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Updated: 02 जनवरी, 2023 07:19 PM
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विभिन्न अल्पसंख्यक समुदायों में संख्या के लिहाज से सबसे कम संख्या जैन समुदाय की है, तो इस लिहाज से उनकी आपत्ति को निर्विवाद स्वीकार किया जाना ही चाहिए. झारखंड के गिरिडीह जिले में पारसनाथ पहाड़ी पर स्थित जैन धर्म के पवित्र स्थल सम्मेद शिखर जी की महत्ता सर्वोपरि है. इस मायने में कि समुदाय के विभिन्न मतों मसलन दिगंबर या श्वेतांबर, विभिन्न पंथ मसलन स्थानकवासी या मंदिरमार्गी या तेरापंथ या बीसपंथी, सभी की मान्यता है. जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकरों ने यहीं निर्वाण प्राप्त किया था.

कुल मिलाकर हर पंथ समवेत शिखर जी में पूर्ण आस्था रखते हैं. इस जैन तीर्थ स्थल को पर्यटन स्थल बनाये जाने के निर्णय ने समूचे जैन समुदाय को आंदोलित कर दिया है. देश के हर राज्य मसलन कर्नाटक, झारखंड, बंगाल, मध्य प्रदेश, राजस्थान और असम आदि में सरकार के इस कदम का विरोध करते हुए जैन अनुयायियों ने शांति मार्च निकाला है. कई अनुयायी दिल्ली में 26 दिसंबर से आमरण अनशन भी कर रहे हैं. इस संदर्भ में सरकारी अधिसूचना की मंशा है सम्मेद शिखर जी के एक हिस्से को गैर धार्मिक गतिविधियों के साथ वन्य जीव अभ्यारण्य घोषित कर पर्यटन स्थल के रूप में इसे विकसित करना. जैन समुदाय का स्पष्ट मत है कि ऐसा हो जाने के बाद जाने के बाद लोग मनोरंजन करने के लिए यहां आ सकेंगे जिससे इस स्थल की पवित्रता पर असर होगा, आध्यात्मिक मनोभावों की अवगति होगी.

Sammed Shikharji, Tourism Project, Jainsसम्मेद शिखरजी के संरक्षण को लेकर जैन धर्म के लोग लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं

दूसरी तरफ शिखर जी को इको टूरिज्म प्लेस बनाये जाने के पक्ष में पर्यटन विभाग की अपनी दलीलें हैं कि लोगों को सुविधाएं मुहैया कराने के लिए क्षेत्र को पर्यटन क्षेत्र घोषित करना जरूरी हो जाता है. विभाग का कहना है, "सम्मेद शिखरजी में कोई बड़ा निर्माण या संरचना विकसित करने की राज्य सरकार की कोई योजना नहीं है. जैन समाज के लोगों के साथ हुई बैठक में सम्मेद शिखर जी के विकास के लिए 6 सदस्यों का पैनल बनाने की बात भी कही है. क्षेत्र में मांस मदिरा पर जो रोक लगी हुई है, उसका कड़ाई से पालन कराया जाएगा." इसी बीच पिछले दिनों सम्मेद शिखर जी क्षेत्र में एक विवाद भी हो गया था. यहां कुछ स्कूली बच्चे पहाड़ी पर चढ़ रहे थे, जैन समाज के लोगों ने उन्हें रोका तो इसके बाद विरोध शुरू हो गया. गैर जैन लोगों ने विरोध में मधुबन बाजार और आसपास के क्षेत्रों को बंद करा दिया.

इसके बाद से स्थानीय प्रशासन और राज्य सरकार इस मामले को नियंत्रित करने का प्रयास कर रहे हैं. सीएम सोरेन ने भी अभी मास्टर प्लान को होल्ड पर डाल दिया है तो दूसरी ओर राज्यपाल रमेश बैस ने इस मामले में केंद्रीय मंत्री को पत्र लिखा है. इस मामले में झारखंड के अल्पसंख्यक आयोग ने भी झारखंड के मुख्य सचिव को पत्र लिखा है और ये मुद्दा उठाया है. आयोग इसी महीने की 23 तारीख को सुनवाई भी करेगा. जैन समुदाय जोरशोर से इस स्थल को "पवित्र स्थल" घोषित करने की मांग भी कर रहा है. दरअसल सम्मेद शिखर जी को लेकर वर्तमान स्थिति जो निर्मित हुई है इसकी जड़ में हैं केंद्रीय वन मंत्रालय का इस जगह को ईको सेंसिटिव जोन बनाये जाने का अगस्त 2019 का ग़ज़ट नोटिफिकेशन जिसके लिए झारखंड सरकार ने फ़रवरी 2018 में सिफ़ारिश की थी.

