New

होम -> समाज

 |  4-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 21 जून, 2017 08:17 PM
  • Total Shares

आसन लगाए योगी हो गये... दाढी बढ़ाये संत... बाल पके तो बाबा हो गये... मूंड मुंडाये महंत...

बस आसन करना ही योग है और प्राणायाम करके योगी बनना सबसे आसान. कम से कम योग दिवस पर तो यही हो रहा है. सूंड, कान, पैर और पूंछ को हाथ लगाकर हाथी की परिभाषा गढ़ दी. लेकिन भैया ये हाथी नहीं बल्कि हाथी का एक-एक अंग है.

आसन योग का एक अंग है ना कि आसन ही योग है. आज पूरी दुनिया आसन को ही योग समझती है और अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने में मशगूल है. खुश है, उत्सव मना रही है, करोड़ों लुटा रही है, मगन है योगी बनकर. सब कपाल भाती और अनुलोम विलोम कर रहे हैं, भ्रामरी का गुंजार है, यही योग का प्रचार है. सब इस खुशफहमी में हैं कि यही योग है और ये करके योगी बन गये हैं. कोई ऊंट आसन करके महान बन गया है तो कोई मोर और कोई भुजंग बनकर. किसी ने ज्यादा जोर मारा तो मेंढक यानी मंडूक आसन लगा लिया.

yoga, international yoga day

योग तो दरअसल जीवन के आठ आयामों का जोड़ यानी नियोड़ है. जब इन आठ अंगों को मिला दें तो योग होता है. इतना ही नहीं इन आठों अंगों के बीच सही तालमेल हो तो ही योग होता है. महर्षि पतंजलि के बताये वो आठों अंग हैं यम नियम, आसन प्राणायाम, प्रत्याहार धारणा, ध्यान और समाधि हैं. पतंजलि योगसूत्र के मुताबिक पहला अंग यम यानी संकल्प या व्रत. सात्विक होने का संकल्प. जीवन के हर क्षेत्र में सादगी, सात्विकता. चाहे खानपान हो या रहन सहन या फिर सोच विचार. किसी भी संकल्पना को साकार करने का पहला कदम तो संकल्प ही है.

दूसरा अंग साधना होता है नियम. यानी संकल्प का पालन. शारीरिक, मानसिक और अध्यात्मिक स्तर पर पवित्रता. यानी सात्विक सोच विचार को प्रगाढ़ करने के लिए अच्छा पढ़ना, कम साधन में उमंग उत्साह भरा जीवन गुजारना.

yoga, international yoga day

इसके बाद आता है आसन. यानी सही posture में व्यवस्थित रहना. पतंजलि कहते भी हैं कि जोर जबरदस्ती से किया गया आसन नहीं, बल्कि शरीर को बिना कष्ट दिये अभ्यास से आसन लगाना. शरीर के अंगों को साधना. स्थिर सुखम आसनम, शरीर को किसी भी आसन में इस कदर साध लिया जाए कि घंटों उसमें स्थिर रहने पर भी शरीर को कष्ट का अनुभव ना हो. हां, इसके लिए अभ्यास जरूर जरूरी है.

फिर नंबर आता है प्राणायम का. ये सांसों के जरिये प्राणों पर नियंत्रण का जरिया है.

लेकिन आज के जमाने की सोच यही है कि आसन और प्राणायम ही योग हैं. जबकि योग तो एक असीम सागर है जिसमें आसन और प्राणायम जैसी नदियों का जल भी है.

yoga, international yoga day

प्रत्याहार तो शरीर के हर अंग को कई तरीके से साफ करने की क्षमता विकसित करता है. इसमें हमारी सोच और चेतना भी एक अंग की तरह ही होती है. जिसे यौगिक क्रियाओं से जागृत किया जाता है. प्रत्याहार से ही धारणा की पुष्टि होती है. मानसिक योग्यता ऊंचे स्तर पर जाती है. ध्यान जब प्रगाढ़ होता है तो समाधि की स्थिति बनती है. यही योग का चरम है. साधना की परम अवस्था. इसे ही कैवल्य कहते हैं. समाधि अपने अंदर जाने की ऐसी कला है जिससे पूरा वातावरण चैतन्यता से भर जाता है.

यानी योग सिर्फ अपने बारे में ही सोचने की चेतना नहीं देता बल्कि इसके अभ्यास से चेतना ऐसी परम अवस्था की ओर चढ़ती है कि दया, करुणा, नम्रता की उपासना अपने आप हो जाती है.

अब जमाने की सोच का क्या कहिये कि इतने विस्तृत समाहार को आसन और प्राणायम तक ही समेट दिया है. अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर तो योग का समपूर्ण निदर्शन मानवता को कराना चाहिए. पहले साल नहीं तो तीसरे साल तो ये होना ही चाहिए. ताकि अंतरराष्ट्रीय योग दिवस सिर्फ आसन और प्राणायाम तक ही सीमित ना रह जाए योग का अष्टांगिक दर्शन कराये.

ये भी पढ़ें-

अविश्‍वसनीय! योग की दीवानगी बिलकुल नए लेवल पर

मोदी और रामदेव नहीं, योग के पुरोधा शिव और पतंजलि हैं

ओल्ड, आउटडेटेड नहीं, योग मॉडर्न और ट्रेंड में है

लेखक

संजय शर्मा संजय शर्मा @sanjaysharmaa.aajtak

लेखक आज तक में सीनियर स्पेशल कॉरस्पोंडेंट हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय