लड़कियां आत्मनिर्भर होंगी तो उनकी 'ज़िंदगी' भी बनी रहेगी
बेटियों की शादी में पिता जितना खर्चा करते हैं अगर उसका आधा बेटी की पढ़ाई में कर दें तो दुनिया की सैकड़ों लड़कियां बच सकती हैं, क्योंकि उनको अपना हक़ पता होगा. अगर लड़की आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होगी तो वो कहीं भी रह लेगी, क्यों जाएगी किसी ऐसे पति के पास जो उसे प्यार करना तो दूर, जान का दुश्मन बन जाए?
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जब कोई पति खुद से अपनी पत्नी को साथ नहीं ले जाना चाहता, न कभी उसे फ़ोन करता हो, न कोई खोज-खबर लेता हो, ऐसे में मायके वाले ज़बरदस्ती करके जो बेटी की विदाई करवाते हैं या पति के घर पहुंचा देते हैं और बाद में ससुराल वाले या पति उस बेटी की हत्या कर देते हैं, तो हत्यारों की लिस्ट में उन मां -बाप को भी शामिल करना चाहिए. पहली बात. दूसरी बात, ये जो दिल्ली, मुंबई जैसे तमाम बड़े शहर में रहने वाले इंजीनियर-डॉक्टर और बाबू लोग. अगर आपमें दम है तो अपने मां -बाप को कहिए बियाह से पहले कि हम किसी और प्यार करते हैं और उसी के साथ रहेंगे. आप दहेज के लालच में हमारा किसी और से बियाह नहीं करवाइए ठीक न. ये जो प्यार किसी और से ब्याह किसी और से और ब्याह के बाद उस लड़की को जान से मार देते हैं जो अपना सब छोड़ कर आपके साथ आयी, इसे दुनिया की सबसे बड़ी क्रूरता घोषित कर देना चाहिए और आपको चौराहे पर ज़िंदा टांग देना चाहिए.
तमाम लड़कियां हैं जिनकी असमय मृत्यु के जिम्मेदार उनके माता पिता हैं
तीसरी बात, वो लड़की या औरत जो किसी लड़के से प्रेम में है और वो लड़का वादा करता है कि प्यार उसी से करेगा लेकिन शादी किसी और से उस लड़के को उसी वक़्त छोड़ देना चाहिए. वो प्यार न तो तुमसे कर रहा है और न ही उस लड़की से जिसे ब्याह कर रहा है. वो प्यार सिर्फ़ खुद से कर रहा है. और शादी के बाद उस पत्नी की ज़िंदगी में जितने दुःख होंगे उस सब दुखों की ज़िम्मेदार तुम होगी. तुम प्यार नहीं पाप कर रही हो.
चौथी बात ये कि अभी अचानक एक ख़बर मिली पटना की निशा की शादी नोयडा के किसी इंजीनियर साहेब से करवाई गयी. इंजीनियर साहेब का पहले से किसी से अफ़ेयर था, इसलिए निशा को अपने साथ रखना नहीं चाहते थे. निशा के घरवालों ने ससुराल वालों पर ज़ोर डालकर निशा की विदाई करवा दी. 10 सितंबर को जब निशा का फ़ोन स्विच ऑफ़ आया तो भाई उसके फ़्लैट पर पहुंचा,
देखा तो बहन की लाश पंखे से टंगी हुई थी और जीजा ग़ायब था किचेन का गैस ऑन करके ताकि आत्महत्या का नाम दे कर निकल जाए. डिटेल से इस खबर को आप दैनिक भास्कर में पढ़ सकते हैं. ख़ैर.दुनिया की ये न तो पहली निशा है और न आख़िरी जिसे यूं मार डाला गया है. जब तक बेटियों को पढ़ा-लिखा कर नौकरी नहीं करने दिया जाएगा, तब तक कमोबेश यही हाल रहेगा.
बेटियों की शादी में बाप जितना खर्चा करते हैं अगर उसका आधा बेटी की पढ़ाई में कर दें तो दुनिया की सैकड़ों निशा बच सकती हैं क्योंकि उनको अपना हक़ पता होगा. अगर वो आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होगी तो कहीं भी रह लेगी, क्यों जाएगी किसी ऐसे पति के पास जो उसे प्यार नहीं करता हो. क्या निशा गेहूँ की पड़ी हुई बोरी थी जिसे मायके वालों ने उठा कर ससुराल भेज दिया. बेटियों को आख़िर कब तक अनाज की बोड़ी समझेंगे मां-बाप!
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