क्या मुआवजे के लिए मरने वाले के बेटा होना ही जरूरी है?
सवाल ये उठता है कि दिल्ली सरकार को 11 साल के उस बच्चे के आंसुओं में खोट क्यों नजर आया. वो बच्चा चादर हटा कर मृत पड़े अनिल का चेहरा देखकर पापा पापा कहकर रोता रहा. क्या उसकी आंखों से गिरने वाले आंसू बनावटी हो सकते थे, क्या वो बच्चा उसे पापा कहने का नाटक कर रहा था?
-
Total Shares
दिल्ली में सीवर की सफाई के दौरान अनिल नाम के एक युवक की मौत हो गई थी. अनिल के शव के साथ उसके रोते हुए बेटे की तस्वीर एक जर्नलिस्ट ने ट्विटर पर शेयर की. देखते ही देखते ये बेहद भावुक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो गई. एनजीओ उदय फाउंडेशन और ketto.org के जरिए इस परिवार के लिए फंड जुटाने की गुहार भी लगाई गई थी. और इस तस्वीर से प्रभावित होकर लोगों ने 57 लाख रुपए इकट्ठा भी कर लिए.
The boy walked up to his father's body at a crematorium, moved the sheet from the face, held the cheeks with both hands, just said 'papa' & began sobbing.
The man was yet another poor labourer who died in a Delhi sewer on Friday. Family did not have money even for cremating him. pic.twitter.com/4nOWD9Aial
— Shiv Sunny (@shivsunny) September 17, 2018
सीवर की सफाई करने वाले के परिवार के लिए 57 लाख रुपए जमा होना मायने रखता है. इंसानियत की इस मिसाल पर हम खुश हो ही रहे थे कि मामले में एक नया मोड़ आया और सरकार का दूसरा चेहरा हमारे सामने आ गया. पता चला है कि तस्वीर में दिखाई देने वाला बच्चा अनिल का बेटा है ही नहीं बल्कि वो तो उसका मौसेरा भाई है. और जैसे ही दिल्ली सरकार को इस बात की खबर लगी उन्होंने तुरंत मुआवज़े पर रोक लगा दी.
परिवार चलाने वाला नहीं रहा
मृतक अनिल के माता-पिता गाजियाबाद के लोनी में रहते हैं. और अनिल पिछले 3 सालों से अपनी मौसी रानी के साथ रहा था. ये दोनों पति-पत्नी की तरह रहते थे. पिछले पति से रानी के तीन बच्चे थे और अनिल के साथ भी एक बच्चा हुआ. लेकिन अनिल की मौत के 6 दिन पहले ही 4 महीने के उस बच्चे की निमोनिया से मौत हो गई थी. रानी और उसके बच्चे आर्थिक रूप से भी अनिल पर ही निर्भर थे. कहने का मतलब ये है कि अनिल मौसी के बच्चों को अपने बच्चों की तरह ही पाल रहा था. और अब परिवार चलाने वाला नहीं रहा.
रानी और उसके बच्चे आर्थिक रूप से भी अनिल पर ही निर्भर थे
इस मामले में जब मुआवजे की बात अनिल के माता-पिता को पता चली तो वो रानी से पैसों के लिए लड़ने लगे. यानी अब मुआवजे की रकम के दो दावेदार हैं. एक रानी जो कि अनिल की पत्नी नहीं है और दूसरे अनिल के माता-पिता.
और अब जब ये मामला रिश्तों की पेचीदगियों में उलझ गया तो परिवार को मिलने वाला मुआवज़ा भी उलझ गया है. पुलिस मृतक के रिश्तों की असलियत का पता लगाने में जुटी है. आश्वासन दिया जा रहा है कि जैसे ही असल डिपेंडेंट्स का पता लग जाएगा, उन्हें मुआवज़े की रकम दे दी जाएगी.
