सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर SC के फैसले के खिलाफ नजर आ रही है ट्विटर की जनता
सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर जिस तरह सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है. समाज दो वर्गों में विभाजित हो गया है, जिसमें कुछ लोग अदालत के साथ हैं तो कुछ उसकी बातों के खिलाफ.
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लंबे इंतजार के बाद आखिरकार उन महिलाओं को राहत मिल गई, जो भगवान अयप्पा के दर्शन के लिए सबरीमाला जाना चाहती थी. अब तक सबरीमाला में महिलाओं का प्रवेश निषेध था. केरल के सबरीमाला मंदिर में 10 से50 साल तक की उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर लगी रोक पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत के अपने फैसले में मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर लगी रोक हटा दी है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने द्वारा दिए गए फैसले में कहा है कि महिलाएं कहीं से भी पुरुषों से कमतर नहीं हैं. मंदिर में उनके प्रवेश पर लगी रोक भेदभाव को जन्म देती है.
ज्ञात हो कि चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ जिसमें जस्टिस आर एफ नरीमन, जस्टिस ए एम खानविलकर, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदू मल्होत्रा हैं, ने आठ दिनों तक सुनवाई करने के बाद,1 अगस्त को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को महिलाओं के मद्देनजर एक बड़ा फैसला माना जा रहा है
फैसले पर चीफ जस्टिस दीपक मिश्ना ने अपना मत प्रकट करते हुए कहा कि भगवान अयप्पा के श्रद्धालु हिंदू हैं. आप अपनी रोक से एक अलग धार्मिक प्रभुत्व बनाने की कोशिश न करें. किसी भी शारीरिक एवं बॉयोलाजिकल कारण को रोक का आधार नहीं बनाया जा सकताहै. सबरीमाला मंदिर की ओर से लगाए गए प्रतिबंधों को जरूरी धार्मिक क्रियाकलाप के रूप में मान्यता नहीं दी जा सकती. सीजेआई दीपक मिश्रा ने ये भी माना कि महिलाएं पुरुषों से कहीं से भी कमजोर नहीं हैं अतः शरीर के आधार पर उनके साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता.
वहीं मंदिर में महिलाओं पर लगी रोक के सन्दर्भ में जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने अपनी अलग राय पेश की है. जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने कहा कि धार्मिक परंपरा को केवल समानता के अधिकार के आधार पर परीक्षण नहीं कर सकते. धार्मिक रूप से कौन सी परिपाटी जरूरी है इसका फैसला श्रद्धालुओं करें न कि कोर्ट. साथ ही इंदु मल्होत्रा ने ये भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया फैसला केवल सबरीमाला मंदिर तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि इसका व्यापक असर भी होगा. इंदु मल्होत्रा का मत था कि गहरी आस्था वाले धार्मिक भावनाओं के मुद्दों पर सामान्य रूप से किसी को भी दखल नहीं देना चाहिए.
Present judgement won't be limited to Sabarimala, it will have wide ramifications. Issues of deep religious sentiments shouldn't be ordinarily interfered into: Justice Indu Malhotra, dissenting judge. #SabrimalaVerdict
— ANI (@ANI) September 28, 2018
बहरहाल इस ऐतिहासिक फैसले के बाद चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है. फैसले के बाद समाज दो वर्गों में विभाजित होता नजर आ रहा है जिसमें एक वर्ग ऐसा है जो कोर्ट के फैसले के साथ है तो वहीं दूसरा वर्ग इसका विरोध कर रहा है. आइये एक नजर डालते हैं ट्विटर पर और देखते हैं कि इस मुद्दों पर लोगों का क्या कहना है.
बीजेपी महिला मोर्चा से जुड़ी प्रीती गांधी इस फैसले से खुश नहीं हैं. प्रीती ने ट्वीट करते हुए कहा है कि, महिलाएं मंदिर में क्यों नहीं जा सकती इसका कारण है. भगवान अयप्पा को एक ब्रह्मचारी की तरह पूजा जाता है.अपनी वरीयताओं को सिर्फ एक बिंदु सिद्ध करने के भगवान पर थोपना सही नहीं है.
There is a reason why women are not allowed inside the temple. Lord Ayyappa is worshipped in the form of a 'brahmchari' at Sabarimala. Forcing our preferences on a god who is an eternal celibate just to prove a point is certainly not the way to go about. #SabarimalaVerdict
— Priti Gandhi (@MrsGandhi) September 28, 2018
ट्विटर यूजर अजीत भी इस फैसले से खुश नहीं हैं और माना है कि हिंदू और हिंदुत्व के लिए आज बुरा दिन हैं.
Sad day for Hindus, Hinduism and its traditions and customs. #SabarimalaVerdict
— Ajith Manakadan (@Bawachi64) September 28, 2018
ट्विटर यूजर श्रीजीत ने अपने ट्वीट में लिखा है कि ऐसे फैसले और कुछ नहीं बस हिंदू मान्यताओं के साथ छेड़छाड़ हैं. आखिर क्यों केवल हिंदू मान्यताओं के साथ छेड़छाड़ की जा रही है?
#SabarimalaForAll #Sabarimala #SabarimalaVerdict if congies commies etc support this verdict y are they not supporting removal of reservation. Y are u people destroying only Hindu beliefs.Y can't you raise d voice against other religion coz they r supported by other big nations.
— Shrijith (@shrijith2008) September 28, 2018
@ProfMK_ भी सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से इत्तेफाक नहीं रखते और माना है कि इसका लिंग भेद से कोई लेना देना नहीं है. यहां बात नियमों की है जिसका पालन किया जाएगा.
