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Updated: 01 अक्टूबर, 2018 03:31 PM
राजीव तुली
राजीव तुली
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहन भगवत जी की तीन दिवसीय व्याख्यान माला (17 से 19 सितंबर, 2018) में अंतिम दिन हुए प्रश्नोत्तर वास्तव में अद्भुत थे. जितने खुले मन से और ईमानदारी से सरसंघचालक ने सब प्रकार के प्रश्नों के उत्तर दिए उससे संघ का और उनका एक अलग कद बना है. वास्तव में संघ प्रमुख के लिए इन प्रश्नों के उत्तर देना बहुत कठिन नहीं रहा होगा. जो लोग संघ को संघ से नहीं पुस्तकों से जानते हैं, उनकी जानकारी के लिए एक बात बताना दीगर है कि संघ के सभी प्रकार के प्रशिक्षण वर्गों में इस प्रकार का प्रश्नोत्तर का कार्यक्रम 'जिज्ञासा समाधान' के नाम से होता है. शायद ये देश—विदेश में काम करने वाले अन्य राजनैतिक तथा सामाजिक संगठनों के लिए यह विचित्र या असाधारण बात हो सकती होगी परंतु संघ में कोई भी स्वयंसेवक अवसर मिलने पर सरसंघचालक से भी प्रश्न पूछ सकता है. और ऐसा ही एक उदाहरण मोहन जी ने अपने भाषण में दिया भी था.

वास्तव में संघ को संघ से न जानकर पुस्तकों से जानने वालों के लिए ये विचित्र सा है या असम्भव है. बाक़ी संगठनों में इतनी पारदर्शिता और कनेक्टिविटी नहीं ही है जितनी संघ में है. सरसंघचालक वर्ष में दो बार पूरे देश का ज़िला स्तर तक का दौरा करते हैं जिसमें सार्वजनिक कार्यक्रमों के साथ साथ स्वयंसेवकों तथा समाज के प्रबुद्ध नागरिकों से मिलने के कार्यक्रम रहते हैं.

mohan bhagwatप्रश्नोत्तर के कार्यक्रम 'जिज्ञासा समाधान' में आरएसएस के सरसंघचालक श्री मोहन भगवत ने जवाब दिए

पूछे गए प्रश्नों में बहुत से प्रश्न ऐसे थे जिनके उत्तर यदि न दिए जाते तो कोई आपत्ति नहीं करता. परंतु मोहन जी ने उनके उत्तर भी बेबाक़ी से दिए. एक प्रश्न संघ के पंजीकरण के सम्बंध में भी था. संघ के विरोधी इस बारे में बहुत ज़ोर शोर से सवाल उठाते हैं, साथ ही एक राजनीतिक दल के प्रमुख ने संघ की आर्थिक स्वायत्तता को लेकर भी प्रश्न उठाया है. इसका भी एक समुचित उत्तर मिला होगा. संघ के प्रारम्भ से ही संघ में गुरु दक्षिणा की पद्धति रही है. वर्ष में एक बार संघ के स्वयंसेवक अपना समर्पण संघ के लिए देते हैं. इसका पाई-पाई का पूरा हिसाब रखा जाता है और इसी से संघ चलता है. इसके अतिरिक्त किसी प्रकार का चंदा या दान संघ नहीं लेता.

राजनीति को लेकर संघ को सदा ही कटघरे में खड़ा किया जाता रहा है. संघ के स्वयंसेवक किसी एक राजनीतिक दल में ही अधिक क्यों दिखते हैं इस पर भी सवाल होते रहे हैं और यह कार्यक्रम कोई अपवाद नहीं था. परंतु जो उत्तर यहां दिया गया संघ वही उत्तर सब जगह देता रहा है. संघ उन सब संगठनों में संगठन मंत्री देता है जो संघ से मांगते हैं. साल 2006 में एक बड़ा जनसम्पर्क अभियान संघ ने लिया था उस के अंतर्गत तब के देश के प्रधानमंत्री सरदार मनमोहन सिंह जी ने भी यही पूछा था कि संघ के लोग कांग्रेस में क्यों नहीं आते? तो मिलने गए लोगों में बाबू राव वैद्य भी थे. उनके उत्तर में मोहन जी के उत्तर में समानता दिखती है, उनका उत्तर था “इस पर आपके दल को विचार करना है यदि आप हमारे से मांगेंगे तो हम देंगे.'' वैसे सनद रहे कि कांग्रेस ने अपने संविधान में संघ के स्वयंसेवकों को सदस्यता देने से मनाही की हुई है.

संघ को लेकर सिख समाज में भी दो प्रकार की धाराएं चलती हैं. एक को लगता है कि संघ सिक्खी को धर्म ही नहीं मानता और दूसरे वर्ग को ऐसा लगता है कि सिख गुरुओं ने हिंदू धर्म के लिए जो कुर्बानियां दी उसका ठीक मूल्यांकन संघ या हिंदुओं ने नहीं किया. इन दोनों पर ही संघ प्रमुख ने स्पष्ट मत रखा. संघ के सभी स्वयंसेवक प्रतिदिन शाख़ों पर जो 'एकात्माता स्तोत्र' तथा एकता मंत्र बोलते हैं उसमें सिख गुरुओं का कहां-कहां उल्लेख आता है, और गुरुओं को किस प्रकार संघ और समाज अपना ही मानता है. संघ के प्रारम्भ के प्रचारकों में से एक पातुतकर जी, ने अविभाजित पंजाब में संघ का काम शुरू किया था. उन्होंने गुरुओं के इतिहास पर एक प्रदर्शनी का निर्माण किया था जो देश के सब प्रांतों में स्वयं लेकर जाते थे.

यह व्याख्यान माला संघ को संघ से ईमानदारी से समझाने का एक प्रयास है. समाज के जिन बंधुओं को बुलाया, राजनीतिक दलों के एक बड़े वर्ग को छोड़ दें तो बाकी सब वर्गों के प्रबुद्ध लोग आए भी. इस बात में किसी को कोई शक नहीं रहना चाहिए कि समाज में संघ की स्वीकार्यता लगातार और तेजी से बढ़ रही है. समाज संघ के विषय में जानना चाहता है, और संघ प्रारम्भ से ही समाज को अपने व्यवहार और काम की जानकारी देता रहता है.

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लेखक

राजीव तुली राजीव तुली @rajiv.tuli69

लेखक आरएसएस के दिल्ली प्रांत के प्रचार प्रमुख हैं

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