भगदड़ में हुई मौतों के जिम्मेदार, तंत्र के अलावा हम भी हैं
चाहे बिहार के बेगूसराय में हुई घटना हो या मुंबई के एलफिंस्टन रेलवे स्टेशन हादसा इन घटनाओं से एक बात तो साफ है कि घटनाओं में जिम्मेदारी केवल सरकार की नहीं है. इसके लिए जिम्मेदार हम भी हैं.
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बिहार के बेगूसराय जिले में, सिमरिया घाट पर, गंगा स्नान के दौरान मची भगदड़ में, चार श्रद्धालुओं की मौत हो गई है और इस भगदड़ में कई लोग घायल हुए हैं. हर बार की तरह इस बार भी कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर स्नान के लिए वहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु इकठ्ठा हुए थे. लेकिन इस घटना ने एक बार फिर मौके पर मौजूद व्यवस्था की पोल खोल कर रख दी है. घटना के तुरंत बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गहरा दुख व्यक्त करते हुए मृतकों के परिजनों को चार-चार लाख रुपये देने की घोषणा की है साथ ही सरकार ने घायलों के इलाज की व्यवस्था करने का निर्देश भी जिला प्रशासन को दिया है.
बता दें कि, घटना के बाद घटनास्थल पर हमेशा की तरह तमाम अधिकारियों के दौरे शुरू हो गए हैं और जैसा कि लगभग इस तरह कि हर घटना के बाद होता है, इस बार भी मामले की जांच के निर्देश दे दिए गए हैं. इन बातों के इतर सवाल ये उठता है कि जिन परिवारों ने अपनों को खोया उनको इस जांच से आखिर क्या मिलेगा. उन्हें ही क्यों हम सबको, जो इस तरह के धार्मिक कार्यों में सम्मिलित होने जाते हैं, उन्हें इससे क्या फायदा होगा. क्या कभी सरकार इसकी पुष्टि कर पायेगी कि भविष्य में ऐसी घटनाएं नहीं होंगी. इस प्रश्न को हम रिकार्ड्स में खोजें तो परिणाम नकारत्मक ही हैं.
सिमरिया घाट पर हुई भगदड़ को देखकर कहा जा सकता है कि ऐसी घटनाओं के जिम्मेदार हम खुद हैं
इस घटना पर आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव ने ट्वीट के जरिये कहा है कि कार्तिक पूर्णिमा स्नान के दौरान गंगा घाट पर भगदड़ से हुई श्रद्धालुओं की मौत की खबर से दुखी हूं. सरकार को भीड़ प्रबंधन पर ध्यान देना चाहिए था. कह सकते हैं कि तरह कि घटना के बाद कई मौकों पर राजनीति भी होती है जो कि कतई नहीं होनी चाहिए लेकिन जिम्मेदारी तो बनती ही है. ऐसा नहीं है कि किसी धार्मिक पर्व या आस्था से जुड़े कार्यक्रम के आयोजन में हुई बदइंतजामी या लापरवाही कि ये पहली घटना है.
पूर्व में भी 15 अक्टूबर 2016 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी में राजघाट ब्रिज पर एक धार्मिक कार्यक्रम में हिस्सा लेने आये लोगों में मची भगदड़ में 23 लोगों को जान गवानी पड़ी और 60 से ज्यादा घायल हुए. 5 मई 2016 को मध्य प्रदेश के उज्जैन में सिंहस्थ कुम्भ के दौरान 7 श्रद्धालु इसी तरह कि बदइंतजामी का शिकार हुए तो 10 अप्रैल 2016 को केरल के एक मंदिर में आग लगने से 100 से ज्यादा श्रद्धालु मारे गए.
14 जुलाई 2015 को आंध्र प्रदेश के राजामुंदरी में पवित्र डुबकी लगाने के लिए मची भगदड़ में 27 लोग मारे गए तो वहीं 3 अक्टूबर 2014 को बिहार के पटना के गांधी मैदान में रावण जलाने के मौके पर उमड़ी भींड में मची भगदड़ में 32 लोगों कि जान चली गयी. इस तरह की घटनाओं कि एक लम्बी फेहरिश्त है जो देश के हर कोने में घटी है. जिसके लिए पूरी तरह से प्रशासन को दोषी नहीं ठहराया जा सकता ऐसा इसलिए क्योंकि कई बार लोग खुद इसके लिए जिम्मेदार होते हैं.
हाल ही में मुंबई में हुई भगदड़ पर बात करें तो, इसमें दो रेलवे स्टेशनों को जोड़ने वाले एक संकरे फुटओवर ब्रिज पर मची भगदड़ में 23 लोगों की मौत हो गयी थी. इस भगदड़ की वजह अफवाह और अचानक आयी बारिश बताया गया है. लेकिन असल कारण देखें तो मिलता है कि लोगों कि संख्या के हिसाब से उस पुल की क्षमता बहुत कम थी और वहां अक्सर भीड़ होती थी. साथ ही वहां मौजूद हॉकर्स भी समस्या को और गंभीर बना रहे थे. अब सरकार ने वहां सेना से मदद लेकर पुल बनाने की पहल की है जिसको लेकर काफी सवाल उठ रहे हैं कि आखिर सेना को कहां-कहां लगाया जाए.
सरकार की इस पहल ने ना सिर्फ प्रशासन की कमी को उजागर किया है बल्कि ये भी सन्देश दिया है कि वो इस तरह कि घटनाओं से निपटने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती पर इस तरह की घटनाओं से हमें तभी निजात मिल सकेगी जब जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कड़ी करवाई हो और पहले से व्यवस्था दुरुस्त की जाये ना कि घटना के बाद.
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