#SabarimalaVerdict SC has got this completely wrong, nothing to do with gender discrimination but everything to do with the Naishtika Brahmacharya Pratisha, the consecrated celibate form; rules & regulations are based on reigning deity. https://t.co/JIC2oCaLnu
— ProfMK (@ProfMK_) September 28, 2018
मानिनी के अनुसार ये महिलाओं की जीत नहीं है. इससे भारत के हर हिंदू को नुकसान है.
#SabarimalaVerdict is not a victory for women, it is a loss for every Hindu in India. I mourn for my dharma and my plight in the land of my ancestors.
— Manini ♀ (@CuriousKudi) September 28, 2018
वीआर प्रसाद ने भी अपने ट्वीट के जरिये एक साथ कई सवालों को खड़ा कर दिया है.
Who filed the case ? Who is supporting them ?
Whether Vatekan plan is on the move, who want to dilute Hindu religion and cultural principles.What next they have targeted ?
— v.r.prasad (@vrprasad12) September 28, 2018
दुर्गा रामदास के अनुसार अब जबकि हिंदू मान्यताओं के साथ छेड़छाड़ की जा रही है ये अपने आप में दुखद है कि केरल की कोई भी महिला इसके विरोध में नही आई.
Sad to see the ancient Hindu rituals are disturbed. None of the Keralite womens had opposed but an outsider appeals and gets a decision in his favour. Hindu traditions are under threat #SabarimalaVerdict
— Durga Ramdas Kateel (@durgaramdas) September 28, 2018
हीरा मेहता इस फैसले से खुश हैं और इसे एक ऐतिहासिक फैसला मानते हुए कहा है कि यदि महिलाओं को परिवर्तन देखना है तो उन्हें खुद आगे आना होगा.
#Sabarimala #SabarimalaVerdict SC 's landmark decision. Indeed a step forward for the country & women. Equality rules today. Hope the change happens in homes too where mind sets still rule. Women must stand up for themselves if they want to see change..
— HIRAMEHTA (@HIRAMEHTA3) September 28, 2018
आदर्श ने अपने ट्वीट से प्रश्न उठाएं हैं कि आखिर ऐसी क्या वजह है जिसके चलते कोर्ट को इस तरह का फैसला देना पड़ा.
The next thing you know idiots will start questioning and giving verdicts on every religious practices and traditions.Extremely disappointed with the #SabarimalaVerdictFor nearly 2000 years, women (age 15 to 55) haven't entered the temple, why now??
— Addy (@Adarsh_Ned) September 28, 2018
अनूप के ट्वीट करते हुए कहा है कि अब जबकि हिंदू महिलाओं को उनका हक मिल गया है देखना दिलचस्प होगा कि मुस्लिम और ईसाई महिलाओं को उनका हक कब मिलता है. आखिर कब मुस्लिम महिलाएं मस्जिद में नमाज पढ़ पाएंगी? कब हम ईसाई महिलाओं को पोप बनते हुए देख पाएंगे.
Women's rights must now be given to even the "Muslim and Christian" women
Muslim women should be allowed to offer NAMAAZChristian women should be allowed to become POPE
Let us start a revolution to ensure justice to these women ????♀️????♂️#Sabarimala #SabarimalaVerdict
— Anoop Samraj (@anoopsamraj) September 28, 2018
अशोक कुमार ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा है कि, एक तरफ स्त्री को देवी के रूप में पूजते हैं, दूसरी तरफ मंदिर जाने पर रोक लगाते हैं.
#SabarimalaVerdict में कहा गया सबसे बेहतरीन स्टेटमेंट,मेरे हिसाब से ???? "एक तरफ स्त्री को देवी के रूप में पूजते हैं, दूसरी तरफ मंदिर जाने पर रोक लगाते हैं ।"
आभार #SupremeCourtofIndia ???? https://t.co/yJPgTzLa0U
— Ashok Kumar (@SimplyAshokKr) September 28, 2018
गौरतलब है कि महिलाओं का एक समूह ऐसा भी था जिसने ये कहा था कि यदि फैसला उनके हक में भी आ जाता है तो उन्हें कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता. अपनी श्रद्धा और विश्वास के चलते वो मंदिर में प्रदेश नहीं करेंगी. यदि हमें इस बात को समझना हो तो हम इसे एक ट्वीट के जरिये बहुत ही आसानी के साथ समझ सकते हैं.
Good that SC opens gates for women to #Sabarimala temple .But I as a Hindu women will never enter till age of 50.That's my devotion and no one can play with it.And I am sure there are women like me who would be on my side.#SabarimalaVerdict
— purva bhargava (@BhargavaPurva) September 28, 2018
सोशल मीडिया पर लोग भले ही लोग इस फैसले का विरोध कर रहे हों या फिर इसके समर्थन में हों. मगर इस फैसले में महिलाओं के मद्देनजर जो भी बातें कोर्ट ने कहीं वो कहीं न कहीं उन्हें बल देंगी. कहना गलत नहीं है कि भले ही फैसले को लेकर लोग अदालत की आलोचना में जुट गए हों मगर देखा जाए तो महिला सशक्तिकरण और बराबरी के भाव के मद्देनजर ये एक बड़ा और बेहद ऐतिहासिक फैसला है जिसका देश के प्रत्येक नागरिक को स्वागत करते हुए सुप्रीम कोर्ट को सम्मान देना चाहिए.
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