दुर्भाग्य यह है कि लोग धर्मगुरुओं और बाबाओं में फर्क नहीं कर पा रहे हैं
जब जनता देखती है कि सत्ताधीश नेता अपनी समस्याओं के समाधान के लिए, भाग्य जानने के लिए, अकूत संपत्ति पाने की खातिर बाबाओं के पैरों में पड़े रहते हैं, तो फिर उन्हें लगता है कि यही सही रास्ता होगा.
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पंद्रह साल पुराने रेप केस में धर्मगुरु और डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को 20 साल सश्रम कारावास की सजा मिली है. करोड़ों समर्थकों वाले धर्मगुरु के बारे में आई ये 'दिल दहलाने' वाली खबर, पंजाब और हरियाणा जैसे दो बड़े राज्यों के बंद हो जाने के लिए काफी थी. अपने 'भगवान' के लिए उनके समर्थकों का सड़कों पर उतर आना और कानून को धत्ता बताते हुए दो शहरों को ठप कर देना कोई आश्चर्य की बात नहीं है.
दंगों ने दिखा दिया कि हमारा लोकंतत्र कितना लचर है और समाज के रुप में हम कितने निरीह. डेरा समर्थकों द्वारा किए गए दंगों की इस घटना को मीडिया के कुछ सेक्शन ने मोदी सरकार और बीजेपी के खिलाफ मौके की तरह देखा और इस्तेमाल किया. बाबा ने 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को अपना समर्थन दिया था और समर्थकों से अपील की थी कि वो भाजपा को ही वोट दें. इसी कारण से मीडियाकर्मियों ने पीएम मोदी पर निशाना साधा.
धर्म के नाम पर लोगों को बेवकूफ बनाते बाबा
जिस तरीके से लोगों ने बाबा का समर्थन किया है और उनके बचाव में सामने आए हैं उससे हमारी व्यव्स्था की लुंज-पुंज स्थिति का साफ पता चलता है. गुरु-शिष्य परंपरा में कुछ गड़बड़ हो गई है. कोर्ट ने राम रहीम को दोषी पाया और हमारे समाज में मौजूद न्याय व्यवस्था के आधार पर निर्णय सुनाया. साफ सीधा मतलब ये कि न्यायालय ने अपना काम किया.
फिर आखिर क्यों गृहणियों से लेकर युवा तक सड़क पर आ गए? न्यायालय ने सिर्फ अपना काम किया और लोगों को ये क्यों बर्दाश्त नहीं हुआ? जाहिर सी बात इसे किसी भी हालत में सही नहीं ठहराया जा सकता. लेकिन सड़क पर विरोध कर रहे उन हजारों, लाखों लोगों के लिए ये ही सही था. यही उनका धर्म था. और यही काम उचित भी था.
इन समर्थकों को लग रहा है कि उनके गुरु को फंसाया जा रहा है. उनके भगवान पर उंगली उठाई जा रही है. ऐसे में किसी भी सूरत में अपने भगवान का साथ देना ही उनका धर्म है. ये और कुछ नहीं बल्कि अंधविश्वास और अंधभक्ति का नतीजा है.
हमारे यहां धर्म और धार्मिक गुरुओं की एक विरासत ही रही है जिन्होंने जीवन, धर्म और उसके दर्शन को चैलेंज किया है साथ ही सृष्टि की सच्चाई को भी सामने लाए हैं. उनकी विरासत, उनकी क्षमता, उनकी सच्चाई पर शक करने का कोई कारण नहीं है. लेकिन उन गुरुओं, साधुओं की सत्ता को आज के 'स्वंयभू गुरुओं' से जोड़ना बेमानी है. आज के गुरुओं को जो राजनीतिक समाज और सिस्टम द्वारा दिया जाता है वो असली मुद्दा है.
