कोरोना वैक्सीन का दुष्प्रचार करने वालों को सबक सिखाने का वक्त है, भ्रम बहुत फैल चुका!
कोरोना वायरस की भीषण तबाही देखने के बावजूद भारतीय नागरिकों का वैक्सीन न लगवाना साफ संकेत देता है कि वैक्सीन को लेकर घटिया मानसिकता और राजनीति ने हमें कोरोना वायरस के साथ युद्ध लड़ने में कमजोर बना दिया है, वक्त है चुन चुनकर उन लोगों की पहचान करने की जो देश को महामारी से युद्ध में कमजोर बना रहे हैं.
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कोरोना वायरस दुनिया भर के कई परिवारों को लील चुका है. कई परिवारों को उजाड़ चुका है. कितने ही परिवारों का खात्मा कर चुका है. घर का घर बर्बाद और तबाह हो चुका है. कहीं परिवार के हर सदस्य की मौत हो चुकी है तो कहीं एक ही परिवार के आधे से अधिक लोगों को इस वायरस ने अपना शिकार बनाकर मौत की आगोश में धकेल दिया है. किसी परिवार के मुखिया की जान चली गई तो किसी महिला को विधवा होना पड़ गया है. कितने बच्चे अनाथ हो गए तो कितने ही बापों ने अपने बच्चे की लाश खुद उठाई है.
कोरोना की पहली लहर रही हो या फिर दूसरी लहर, दर्दनाक और खौफनाक मंज़र हर रोज़ देखने को मिला है. हर शहर का मंज़र एक जैसा था, चीख-पुकार मची हुई थी लोग तड़प रहे थे. कुछ अपनों की सांस के लिए चीख रहे थे तड़प रहे थे तो कुछ अपनी जान बचाने के लिए कराह रहे थे. जो तस्वीरें हम भारतीयों ने देखी है वो न तो बर्दाश्त करने के लायक है और न ही भुला देने वाली तस्वीर है. ऐसा मंज़र अब भी कुरेदता है और सोचने पर मजबूर कर देता है कि हम भारत के लोगों पर कितनी बड़ी मुसीबत आयी है, हमारे लाखों लोग इस एक बीमारी के आगे दम चुके हैं, करोड़ों लोग इस बीमारी की चपेट में आ गए, घर का घर शहर का शहर कैद हो गया अपने ही घरों में दुबक कर सालों बैठा रहा.आज भी स्थिति ऐसी नहीं है कि घर से बाहर सामान्य तौर पर निकला जा सके. डर है भय है खौफ है साथ ही एक चुनौती है और सवाल है कि आखिर वह दिन कब आएगा जब हम सामान्य तौर पर घरों से बाहर निकल सकेंगे. इस बीमारी का डर कब खत्म होगा ये बीमारी कब दूर जाएगी. हमारा देश फिर से खुशहाली की मार्ग पर कब वापिस आ सकेगा.
भारत में कोविड वैक्सीनेशन को लेकर लगातार गफलत की स्थिति पैदा की जा रही है
हम सड़कों पर ट्रेनों पर जहाजों पर कब सफर कर सकेंगे. बाजारें कब सजेंगी बारात की रौनकें कब लौटेंगी. ये सारे सवाल मन में रह रहकर उठते हैं. हर कोई अब इस महामारी से निजात पाना चाहता है कोई भी इस बुरे माहौल में रहने को तैयार नहीं है. जब सब चाहते हैं कि हालात दुरुस्त हो जाएं स्थिति सामान्य हो जाए तो सबको मिलकर इस महामारी से एक साथ युद्ध लड़ना चाहिए ताकि हम इसे जल्द से जल्द पराजित कर सकें और विजयी होकर अपनी पुरानी ज़िंदगी पर लौट सकें. ये मौत का बादल जो हमारे सरों पर मंडरा रहा है इस बादल को हम खत्म कर सकें.
खुले आसमान में बिना किसी खौफ और डर के साथ रहना शुरू कर सकें. और यह तब ही मुमकिन है जब इस बीमारी को हम जड़ से बेअसर बना सकें. अब इस मुश्किल युद्ध में सबसे आगे जो दुश्मन से लड़ने के लिए आया वो हमारे वैज्ञानिक रहे जिन्होंने इस बीमारी को बेअसर करने के लिए हथियार दिया यानी कि वैक्सीन बनाया, अब इसी हथियार (वैक्सीन) को लेकर हम इस महामारी से लड़ सकते हैं.
वैज्ञानिकों का दावा है कि अगर आपने वैक्सीन लगवा लिया तो आप संक्रमित तो होंगे मगर 90 प्रतिशत इस बात की गारंटी है कि आपकी जान नहीं जाएगी. यानी कि आप संक्रमित हो जाएंगे पर यह वायरस आपमें इतना अधिक असर नहीं छोड़ पाएगा. मतलब साफ है कि अगर वैक्सीन की दोनों डोज़ को ले लिया जाए तो ये सुरक्षा कवच का काम करने वाला है.
