सबरीमाला मंदिर में दो महिलाओं के प्रवेश का जश्न मनाना भूल होगी
2019 की पहली तारीख को दो महिलाओं ने पुलिस की सहायता से केरल के सबरीमला मंदिर में प्रवेश कर लिया. लेकिन, ऐसा होने से पिछले साल का यह सबसे बड़ा धार्मिक विवाद हल नहीं हो गया. महिलाओं के बाहर आते ही मंदिर को अपवित्र मानकर उसका शुद्धिकरण किया गया.
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सबरीमाला मंदिर विवाद में नया मोड़ उस समय आ गया था, जब केरल की वामपंथी सरकार ने सबरीमाला मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू कराने की प्रतिबद्धता दिखाने की कोशिश में महिलाओं की 620 किलोमीटर लंबी श्रंखला बनवाई. इसे महिलाओं की दीवार नाम दिया गया जिसका उद्देश्य बताया गया सबरीमला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक का विरोध और लैंगिक समानता के लिए आवाज बुलंद करना. केरल सरकार का ये आयोजन उन विरोध प्रदर्शनों के खिलाफ था, जो सबरीमाला मंदिर की पुरानी परंपरा को बरकरार रखने की मांग कर रहे हैं. इस सियासत में तब और उबाल हो गया, जब खबर आई कि दो महिलाओं ने सबरीमला मंदिर में प्रवेश कर लिया है. अब सवाल ये है कि इसे सवाल की अच्छी शुरुआत मानें, या नया बवाल समझें.
50 की उम्र से कम की दो महिलाओं ने सबरीमला मंदिर के अंदर प्रवेश कर लिया
ये दोनों महिलाएं- बिंदू (44) और कनक दुर्गा (42) ने पहली तारीख की रात 12.30 बजे को ही चढ़ाई शुरू कर दी थी, और मंदिर में सुबह 3.45 में प्रवेश किया. लेकिन इस बार हमेशा की तरह पहले से ऐलान नहीं किया गया. आधी रात बीतने पर पुलिस की सुरक्षा में इन दोनों महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करवाया गया. केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन इस मामले में महिलाओं के साथ थे और उन्हीं के कहने पर इन दोनों महिलाओं को पुलिस की पूरी मदद दी गई. सरकार का आदेश है कि जो महिला मंदिर जाना चाहे उसे पुलिस से हर संभव प्रोटेक्शन मिले. महिलाओं की मदद करने वाले ये पुलिसवाले सामान्य कपड़ों में उनके साथ थे. महिलाओं को काले कपड़ों में ले जाया गया था, और उनके सिर भी ढके हुए थे. इस वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि किस तरह दोनों ने मंदिर में प्रवेश किया.
#WATCH Two women devotees Bindu and Kanakdurga entered & offered prayers at Kerala's #SabarimalaTemple at 3.45am today pic.twitter.com/hXDWcUTVXA
— ANI (@ANI) January 2, 2019
Visuals of two women (Bindu and Kanaga Durga) at Sabarimala shrine earlier this morning pic.twitter.com/347z3KWAwU
— Arvind Gunasekar (@arvindgunasekar) January 2, 2019
सबरीमाला मंदिर में दर्शन करने में कामयाब हुई इन दोनों महिलाओं की पृष्ठभूमि भी कम दिलचस्प नहीं है. 42 वर्षीय बिंदू असिस्टेंट लेक्चरर है. वह कन्नूर युनिवर्सिटी के थलेसी पलैयड स्कूल ऑफ लीगल स्टडीज में पढ़ाती है. लेकिन, बिंदू अपने इस प्रोफेशन के अलावा सीपीआई (माले) की कार्यकर्ता भी है. इतना ही नहीं, सबरीमाला मंदिर में दर्शन करने वाली दूसरी महिला कनकदुर्गा मलापुरम की रहने वाली है, और वह सिविल सप्लाय विभाग में कार्यरत है. लेकिन इस प्रोफेशन के अलावा वह चेन्नई स्थित उस संगठन की सदस्य भी है, जो सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश कराने की मुहिम में लगा है.
इन दोनों महिलाओं ने 24 दिसंबर को भी सबरीमाला मंदिर में घुसने की कोशिश की थी. लेकिन इनके इरादे का लोगों को पता चला, उन्होंने इनकी कोशिश को 100 मीटर भी आगे नहीं बढ़ने दिया. केरल में सबरीमाला मंदिर को लेकर राजनीति अपने चरम पर है. और ये दोनों महिलाएं भी उस राजनीति का हिस्सा हैं. लिहाजा, जब दोनों महिलाओं को मंदिर में प्रवेश कराया गया, तो उसके बाद पुजारियों ने मंदिर का दरवाजा बंद कर उसका शुद्धिकरण किया. और एक घंटे बाद इसे फिर खोला. यानी संदेश अब भी वही दिया गया कि ब्रह्मचारी भगवान अय्यप्पा का दर्शन करना महिलाओं के लिए उचित नहीं है.
क्यों राजनीति का अखाड़ा बन गया आस्था का मंदिर
19 अगस्त 1990 को जन्मभूमि डेली अखबार में छपी एक तस्वीर से सबरीमाला मंदिर चर्चाओं में आ गया था. तस्वीर में केरल की तत्कालीन वामपंथी सरकार द्वारा पदस्थ की गईं देवस्वम बोर्ड कमिश्नर चंद्रिका का परिवार दिखाई दे रहा है. मंदिर के भीतर चंद्रिका की नातिन का चोरुनु संस्कार किया जा रहा था. लेकिन साथ में बच्ची की मां भी खड़ी थीं जिसको लेकर विवाद हो गया.