सनातन धर्म मायने रखता है, धार्मिक हिंदूवाद नहीं-
25 अगस्त 2017 को स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने गुरमीत राम रहीम को डेरा सच्चा सौदा में दो साध्वियों के साथ रेप के आरोप में सजा सुनाई. इसके तुरंत बाद ही सड़कों पर दंगे फैल गए और 30 लोगों की जान चली गई. इसी क्रम में बीजेपी के सांसद साक्षी महाराज बाबा राम रहीम के पक्ष में आगे आए और दंगों के लिए अप्रत्यक्ष रुप से न्यायपालिका को ही दोषी ठहरा दिया.
ऐसे बाबा घातक हैं
साक्षी महाराज जो खुद को धर्म गुरु कहते हैं. समस्या यहीं से शुरू होती है. एक ऐसी पार्टी के नेता जो दावा तो करती है वैदिक काल की विरासत को आगे बढ़ाने का, लेकिन गुरू और समाज को लेकर उसकी इतनी ही 'समझ' मामूली ही है. सच्चाई तो ये है कि सच्चे गुरू और बाबा या एक ऋषि और बाबा के बीच के अंतर के बारे में हमें बहुत ही कम समझ होती है.
ये पश्चिमी स्टाइल के हिंदू आंदोलन और वैदिक काल के सनातन धर्म के बीच की लड़ाई है. दुखद सच्चाई तो ये है कि इन बाबाओं के लिए जनता पैसे कमाने का जरिया बन चुकी है. ये बाबा जनता को भ्रष्ट कर रहे हैं. लोगों को सनातन धर्म के बदले अपनी संकीर्ण धार्मिक अवधारणाओं को स्वीकार करने के लिए बरगला रहे हैं.
आज के बाबाओं का चरम हथियार लोगों के भावनात्मक और शारीरिक कमजोरी का शोषण है. आर्थिक असुरक्षा, तनाव, सामाजिक अलगाव जैसी समस्याओं से हम में से कई लोग समाधान चाहते हैं. जब जनता देखती है कि सत्ता संभालने वाले राजनेता भी अपनी समस्याओं के समाधान के लिए, भाग्य के बारे में जानने के लिए, अकूत संपत्ति पाने के लिए इन गुरुओं के पैरों में पड़े रहते हैं तो फिर उन्हें लगता है कि यही सही रास्ता होगा.
अनंत काल से भारत गुरुओं का देश रहा है लेकिन कभी भी गुरुओं के संदेशवाहक का देश नहीं रहा है. तो सनातन धर्म के हिसाब से असली गुरू कौन है? इस सवाल का जवाब भारत के जाने-माने संत स्वामी विवेकानंद के दृष्टिकोण से देखें- "एक राष्ट्र का भाग्य उसकी जनता की स्थिति पर निर्भर करता है. क्या आप जनता की स्थिति को सुधार सकते हैं? क्या आप उन्हें अपनी आध्यात्मिक प्रकृति को खोए बिना उनका व्यक्तित्व वापस कर सकते हैं?"
एक ऋषि में जनता को ऊपर उठाने की शक्ति होनी चाहिए. याद रखें कि भारत के पराजय का कारण जनता की अनदेखी करना ही था. एक सच्चा गुरू कभी भी अपने समर्थकों को गलत शिक्षा नहीं देगा बल्कि वो तो उन्हें भावनात्मक और शारीरिक तौर पर आत्मनिर्भर होने में मदद करेगा. लेकिन आजकल के बाबा भावनात्मक रूप से जनता को पंगु बना रहे हैं. वो उन्हें भावनात्मक तौर पर अपने वश में कर रहे हैं.
साक्षी महाराज को ये जान लेना चाहिए कि सनातन धर्म किसी धर्म, बाबा या साध्वी के बारे में नहीं है, न ही हजारों-लाखों समर्थकों की भीड़ जमा करने के लिए है. बल्कि ये ऋषियों और गुरुओं के बारे में, एक इंसान और समाज के पूरी तरह से बदल जाने के बारे में है.
(यह लेख EduQuest के सह-संस्थापक दिपिन दामोदरन ने DailyO के लिए लिखा)
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