केंद्रीय मंत्रालय ने अपने गजट में राज्य सरकार को इस जगह के विकास के लिए दो साल के भीतर ज़ोनल मास्टरप्लान बनाने के लिए भी अधिकृत किया था. इसी के तहत झारखंड सरकार ने साल 2021 में ईको-टूरिज़्म नीति बना दी. इस नोटिफिकेशन के बाद भी ना तो अवैध खनन रुका नहीं और ना ही अन्य अवैध गतिविधियां रुकी जिनसे पर्यावरण पर विपरीत असर पड़ता है, बल्कि राज्य सरकार 2021 में ईको टूरिज्म नीति ले आई. सरकार का तर्क है "धार्मिक पर्यटन स्थल" का लेकिन किसी भी पर्यटन स्थल से जुड़ी गतिविधियां मनोरंजन प्रधान हो जाती है और मनोरंजन के नाम पर या मनोरंजन की आड़ में क्या क्या हो सकता है बताने की ज़रूरत नहीं है.

अभी जो जैन श्रद्धालु पर्वत पर जाते हैं वो रात दो बजे से चढ़ाई शुरू करते हैं और दर्शन करके लौट आते हैं, वो पर्वत पर रुकते नहीं है. ईको टूरिज़्म के तहत आने वाले लोग इस स्थल पर मनोरंजन से जुड़ी गतिविधियां करेंगे और रात को यहां टेंट लगाकर रुका भी करेंगे. बड़ा सवाल है कैसे पवित्रता रह पाएगी? केंद्र सरकार पल्ला झाड़ ले रही है चूंकि सरकार जो डबल इंजन की नहीं है वहां. सो दिसम्बर माह में एक पत्र भर लिखकर रह गई जिसके अनुसार कह भर दिया कि झारखंड सरकार ने अपने संवाद में पवित्र स्थल की पवित्रता की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्धता ज़ाहिर की है, लेकिन ये नहीं बताया है कि इस दिशा में क्या क़दम उठाए जाएंगे.

इसके साथ ही गेंद राज्य सरकार के पाले में डाल दी कि वह पुनर्विचार करे. उधर मुख्यमंत्री वेट एंड वॉच की स्थिति अपनाए बैठे हैं. जैन प्रतिनिधियों का स्पष्ट मानना है कि अब तक जो भी सरकार रही, यहां तक कि सोरेन सरकार भी, सबों ने जैन धर्म की आस्था का सम्मान किया है सिवाय बीजेपी की रघुबर दास सरकार के जिसने शिखरजी को पर्यटन स्थल बनाने का प्रस्ताव भेज दिया. सच्चाई भी है कि पर्यटन स्थल बना दिये जाने से हर तरह के यात्री जाएंगे, होटल बनेंगे, लोग मांस-मछली भी खाएंगे.

इससे जैन आस्था को ठेस पहुंचेगी. जैन समुदाय की आपत्ति पर्यटन शब्द से है. उनका साफ़ कहना है कि जैसे वैष्णो देवी, स्वर्ण मंदिर तीर्थ स्थल है. हमें अपने इस स्थल के विकास के लिए सरकार से किसी फंड या मदद की ज़रूरत नहीं है. बेहतर तो यही होगा कि बीच का रास्ता निकले. धर्मस्थली की पवित्रता अक्षुण्ण रखने ले लिए कड़े नियमों का प्रावधान किया जा सकता है ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार स्वर्ण मंदिर, वैष्णोदेवी में है, दक्षिण के प्रमुख मंदिरों में है और अन्य धर्मावलंबी भी नियमों का सम्मान भी करते हैं. निःसंदेह टूरिज्म के विकास से लोगों का आवागमन बढ़ेगा तो लोग जैन तीर्थंकरों से वाक़िफ़ होंगे और तदुनुसार जैन धर्म भी प्रसार प्रचार पायेगा.

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लेखक

prakash kumar jain prakash kumar jain @prakash.jain.5688

Once a work alcoholic starting career from a cost accountant turned marketeer finally turned novice writer. Gradually, I gained expertise and now ever ready to express myself about daily happenings be it politics or social or legal or even films/web series for which I do imbibe various  conversations and ideas surfing online or viewing all sorts of contents including live sessions as well .

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