रेप की धार्मिक रिपोर्टिंग क्यों खतरनाक ट्रेंड है
बलात्कार के मामलों में देश जिस तरह हिन्दू मुसलमान में बंट गया है वो ये बताने के लिए काफी है कि अब हम खुद अपने ही कर्मों के चलते लगातार गर्त के अंधेरों में जा रहे हैं.
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अखबार, टीवी, मैगजीन, वेबसाइट और पूरा सोशल मीडिया जहां नजर दौड़ाइए वहीं रेप से जुड़ी खबरें हैं. ज्यादा दिन नहीं हुए हैं. उत्तर प्रदेश के उन्नाव से बलात्कार का मामला सामने आया था. आरोप भाजपा के विधायक कुलदीप सिंह सेंगर पर थे. उन्नाव मामले पर अभी बहस चल ही रही थी कि टीवी/इंटरनेट पर जम्मू कश्मीर के कठुआ से एक खबर फ़्लैश हुई. खबर में बताया गया कि जम्मू कश्मीर के कठुआ में 8 साल की बच्ची आसिफा के साथ पहले बलात्कार हुआ फिर उसकी हत्या कर दी गई. चूंकि इस मामले में एंगल हिन्दू मुस्लिम था. अतः इसे मेन स्ट्रीम मीडिया से लेकर सोशल मीडिया पर खासी तवज्जो मिली. इसके लिए #JusticeForAsifa का हैशटैग बनाया गया.
आसिफा मामले पर लोगों का तर्क था कि दोषियों को सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए. आरोपियों को सजा दिलाने के लिए सारा देश सड़क पर था. लोगों ने मामले की गम्भीरता को ध्यान में रखकर जगह-जगह कैंडिल मार्च निकाले और प्रदर्शन किये. असीफा के साथ हुए बलात्कार का मामला अभी ठंडा भी नहीं हुआ था कि रेप की अन्य ख़बरें बिहार के सासाराम और गुजरात के सूरत से आईं. इस सब मामलों के बाद ताजा मामला गीता का है. दिल्ली से सटे गाज़ियाबाद के एक मदरसे में मौलवी और उसके 3 साथियों द्वारा 10 साल की बच्ची का बलात्कार किया गया.
कहा जा सकता है कि अब हमारे समाज को रेप जैसी ख़बरों से भी कोई खास तकलीफ नहीं होती
गीता को भी न्याय दिलाने के लिए लोग सक्रिय हो गए हैं. लड़की को न्याय और दोषियों को सजा मिल सके इसके लिए #JusticeForGeeta नाम का हैश टैग चलाया गया है. लोग लगातार इसपर ट्वीट, रिट्वीट कर रहे हैं और इस हैशटैग के साए में लम्बी-लम्बी पोस्ट लिख रहे हैं.
जो लोग #JusticeForGeeta पर सक्रिय हैं. उनका मानना है कि, जब कठुआ में मुस्लिम लड़की का बलात्कार हुआ तो लोग सड़कों पर आ गए. मगर जब दिल्ली से सटे गाज़ियाबाद में गीता का बलात्कार हुआ और उसके दोषी मौलवी के लिए सजा की बात हुई तो, वो लोग जो आसिफा के लेकर छाती पीट रहे थे और चिल्ला रहे थे गीता पर खामोश हैं. #JusticeForGeeta का समर्थन करे रहे लोगों की एक बड़ी संख्या का तर्क ये भी है कि कठुआ कांड इसलिए भी इतने जोर शोर से प्रचारित किया गया क्योंकि पूरा मामला सिलेक्टिव आउटरेज को ध्यान में रखकर बुना गया था.
इन पूरे मामलों में जो बात सबसे दुर्भाग्यपूर्ण रही वो ये कि यहां हमनें पीड़ित महिलाओं को दरकिनार कर दिया और इसे हिन्दू मुस्लिम से जोड़ दिया. इन तमाम बलात्कारों के बाद हिन्दू, मुसलमानों की कमियां निकाल रहे हैं तो वहीं मुसलमान भी अपने को बेगुनाह और पाकदामन बताते हुए सारा दोष हिन्दुओं पर मढ़ रहा है. वर्तमान परिपेक्ष में जो चल रहा है उसको देखकर ये कहने में गुरेज नहीं किया जा सकता कि एक ऐसे वक़्त में जब हर तरफ धार्मिक उन्माद हावी है, हिन्दू-मुस्लिम एक दूसरे के खून के प्यासे हो रहे हैं, लोग धर्म की आड़ में मारे जा रहे हैं वहां अब रेप की धार्मिक रिपोर्टिंग हो रही है, जो अपने आप में एक खतरनाक ट्रेंड है.
