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Updated: 28 मई, 2018 09:23 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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हर हाथ में स्मार्टफोन और लगभग फ्री का इंटरनेट. ऐसे में एक अदना सा मैसेज, तस्वीर या वीडियो कितना सितम ढा सकता है, इसका ताजा उदाहरण हैदराबाद की एक घटना है. सोशल मीडिया पर एक वीडियो फैलना शुरू हुआ, जिसके भी पास ये वीडियो जाता, वो इसे बिना जांचे-परखे आगे बढ़ा देता. देखते ही देखते इस फर्जी वीडियो ने एक ऐसी भीड़ पैदा कर दी, जो हत्या के लिए आमादा होकर गलियों में घूमने लगी. तलाश थी उसकी, जिसे वीडियो में दिखाया गया था. और ये सोशल मीडिया एक ट्रांसजेंडर महिला के लिए तब काल बन गया, जब खून की प्यासी भीड़ ने उसे देख लिया. ये वो भीड़ है, जो खुद को सुप्रीम कोर्ट से भी ऊपर मानती है और बिना किसी सुनवाई के ही सजाए मौत का हुक्म दे देती है.

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क्या है मामला?

ये मामला हैदराबाद के चंद्रयानगुट्टा का है, जहां पर भीड़ ने 52 साल की एक ट्रांसजेंडर महिला की हत्या कर दी. शक इस बात का था कि वह बच्चे चुराती है. इस अफवाह को सोशल मीडिया के जरिए फैलाया गया. नतीजा ये हुआ कि एक भीड़ उस महिला को जान से मारने जा पहुंची. अफवाह के रूप में एक वीडियो शेयर की जा रही थी, जिसमें बच्चा चुराने वाले एक गैंग के बारे में बताया गया था. चार ट्रांसजेंडर को लोगों ने वही गैंग वाला समझकर बहुत मारा, जिसमें से एक की इलाज के दौरान मौत हो गई, जबकि बाकी 3 बुरी तरह से घायल हुए हैं. पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज के आधार पर इस मामले में 35 लोगों को हिरासत में लिया है. साथ ही पुलिस ने लोगों को कानून हाथ में न लेने और ऐसी अफवाहों पर ध्यान न देने की भी सलाह दी है.

रुकती क्यों नहीं ऐसी घटनाएं?

ऐसी घटनाओं पर लगाम लगाने की कोशिशें तो होती हैं, लेकिन सोशल मीडिया की अफवाहें पुलिस प्रशासन के सभी दावों को फेल कर देती हैं. पुलिस को इस बात की खबर भी नहीं लग पाती और देखते ही देखते लोगों की किसी स्थान पर जमा हो जाती है. मौजूदा समय में भीड़ द्वारा किसी की हत्या किए जाने को लेकर अलग से कोई कानून नहीं है. भले ही किसी एक शख्स ने हत्या की हो या फिर भीड़ ने, सभी पर आईपीसी की धारा 302 ही लागू होती है. हालांकि, केस के हिसाब से अन्य धाराएं भी लगाई जा सकती हैं जैसे हत्या की कोशिश (307), चोट पहुंचाने (323), गैर इरादतन हत्या (304).

कौन होते हैं ये लोग?

महंगाई के इस दौर में रोजी-रोटी कमाने और परिवार के लिए सुख-सुविधाओं का इंतजाम करने में जिंदगी गुजर रही है. ऐसे में ये कौन लोग होते हैं, जो महज एक मैसेज, तस्वीर या वीडियो भर देख कर ही किसी के खून के प्यासे हो जाते हैं? ये लोग कौन हैं जो कानून हाथ में लेने से भी नहीं डरते? सवाल ये भी उठता है कि क्या लोगों को न्यायपालिका पर भरोसा नहीं रहा या फिर किसी साजिश के तहत ऐसी वारदातों को अंजाम दिया जाता है? कारण जो भी हो, लेकिन इस तरह की घटनाएं पुलिस और सरकार दोनों पर सवाल खड़े करती हैं. सवाल ये कि एक के बाद होती ऐसी घटनाओं पर लगाम लगाने में सरकार और पुलिस नाकाम क्यों साबित हो रही है? सवाल ये भी है कि एक-दूसरे से जुड़े रहने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला सोशल मीडिया हत्या का जरिया क्यों बनता जा रहा है? फर्जी वीडियो और तस्वीरें शेयर करने के लिए जिम्मेदार किसे माना जाए? सवाल कई हैं, लेकिन जवाब नहीं हैं. खैर, आज सभी को ठंडे दिमाग से ये सोचने की जरूरत है कि अब जिंदगी का क्या मोल रह गया है.

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