योग से जुड़ी इस खबर पर हैरत क्यों, बहुत से खिलाड़ियों को स्टेशन के बाहर ऑटो तक नहीं मिलता
केंद्र से लेकर राज्य तक हर जगह केवल योग का शोर है मगर हरियाणा में योग और योग से जुड़े खिलाड़ियों के साथ जो हुआ वो साफ बताता है कि करनी और कथनी में एक बड़ा अंतर होता है.
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मेरी तरह इस देश में कई ऐसे लोग हैं जो क्रिकेट से अगाह चुके हैं और समय-समय पर अपना इंटरेस्ट बदलते हैं. मेरे मामले में इतना हुआ कि, पहले मेरा प्रेम, फुटबॉल के प्रति जागा. जब ढेर सारे फुटबॉल मैच देख लिए और उससे मन भर गया तो मैंने बॉक्सिंग फिर कुश्ती उसके बाद बैडमिंटन और टेनिस का रुख किया. आजकल इनसे भी मेरा मन भर चुका है. योग ट्रेंड में है,अब मैं सिर्फ और सिर्फ योग पर इंटरेस्ट लेता हूं.
चूंकि आजकल हर तरफ बस योग ही योग है तो आजकल मेरी तरह बहुत सारे लोग योग पर इंटरेस्ट ले रहे हैं. कुछ समय के लिए ही सही मगर हम सभी लोगों को योगी वाली फीलिंग आ रही है. वो योगी जो अपनी प्रकृति और स्वास्थ्य के प्रति बहुत सजग है. खैर, हम सभी लोगों का सीना तब और चौड़ा हो जाता है जब हम ट्रैक सूट में अपने प्रधानमंत्री को योग करते देखते हैं.
इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा कि खट्टर सरकार ने अपने खिलाड़ियों से योग तो करवा लिया मगर उन्हें भोजन न दिया
बात योग की निकली है और जैसा कि बताया जा चुका है कि आजकल योग ट्रेंड में है तो एक खबर जान लीजिये. चर्चा आगे करेंगे, चर्चा का क्या है ये तो है ही आगे करने के लिए. खबर हरियाणा से है और खबर का आधार टाइम्स ऑफ इंडिया कि एक रिपोर्ट है. रिपोर्ट के अनुसार गुडगांव की अंडर 14 योगा टीम के छह खिलाड़ियों को रेवाड़ी में आयोजित स्टेट लेवल स्कूल चैंपियनशिप के दौरान पूरे दिन में सिर्फ एक आलू का पराठा खाने को दिया गया और रात भर वे जमीन पर ही सोए.
जी हां बिल्कुल सही सुना आपने. एक आरटीआई में इस बात का खुलासा हुआ है कि साल 2015 और 2016 में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर सरकार ने 34.5 करोड़ रुपए खर्चा किया था. वहीं इस पर हरियाणा सरकार ने भी लाखों रुपए खर्च किए थे. आपको बताते चलें कि इन छह छात्रों में से फिल्हाल तीन छात्रों को नेशनल कम्पटीशन के लिए राज्य का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना गया है.
खैर सोशल मीडिया और ट्रेंड के इस दौर में इस खबर को सुनकर ज्यादा आहत नहीं होना चाहिए. न ही हमें हमें माथे पर हाथ कर कर इस बात का अफसोस करना चाहिए कि, 'वो सरकार जो शीर्ष से लेकर अंत तक योग-योग चिल्ला रही है, वो न तो योग के भले के लिए फिक्रमंद है न ही इस विधा से जुड़े लोगों के लिए.' हमें ऐसी खबरों की आदत डाल लेनी चाहिए और इसे हंसी में उड़ा देना चाहिए.
सवाल ये है कि प्रधानमंत्री क्या इसी तरह आम लोगों के बीच योग को पॉपुलर करेंगे
ऐसा इसलिए क्योंकि हम एक ऐसे देश के नागरिक हैं जो ट्रेंड को फॉलो तो करना जानता है मगर उसे निभा नहीं पाता है. आज हमें एक पराठा खाकर जमीन में सोये हुए ये खिलाड़ी दिख गए मगर हमारी आंखें ऐसी तमाम घटनाओं को नकार चुकी हैं जब 'छोटे-मोटे' खेलों से जुड़े खिलाड़ी जीतकर आते हैं तो न ही उनका स्वागत करने कोई अधिकारी आता है. न ही उन्हें कोई फूलों का गुलदस्ता देता है. इन बेचारों के लिए इससे बड़ी बदकिस्मती क्या होगी कि घर जाने के लिए इनको कैब तक नहीं मिलती. ये बेचारे अपना सामान भी खुद ही उठाते हैं और अपने ऑटो की बारगेनिंग भी खुद ही करते हैं.
अंत में बस इतना ही कि, जिस तरह योग करने से ही होता है. उसी तरह किसी भी खेल से जुड़े खिलाडियों का सम्मान करने से ही होगा. इस खबर को जानकार व्यक्तिगत रूप से मुझे किसी और से उम्मीद नहीं है. मैं हसरत भारी निगाह से योग डे पर ट्रैक सूट पहने मोदी जी की तरफ देख रहा हूं. मुझे आशा है मेरे मोदी जी, मेरे मन की बात सुनेंगे और मेरे अलावा तमाम खिलाड़ियों को इंसाफ देंगे.
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