ये अपने आप में दुर्भाग्यपूर्ण है कि अब हमारी सारी समस्याओं का समाधान हैशटैग में समा चुका है
बात जब रेप की धार्मिक रिपोर्टिंग बल्कि रिपोर्टिंग की चल रही है तो हमारे लिए अतीत की डायरी में झांकना और उसका आंकलन करना बेहद जरूरी है. गुजरे वक़्त में मीडिया द्वारा रेप पर अफ़सोस तो जाहिर किया जाता था मगर उन ख़बरों को प्राथमिकता कम दी जाती थी. ऐसा नहीं था की मीडिया उन खबरों को दिखाना नहीं चाहता था. बस बात ये थी कि, मीडिया उन ख़बरों को प्रकाशित करने से परहेज करता था जिनसे समाज पर बुरा या नकारात्मक असर पड़ता था.
याद करिए उस दौर के अख़बारों को कहीं कोने में एक छोटी सी खबर होती थी. टीवी पर चंद ही सेकंड में इन ख़बरों पर विराम लगा दिया जाता था. तब न कोई पैनल बैठता था और न ही इसपर बड़े-बड़े पैकेज चलते थे. जैसे-जैसे समय का चक्र चला वैसे-वैसे इन ख़बरों की डिमांड में उछाल देखने को मिला. आज हालात ये हैं कि कई लोग तो सिर्फ ऐसी ही ख़बरों के लिए अखबार और वेबसाइटों का रुख करते हैं. आज हर जगह इन ख़बरों को प्रमुखता से दिखाया जा रहा है. पहले जब पीड़िता का चेहरा नहीं दिखाया जाता था आज लोग उसे अपनी नीयत के अनुसार दिखा रहे हैं. कहीं तस्वीरें पूरी हैं तो कहीं तस्वीरें ब्लर हैं मगर अपनी-अपनी समझ के अनुसार इसे हर जगह दिखाया जा रहा है.
मुद्दे पर लगातार मांग चल रही है कि दोषियों को फांसी हो
इग्नोर की जाने वाली ये ख़बरें क्यों हो गयीं विशाल
यदि हम इस प्रश्न पर गौर करें तो मिलता है कि ऐसा होने या किये जाने के पीछे की एक सबसे बड़ी वजह सोशल मीडिया है. लाजमी है जब लोगों का उद्देश्य अपनी कही बात को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचना हो तो ऐसा होना स्वाभाविक था. कह सकते हैं कि सोशल मीडिया पर ऐसे लोगों की भरमार है जो इन ख़बरों को प्रमुखता से देख रहे हैं, उन्हें सुन रहे हैं, उन्हें साझा कर रहे हैं और सबसे अचरज में डालने वाली बात ये भी है कि लोगों को ऐसा करते हुए न कोई शर्मिंदगी होती है और न ही उन्हें भारीपन महसूस होता है.
आज के समय में लोग इन ख़बरों को ज्यादा पढ़ना चाहते हैं इसलिए इन्हें प्रमुखता दी जा रही है
मेन स्ट्रीम मीडिया ने उठाया सोशल मीडिया की इस हरकत का फायदा
वर्तमान में जो चल रहा है और जिस प्रमुखता के साथ इन ख़बरों को मेन स्ट्रीम मीडिया द्वारा दिखाया जा रहा है कह सकते हैं इसके पीछे एक बहुत बड़ा योगदान सोशल मीडिया का है. मेन स्ट्रीम मीडिया ने जब देखा कि ऐसी ख़बरों को आम लोगों द्वारा हाथों हाथ लिया जा रहा है तो उसने मौके का भरपूर फायदा उठाया और इन ख़बरों को प्रमुखता देकर जन-जन तक पहुंचाया. नतीजा क्या है वो हमारे सामने हैं बलात्कार लड़की का होता है मगर उसका धर्म और जाति पहले जाकर हमारे सामने खड़ी कर दी जाती है.