एनजीओ को पैसा देने में कोई परेशानी नहीं
जबकि फंड जुटाने वाली संस्था उदय फाउंडेशन को रानी को पैसा देने में कोई परेशानी नहीं है. संस्था का कहना है कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि अनिल बच्चे का असली पिता नहीं था. जब सुप्रीम कोर्ट के अनुसार एक वयस्क जोड़े को शादी के बिना एक साथ रहने का अधिकार है, तो अनिल ने कोई गलती नहीं की. और इसलिए संस्था उनके साथ है. दान में मिले पैसे बच्चे और उसके भाई-बहनों के खाते में जमा किए जाऐंगे. वयस्क होने के बाद वो पैसे प्राप्त कर सकते हैं. लेकिन तब तक उस पैसे से मिलने वाले ब्याज से परिवार का खर्च और बच्चों की पढ़ाई लिखाई का ध्यान रखा जाएगा.
क्या मुआवजे के लिए मरने वाले के बेटा होना ही जरूरी है?
अब सवाल ये उठता है कि दिल्ली सरकार को 11 साल के उस बच्चे के आंसुओं में खोट क्यों नजर आया. वो बच्चा चादर हटा कर मृत पड़े अनिल का चेहरा देखकर पापा पापा कहकर रोता रहा. क्या उसकी आंखों से गिरने वाले आंसू बनावटी हो सकते थे, क्या वो बच्चा उसे पापा कहने का नाटक कर रहा था? अपने पिता की मौत के आगे रोता हुआ बच्चा झूठ कैसे बोल सकता है? अनिल उसका बायोलॉजिकल पिता भले ही न हो लेकिन वो उसके लिए पिता सेस भी बढ़कर था. जो उसे एक अच्छी जिंदगी देना चाहता था. अनिल नहीं चाहता था कि वो बच्चा भी बड़े होकर सीवर की सफाई करे इसलिए 14 तारीख को ही बच्चे का दाखला स्कील में करवाकर आया था. पर ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था कि उसी दिन अनिल की मौत हो गई. एक परिवार बिखर गया. बच्चों के सिर से पिता का साया उठ गया. उस परिवार पर दुखों का परिवार टूट पड़ा कि एक ही हफ्ते में घर में दो मौतें हो गईं और हमारी सरकार इस बात की तहकीकात में जुटी है कि मुआवजे का असली हकदार कौन है. सरकार इतनी मेहनत सीवर सफाई के पुराने, घिसे-पिटे और घटिया तरीकों को सुधारने की दिशा में क्यों नहीं करती. सीवरों की सफाई में मरने वालों की बढ़ती संख्या पर खुद का आंकलन क्यों नहीं करती सरकार?
क्या मुआवजे के लिए मरने वाले के बेटा होना ही जरूरी होता है?
माना कि रकम बड़ी है. लेकिन क्या उस परिवार की जरूरतें बड़ी नहीं है? मुआवजे की रकम पर जितना हक अनिल के माता-पिता का है उतना ही हक उन बच्चों का भी है जो अनिल पर ही निर्भर थे. क्या मुआवजे के लिए मरने वाले के बेटा होना ही जरूरी होता है? लोगों ने जितना भावुक होकर इस परिवार के लिए पैसा जुटाया, उसकी आधी भावुकता भी अगर सरकार दिखा दे तो अनिल का ये परिवार एक बेहतर कल पा सकता है. लोगों की नजर में भले ही रानी और अनिल का ये रिश्ता गलत हो, बच्चे के साथ पिता का रिश्ता झूठा हो, लेकिन बच्चे के आंसू बिल्कुल झूठे नहीं हो सकते और इस झूठ से ये सच नहीं बदल जाता कि इस परिवार को पैसे की जरूरत नहीं है.
ये भी पढ़ें-
भारत में अब भी 19.4 करोड़ लोग रोज भूखे सोते हैं
तरक्की की राह पर भारतीय गरीब और नेता उलटी राह पर चले
आपकी राय