केरल के चंगनशेरी में रहने वाले एस. महेंद्रन ने 24 सितंबर 1990 को इस तस्वीर को आधार बनाकर जनहित याचिका के जरिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया
इस तस्वीर को आधार बनाकर सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश का मामला केरल हाईकोर्ट पहुंचा और फिर सुप्रीम कोर्ट. केरल हाईकोर्ट ने जहां सबरीमाला मंदिर में प्रवेश को लेकर 10 से 50 वर्ष की महिलाओं पर प्रतिबंध लगा दिया है, वहीं इस फैसले को पलटते हुए 28 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश की छूट दे दी.
लेकिन प्रवेश का विरोध खत्म नहीं हो रहा. आप विरोधियों को भगवान अय्यप्पा के भक्त कहें या फिर पार्टी समर्थक ये आपकी इच्छा है. केरल में लेफ्ट की सरकार है और वहां रीजनल पार्टियों को भाजपा का समर्थन. लिहाजा ये स्थिति तो बनती ही.
कुछ ही महीनों पहले जब अमित शाह भाजपा कार्यालय का उद्घाटन करने केरल गए थे, तब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि 'जिनका पालन हो सके, वही फैसले सुनाए कोर्ट' और ये भी कि भाजपा भगवान अयप्पा के श्रद्धालुओं के साथ चट्टान की तरह खड़ी रहेगी.
आज प्रधानमंत्री भी इस मामले पर पहली बार खुलकर सामने आए, उनहोंने कहा कि- हर मंदिर की अपनी मान्यता होती है. ऐसे भी मंदिर हैं जहां पुरुषों के जाने की मनाही है. हमें सुप्रीम कोर्ट की महिला जज की बात ध्यान से समझनी होगी.'
Every Temple has their own beliefs.
There are temples where men are not allowed.
We should read minutely what the Respected Lady Judge said on the Sabarimala case: PM @narendramodi
— PMO India (@PMOIndia) January 1, 2019
उस महिला जज ने क्या कहा था जिसकी बात प्रधानमंत्री मोदी ने दोहराई
सबरीमाला मामले में फैसला सुनाने वाली सुप्रीम कोर्ट की बैंच में तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस आर नरीमन के अलावा जस्टिस इंदु मल्होत्रा भी थीं. लेकिन इन तमाम जजों में से सिर्फ सिर्फ जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने यह मत जाहिर किया था कि कोर्ट को मंदिर की परपंपरा में दखल नहीं देना चाहिए. जस्टिस इंदु मल्होत्रा का पक्ष था कि-
'धार्मिक मान्यताएं भी बुनियादी अधिकारों का हिस्सा हैं और कोर्ट को धार्मिक परंपराओं में दखल नहीं देना चाहिए. धार्मिक आस्थाओं को आर्टिकल 14 के आधार पर नहीं मापा जा सकता. उन्होंने कहा कि धार्मिक आस्था के मामलों और परंपरा पालन में कोर्ट की भूमिका सेक्युलर भावना के अनुरूप होनी चाहिए. संवैधानिक नैतिकता बहुलता के आधार पर होनी चाहिए. धार्मिक मान्यता और परंपराओं के मामले में मंदिर प्रशासन की दलीलें उचित हैं. सबरीमाला मंदिर के पास आर्टिकल 25 के तहत अधिकार है, इसलिए कोर्ट इन मामलों में दखल नहीं दे सकता. अनुच्छेद 25 किसी भी सूरत में बुनियादी अधिकारों पर हावी नहीं हो सकता.'
कब तक पुलिस सुरक्षा में महिलाओं को दर्शन करवाए जाएंगे?
सबरीमाला मंदिर में केरल की वामपंथी सरकार ने दो महिलाओं को प्रवेश तो करवा दिया, लेकिन उस मंदिर की परंपरा का पालन करवाने वाले पुजारियों को इस बात के लिए तैयार करवाना जरूरी नहीं समझा जो महिलाओं के प्रवेश पर ऐतराज करते आए हैं. रात के अंधेरे में दो महिलाओं को काले कपड़े में ढंककर चोरी-छुपे मंदिर के भीतर ले जाया गया. लेकिन, जब तक इन महिलाओं के मंदिर में प्रवेश का जश्न मनाया जाता, तब तक मंदिर के अपवित्र होने की खबर आने लगी. फिर मंदिर का शुद्धिकरण करवाए जाने की. महिलाओं को मंदिर में जबरन प्रवेश करवाने की वामपंथी सरकार की कोशिश इसलिए भी कामयाब नहीं होगी, क्योंकि मंदिर की मान्यता में महिलाओं के प्रवेश के लिए कोई जगह नहीं है. केरल की वामपंथी सरकार अपनी महिला कार्यकर्ताओं को सबरीमाला मंदिर की परंपरा में खड़ा कर तो रही है, लेकिन यहीं से केरल में राइट विंग को राजनीति करने की जगह भी दे रही है. इस पर जब तक राजनीति होती रहेगी, मंदिर को लेकर स्थिति ऐसी ही रहेगी. महिलाएं छिपते-छिपाते प्रवेश भी करती रहेंगी और मंदिर का शुद्धिकरण भी होता रहेगा.
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