अब सब अपनी सोच के अनुरूप ले रहे हैं फैसले
ये अपने आप में दुर्भाग्यपूर्ण है कि अब फैसले लोगों द्वारा उनकी समझ के अनुसार लिए जा रहे हैं, जो अपने आप में आधी समस्या की जड़ हैं. आज लोग अपनी समझ के अनुसार ख़बरों का आंकलन कर रहे हैं और अलग-अलग माध्यमों से नफरत की आग में खर डालने और देश के अमन सुकून को जलाने का काम कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश के उन्नाव से लेकर गीता तक कई ऐसी चीजें हमारे सामने आई हैं जिन्होंने मानवता को शर्मसार किया है. रेप की आड़ में देवस्थान को बदनाम करना, मस्जिद को लेकर अमर्यादित टिप्पणी करना, भगवान का कार्टून बनाना, तस्वीरों को वायरल करना ये बताने के लिए काफी है कि वर्तमान में हमारी दिशा और दशा दोनों कैसी है और हम कहां जा रहे हैं.
ऐसे मुद्दों को भुनाने में नेता भी अपनी तरफ से कुछ छोड़ते नजर नहीं आ रहे हैं
चल रही है राजनीति भरपूर, जब है राजनीति तो हो गया मुख्य मुद्दा दूर
कठुआ कांड के बाद जिस तरह इस मुद्दे पर राजनीति हुई उसने सारे सवालों के जवाब दे दिए हैं और बता दिया है कि मुद्दा कहीं पीछे छूट चुका है और जो हमारे सामने हैं वो और कुछ नहीं बस एक ऐसी आग है जो हमारे वर्तमान के साथ-साथ भविष्य को भी जलाकर स्वाहा कर रही है. याद करिए उन तस्वीरों को, गौर करिए उन ख़बरों पर जब कठुआ मामले में राजनीति के उद्देश्य से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रदर्शन के नाम पर मोमबत्तियां जलाई और फोटो खिंचाई थी. वजह तलाश करिए तो मिलेगा कि राहुल ने ऐसा सिर्फ इसलिए किया क्योंकि कहीं न कहीं उनका उद्देश्य देश के मुसलमानों के करीब आना और उन्हें ये एहसास दिलाना की हर मुश्किल घड़ी में कांग्रेस पार्टी उनके साथ कंधे से कंधा मिलकर खड़ी है.
रेप की धार्मिक रिपोर्टिंग में बयान भी देते हैं नफरत की चिंगारी को हवा
बात 2014 की है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के उस बयान से तहलका मच गया था जब उन्होंने बड़ी ही मजबूती से इस बात का समर्थन किया था कि,' जो लोग मंदिर जाते हैं, मंदिर में जाकर मत्था टेकते हैं और जो आपको मां- बहन कहते हैं वही लोग आपको बस में छेडते हैं'. इस बयान को देखिये और बताइए कि क्या ऐसे बयान देश की जनता के अलावा मीडिया को प्रेरित नहीं करते रेप जैसे मुद्दे की धार्मिक रिपोर्टिंग के लिए.
कुल मिलाकर बात का सार बस इतना है तमाम तरह की नफरतों के बीच देश की जनता बहुत आहत है और शायद ये जनता का आहत होना ही है जिसके चलते अब उसे अच्छे बुरे में अंतर नहीं दिख रहा है और नतीजे के स्वरूप हम ऐसी चीजें देखते हैं जिनको देखने के बाद एहसास होता है कि देश लगातार गर्त के अंधेरे में जा रहा है और हम हाथ पर हाथ धरे बैठे बेबसी से उसे देख रहे हैं. कहा जा सकता है कि यदि वक़्त रहते हम न संभले तो हमारे पास बचाने को कुछ रहेगा नहीं और इन सब चीजों के चलते हमारा वर्तमान और भविष्य बड़ा विभत्स्य और डरावना होगा.
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