...तो क्या अब केवल डराने के लिए ही बची है CBI ?
2जी घोटाले में सीबीआई की विशेष अदालत के फैसले ने देश की इस सबसे बड़ी जांच एजेंसी के कामकाज पर सवाल खड़ा कर दिया है. यदि हाईप्रोफाइल मामलों में सीबीआई की सफलता का विश्लेषण किया जाए, तो हालात बहुत चिंताजनक नजर आते हैं.
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2जी स्पेक्ट्रम घोटाला मामले में पटियाला हाउस कोर्ट ने मुख्य आरोपी पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा और DMK सांसद कनिमोझी समेत इस मामले से जुड़े सभी आरोपियों को बरी कर दिया है. वहीं सीबीआई इस मामले में कोर्ट के फैसले को चुनौती देगी. मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने माना कि इस मामले को साबित करने के लिए जांच एजेंसी के पास पर्याप्त सबूत नहीं हैं. इस दौरान स्पेशल जज ओपी सैनी ने कड़ी टिपण्णी करते हुए कहा "मैं सात सालों तक इंतज़ार करता रहा, काम के हर दिन, गर्मियों की छुट्टियों में भी, मैं हर दिन सुबह 10 से शाम 5 बजे तक इस अदालत में बैठकर इंतज़ार करता रहा कि कोई कानूनी रूप से स्वीकार्य सबूत लेकर आए. लेकिन कोई भी नहीं आया." देश की सबसे बेहतरीन जाँच एजेंसी पर इस तरह की टिपण्णीं कई तरह के सवाल खड़े करती है.
जिस घोटाले ने देश को हिला कर रख दिया था और जिससे सरकारी खजाने को 30,984 करोड़ रुपये के नुकसान की बात कही जा रही थी, उस मामले किसी का दोषी न पाया जाना वाकई अजीबोगरीब है. अब इस फैसले के बाद लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि क्या वाकई कोई घोटाला हुआ था या नहीं? साथ ही, इस मामले ने सीबीआई की उस कमजोरी को भी उजागर कर दिया है, जहाँ हाई प्रोफाइल मामलों में सीबीआई द्वारा आरोप साबित करने की दर काफी कम है. बेशक सीबीआई देश की बेहतरीन जाँच एजेंसी और इसके रिकॉर्ड भी इस बात की तस्कीद करते हैं. एक आकड़ें के अनुसार 2006 से जुलाई 2016 तक सीबीआई ने भ्रष्टाचार के मामले में 68 फीसदी की दर से आरोप सिद्ध करने में सफल रही है. इस दौरान सीबीआई ने 7000 मामलों में 6533 मामलों में चार्ज शीट दायर की है, 4054 मामलों में आरोपी को दोषी पाया गया है जबकि 2095 मामलों में आरोपी को रिहाई मिल गयी है. हालाँकि, हाई प्रोफाइल मामलों में सीबीआई की आरोप सिद्धि की दर काफी कम है.
जिन बड़े मामलों में सीबीआई आरोप सिद्ध करने में सफल रही उनमें मुख्य रूप से हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव, तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय जयललिता और हाल ही में झारखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा का नाम याद आता है. सरकारी आकड़ों के अनुसार अभी भी 115 नेताओं के खिलाफ मामले विभिन्न अदालतों में लटके हुए हैं. यह आकंड़े यह बताने के लिए काफी हैं कि सीबीआई का वो पैनापन जिसके लिए यह जानी जाती है, नेताओं या कहें सत्ता में बैठे लोगों के खिलाफ कार्यवाई के मामले में कमतर हो जाती है.
हाल के वर्षों में यह चलन भी देखने में आया है जब केंद्र की सत्ता में बैठी पार्टी अपने मतलब के हिसाब से सीबीआई का इस्तेमाल करती है. इसी पर तल्ख़ टिपण्णी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने साल 2013 में सीबीआई को पिंजड़े में बंद तोते की संज्ञा दी थी और कहा था कि यह अपने मालिक के इशारे पर काम करती है. हालाँकि, इस टिपण्णी के बाद भी सीबीआई को स्वायत बनाने की दिशा में कोई विशेष प्रयास नहीं किये गए. ऐसे में 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला मामले में जिस तरह का फैसला आया है उसने फिर से इस बहस को हवा दे दी है कि क्या हाई प्रोफाइल मामले की जांच करने के लिए सीबीआई को और ताकत की जरुरत है?
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