावजूद पुलिस ने मामला दर्ज नहीं किया. ये घटना राजस्थान के अल्वर की है. इस बारे में जिसने भी सुना वो एक पति की निर्ममता देखकर हैरान रह गया. लेकिन इस महिला के साथ इतना कुछ होना शायद काफी नहीं था.

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पुलिस के ऐसे रवैये के बाद अगर महिला की कोई मदद करता तो वो था महिला आयोग. लेकिन महिला आयोग की टीम ने पीड़िता के साथ जो किया वो बेहद शर्मासार करने वाला था. जयपुर के महिला थाने में पीड़िता से मिलने पहुंची महिला आयोग की टीम उसका हालचाल जानने के बजाए उसके साथ सेल्फी खिंचवाने में व्यस्त हो गईं. क्या करें ये सेल्फी का भूत हर किसी पर चढ़ जाता है, जो ये भी नहीं देखता कि बंदा कहां है और किसी पद पर है.  

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 रेप विक्टिम है तो क्या, सेल्फी तो बनती है

इंसानियत को शर्मसार करने वाली घटना पर पीड़िता से बातचीत करना अपने आपमें गंभीर बात है. इस मौके पर उसका दर्द बांटना या उसका अहसास करना तो दूर महिला आयोग की सदस्य सौम्या गुर्जर संवेदनाशून्य होकर अपने मोबाइल में सेल्फी लेने लगीं. जैसे पीड़ित महिला कोई सेलिब्रिटी हो या फिर वो सोशल मीडिया पर पीड़िता का दर्द बहुत करीब से समझने की नुमाइश करना चाह रही थीं. राजस्थान महिला आयोग की अध्यक्ष सुमन शर्मा भी सेल्फी में पीडिता का हाथ पकड़कर पोज दे रही हैं. यही नहीं फोटो क्लिक करने से पहले 'स्माईल प्लीज' भी कहा गया.

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 इंसाफ मिले न मिले, सेल्फी तो जरूर मिलेगी

महिलाओं के हक के लिए लड़ने वाले महिला आयोग से एक बलात्कार पीड़िता के प्रति इतना संवेदनहीन होने की उम्मीद भी नहीं की जा सकती. सेल्फी लेने के क्रेज में महिला आयोग की टीम ये भी भूल गई कि नैतिकता के आधार पर किसी भी दुष्कर्म पीड़िता की पहचान सामने नहीं आनी चाहिए. फिर भी उन्होंने हंसते हुए सेल्फी ली. महिला को इंसाफ मिले न मिले लेकिन उसे सेल्फी तो जरूर मिलेगी.

पीड़िता के साथ सेल्फी की तस्वीरें सामने आने के बाद महिला आयोग की अध्यक्ष सुमन शर्मा सफाई दे रही हैं कि 'उन्हें तो पता हीं नही चला कि ऐसा कब हुआ. शायद पीड़िता को सामान्य कराने के लिए किया होगा.' इसपर सेल्फी लेने वाली सौम्या गुर्जर ने फेसबुक पर अपनी सफाई भी पोस्ट की है. 

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 ये रहा फेसबुक पर पोस्ट किया गया सफाईनामा

सौम्या गुर्जर का कहना है कि 'पीड़ितों का हंसना या मुस्कुराना क्या अपराध है.' जी नहीं, बिल्कुल अपराध नहीं है. लेकिन पीड़िता के साथ हमदर्दी दिखाने के बजाए बेशर्मों की तरह हंसते हुए सेल्फी लेना ऐसे जिम्मेदार पद पर बैठे लोगों के लिए अपराध से कम भी नहीं है. अपराध तो सेल्फी लेना भी नहीं है. मुद्दा ये है ही नहीं कि आप सेल्फी लेते हैं, मुद्दा ये है कि आपको सेल्फी लेनी कहां चाहिये. आप पीड़िता के साथ हैं, उसका दर्द समझती हैं, या फिर उसको समान्य करना चाहती हैं, इसके लिए क्या सेल्फी से बेहतर कोई और विकल्प नहीं हो सकता था. महिला के गले लगकर, या उसे भरोसा दिलाकर भी उसे सामान्य किया जा सकता था. वो शायद पीड़िता और आपके लिए ज्यादा अच्छा होता. खैर ये तो वही बात हुई कि 'मेरा मुनसिब ही मेरा कातिल हैं क्या मेरे हक़ में फैसला देगा..'

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महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों पर अगर कोई असंवेदनशील टिप्पणी भी कर देता है तो राष्ट्रीय महिला आयोग उससे माफी मांगने की उम्मीद करता है. लेकिन अपनी ही सदस्य के इतना संवेदना शून्य होने पर खुद महिला आयोग क्या शर्मसार नहीं है? क्या इस मामले में महिला आयोग को उस पीड़िता से मांफी नहीं मांगनी चाहिए? इस तरह दिया गया स्पष्टीकरण कि सबूत जुटाने के लिए सेल्फी खींची गई बेहद बचकाना और अपरिपक्व लगता है, जो एसे जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों को शोभा नहीं देता. 

लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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