सबरीमाला विवाद: बात 28 साल पुरानी उस तस्वीर की जिससे शुरू हुआ बवाल
सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के दर्शन का विवाद आज का मामला नहीं है. करीब 28 साल पहले इसकी शुरुआत हुई थी एक तस्वीर से, जो 19 अगस्त 1990 को जन्मभूमि डेली अखबार में छपी थी.
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सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद केरल में भगवान अय्यपा के अनुयायियों का विरोध नए दौर में पहुुंच गया है. बुधवार को श्रद्धालुओं के लिए जब मंदिर के दरवाजे खुले तो कोहराम मच गया. सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध कर रहे लोगों ने उपद्रव मचाना शुरू किया. मीडियाकर्मियों काे निशाना बनाया गया. लेकिन, इस ताजा विवाद को समझने के लिए हमें 28 साल पुरानी उस तस्वीर की कहानी को जान लेना चाहिए, जो आज के बवाल की जड़ बनी हुई है. यह तस्वीर 19 अगस्त 1990 को जन्मभूमि डेली अखबार में छपी थी. इसी तस्वीर को आधार बनाकर सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश का मामला केरल हाईकोर्ट पहुंचा और फिर सुप्रीम कोर्ट. केरल हाईकोर्ट ने जहां सबरीमाला मंदिर में प्रवेश को लेकर 10 से 50 वर्ष की महिलाओं पर प्रतिबंध लगा दिया है, वहीं इस फैसले को पलटते हुए 28 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश की छूट दे दी.
सबरीमाला मंदिर के भीतर एक अधिकारी के परिवार की महिलाओं की ये तस्वीर जब 1990 में सार्वजनिक हुई तो बवाल मच गया.
क्या है 28 साल पुरानी तस्वीर की कहानी
सबरीमाला मंदिर के भीतर की यह तस्वीर 28 साल पुरानी है. इस तस्वीर में केरल की तत्कालीन वामपंथी सरकार द्वारा पदस्थ की गईं देवस्वम बोर्ड कमिश्नर चंद्रिका का परिवार दिखाई दे रहा है. यहां चंद्रिका की नातिन का मंदिर के भीतर चोरुनु संस्कार (बच्चे को पहली चावल (अन्न) खिलाए जाने की परंपरा) किया जा रहा है. इस परंपरा को उत्तर भारत के अन्नप्राशन संस्कार से मिलाकर समझा जा सकता है. तस्वीर में चंद्रिका के अलावा उनकी बेटी, जो कि बच्ची की मां हैं वो भी दिखाई दे रही है. इसके अलावा परिवार के अन्य सदस्य, जिनमें महिलाएं शामिल हैं, वे भी मौजूद हैं. ये तस्वीर 19 अगस्त 1990 को केरल के दैनिक जन्मभूमि अखबार में छपी तो बवाल मच गया. केरल के चंगनशेरी में रहने वाले एस. महेंद्रन नामक शख्स ने 24 सितंबर 1990 को जनहित याचिका के जरिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और वीआईपी महिलाओं को परंपरा तोड़कर मंदिर में प्रवेश की छूट देने का विरोध किया. केरल हाईकोर्ट ने तस्वीर की गवाही को मानते हुए मामले का संज्ञान लिया, और लोगों की आस्था को प्राथमिकता दी. 5 अप्रैल 1991 को केरल हाईकोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध का फैसला सुनाते हुए कहा कि ये आस्था का विषय है, इसलिए संविधान के दायरे से बाहर है.
27 साल बाद मामले में आया यू-टर्न
केरल हाईकोर्ट के फैसले के बाद 2006 में यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. अबकी बार महिलाओं के दलील महिलाओं के हक में दी जा रही थी. 12 साल चली सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 28 सितंबर 2018 को फैसला सुनाते हुए मंदिर में महिलाओं के जाने पर उम्र की बाध्यता को खत्म कर दिया. आपको बता दें कि इससे पहले सबरीमाला मंदिर में सिर्फ 10 साल से कम की बच्चियों और 50 साल से अधिक उम्र की महिलाओं को ही प्रवेश की अनुमति थी. मान्यता है कि अय्यप्पा भगवान ब्रह्मचारी हैं, इसलिए उन महिलाओं का मंदिर में प्रवेश वर्जित रहेगा, जिन्हें मासिक धर्म होते हैं.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ हजारों की संख्या में महिलाओं ने सड़क पर उतरकर विरोध प्रदर्शन भी किया है.
...लेकिन कई बार टूटते रहे सबरीमाला के नियम
-पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सलाहकार और मुख्य सचिव रह चुके थोट्टुवेल्ली कृष्णा पिल्लाई अय्यपन नायर ने भी सबरीमाला मंदिर को लेकर एक बड़ा खुलासा किया था. उन्होंने बताया था कि 1940 के दौरान उनका चोरुनु संस्कार (अन्नप्राशन) भी सबरीमाला मंदिर में ही हुआ था. उस दौरान उनकी मां भी मंदिर में मौजूद थीं.
- कन्नड फिल्मों की अभिनेत्री और बाद में राजनीति में आने वाली जयमाला ने भी दावा किया था कि जब वह 28 साल की थीं तो 1987 में वह सबरीमाला मंदिर के भीतर गई थीं. उनके इस बयान के बाद तो केरल सरकार ने मामले की जांच की आदेश तक दे दिए थे, लेकिन बाद में उस केस की छानबीन रोक दी गई.
सबरीमाला मंदिर में वीआईपी परिवारों की महिलाओं को जाने की अनुमति देने के खिलाफ समय-समय पर आवाज उठती ही रही है. अब सुप्रीम कोर्ट ने भले ही सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश करने की अनुमति दे दी है. भले ही लग रहा हो कि ये फैसला महिलाओं के हक में गया है, लेकिन इस फैसले के खिलाफ प्रदर्शन करने वालों में भी अधिकतर महिलाएं ही हैं. कुछ साल पहले तो बहुत सी महिलाएं #ReadyToWait के साथ यह भी कह चुकी हैं कि वह 50 साल की उम्र तक इंतजार करने को तैयार हैं. खैर, सबरीमाला मंदिर अब सिर्फ एक मंदिर नहीं रहा, बल्कि कुरुक्षेत्र बन चुका है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह अपने फैसला का रीव्यू नहीं करेगा, लेकिन लोग अपनी जिद पर अड़े हैं. अब आस्था से जुड़ा ये मामला क्या मोड़ लेता है, ये देखना दिलचस्प होगा.
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