जब बीमारी और मौत का खौफ चारों तरफ से हो और हथियार के तौर पर वैक्सीन हो जो बीमारी को बेअसर कर दे और मौत का खतरा कम कर दे तो भला ये हथियार (वैक्सीन) कौन नहीं इस्तेमाल करना चाहेगा. हर कोई चाहेगा कि जल्द से जल्द वैक्सीन लगवा लिया जाए ताकि कोरोना उसके लिए खतरनाक न बनने पाए. ऐसे समय में तो सबसे महत्वपूर्ण यही है न कि किसी भी तरीके से खुद की जाने बचे परिवार के लोगों की जान बचे.
लेकिन इसे खुद का दुर्भाग्य कह लीजिए या फिर देश का दुर्भाग्य कह लीजिए कि हमारे बीच ऐसे ऐसे लोग भी हैं जो घटियापन और ओछी हरकतों से बाज नहीं आते हैं. और थोड़ा बहुत राजनीतिक स्वार्थ के लिए हमारे वैज्ञानिक और भारत की ताकत दोनों को मिट्टी में मिला देने का कार्य करते हैं. कोरोना वायरस से युद्ध लड़ने के लिए हमारे वैज्ञानिकों ने हमें जो हथियार (वैक्सीन) दिया उसपर भ्रम की स्थिति पैदा कर दी गई. यही भ्रम बाधा बन गया भारत के वर्तमान में सबसे बड़े दुश्मन कोरोना वायरस से युद्ध लड़ने के लिए.
ये तो बिल्कुल ऐसा हुआ जैसे सीमा पर युद्ध लड़ रहे जवानों से कोई कह दे कि आपके पास जो बंदूक है उसमें से गोली नहीं गुब्बारा निकलेगा और सीमा पर डटे हज़ारों लाखों जवान उसे सही मान लें. बताइये भला क्या ऐसे भ्रामक जानकारी फैला कर हम सीमा पर होने वाला युद्ध जीत सकते हैं. ठीक उसी तरह भारत में सीमा के अंदर दुश्मन से लड़ रहे लोग जब हथियार (वैक्सीन) लेकर उतरे तो उन्हें भड़का दिया गया कि यह वैक्सीन जान लेने वाली है.
जनसंख्या निंयत्रण के लिए यह वैक्सीन है, इस वैक्सीन को लगवाने के बाद बाप नहीं बन सकते हैं. वैक्सीन लगवाने के दो माह बाद मौत हो जाएगी. वैक्सीन लगवा लेने से बीमार पड़ जाएंगे कोरोना हो जाएगा. भाजपा की वैक्सीन है तो वैक्सीन एक साजिश है. तमाम तरह की उलूल-जुलूल बातें, जो जितना घटिया या गैरजिम्मेदाराना बयान दे सकता था देकर फारिग हो गया. जाने में किया या अऩजाने में किया लेकिन जो उऩ्होंने किया वह हरकत घटियापन की निशानी थी, हमारे वैज्ञानिकों की क्षमता पर मज़ाक था.
भारत की ताकत और उसकी शक्ति को लेकर अज्ञानता थी. ये बयान देने वाले लोग आम लोग नहीं थे, इनकी बातों का असर हुआ. सर्वे के मुताबिक देश की 30-40 प्रतिशत आबादी को वैक्सीन पर भरोसा नहीं है. खासतौर पर ग्रामीण इलाके के लोगों को तो बिल्कुल भी भरोसा नहीं है. भारत में निर्मित हुई हज़ारों दवा को पूरे साल इस्तेमाल करने वाला नागरिक आखिर भारत की बनी हुई वैक्सीन पर क्यों भरोसा नहीं कर रहा है क्या ये खास लोगों की बेहूदा हरकतों की वजह से नहीं हुआ है.
कोरोना की वैक्सीन को नपुंसक होने की वैक्सीन किसने साबित कर दिया है. हालांकि यह पहली बार नहीं है, वैक्सीन के खिलाफ ऐसा माहौल रहता ही है. दुनिया भर में कई बार वैक्सीनेशन प्रणाली पर न सिर्फ सवाल खड़े हुए हैं बल्कि विरोध भी हुआ है. सामाजिक विरोध भी हुआ है राजनीतिक विरोध भी हुआ है. विरोध होना लाज़िमी है लेकिन जब ऐसा संकट हो उस समय राजनीतिक फायदे के लिए विरोध किया जाना ठीक नहीं है.
चाहे नेता हों या फिर धर्मगुरू सभी को एकजुट होकर इस बीमाारी के खिलाफ लड़ना चाहिए. केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों को भी अब उनपर कठोर कार्यवायी करनी चाहिए जो लोग वैक्सीन को लेकर भ्रम की स्थिति पैदा कर रहे हैं. यह भ्रम फैलाने वाले लोग हमें इस युद्ध में पीछे धकेलने की कोशिश कर रहे हैं.
भारत में कोरोना वैक्सीन को लेकर पैदा हुए भ्रम और डर की स्थिति को दूर करने के लिए सभी राजनेताओं, धर्मगुरूओं, और आदर्श लोगों को सामने आना चाहिए और मिलकर इस महामारी से युद्ध लड़ना चाहिए.
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