...तो हम सब के 'प्यारे' बेटे कुंआरे रह जाएंगे
हरियाणा का एक गांव है - मुजादपुर. यहां प्रति 1000 लड़कों पर 273 लड़कियां हैं. ऐसे में 'बेटी बटाओ, बेटी पढ़ाओ' अभियान या 'सेल्फी विद डाउटर' सब धरे के धरे रह जाएंगे. सरकार को मत कोसिए, अपने गिरेबां में झांकें...
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ये दुनिया क्या है? किसने की इसकी सृष्टि? ईश्वर ने, अल्लाह ने या गॉड ने? मतभेद हो सकते हैं. ज्यादा फंस गए तो फसाद भी हो सकता है. हालांकि, इन अधूरे-अनदेखे सच को नकार कर परम सत्य को मान लें तो ज्ञानी हैं - मां से सृष्टि है, मां से ही दुनिया है. सरकार तो जोर लगा रही है, आप भी लगाएं. आज की हमारी-आपकी बेटी कल की मां है, सृष्टि है, इसे बचाएं. कहीं ऐसा न हो कि हिसार के दो गांवों की तरह मजाक बनकर रह जाएं.
हरियाणा के हिसार जिले में दो गांव हैं - मुजादपुर और बालक. दोनों खबरों में हैं लेकिन गलत कारणों से. मुजादपुर में प्रति 1000 लड़कों पर 273 लड़कियां हैं जबकि बालक गांव में प्रति 1000 लड़कों पर 385 लड़कियां. सेक्स रेश्यो के हिसाब से हरियाणा वैसे भी देश में सबसे पिछड़ा (874 लड़कियां : 1000 लड़के) हुआ है. शायद यही वजह रही होगी कि पीएम मोदी ने 'बेटी बटाओ, बेटी पढ़ाओ' अभियान की शुरुआत हरियाणा के पानीपत से की. मुजादपुर और बालक गांव इस अभियान की खिल्ली उड़ा रहे हैं.
एक दूसरी खबर भी है - उत्तर प्रदेश के आगरा से. दो बेटियों की मां को जिंदा जला दिया गया. कारण - वह बेटे नहीं पैदा कर पा रही थी.
हरियाणा और उत्तर प्रदेश - दोनों अलग-अलग समाज हैं. एक विज्ञान को अपने फायदे के लिए यूज (भ्रूण परीक्षण और फिर गर्भपात करवाना) कर रहा है तो दूसरा विज्ञान की नई परिभाषा (महिला बेटे नहीं पैदा कर पा रही है) ही लिख रहा है. लेकिन एक चीज दोनों ही समाज में कॉमन है - मोह, पुत्र-मोह.
समाज के नजरिये और सोच में व्यापक बदलाव की जरूरत है. यह हो सकता है, सरकार दम लगा रही है. हम सबको भी आगे आना होगा. चीजें सीखनी होंगी, सोच बदलनी होगी. दूर मत जाइए, हरियाणा के बीबीपुर गांव के सरपंच सुनील जगलान को ही देखिए. अपनी बेटी से प्यार करते हैं. इतना कि पीएम मोदी ने भी 'मन की बात' में उनका जिक्र कर डाला. दरअसल जगलान ने ही 'बेटी बचाओ, सेल्फी बनाओ' कैंपेन की शुरुआत की थी, जो बड़े स्तर पर 'सेल्फी विद डाउटर' के नाम से मशहूर हुआ.
सेक्स रेश्यो के मुद्दे पर सरकार को हम जागरूकता, शिक्षा, कड़े कानून की कमी के लिए कोस सकते हैं. पांच साल के बाद उसे कुर्सी से धकेल सकते हैं. लेकिन कोई अपनी बेटी से प्यार करे या नहीं, उसे जीवन देखने दे या नहीं, बेटे के समान हक दे या नहीं, इसके लिए सरकार की तरफ अपनी शुतुरमुर्गी गर्दन न उठाएं. खुद अपने गिरेबां में झांकें. कहीं ऐसा न हो कि मुजादपुर और बालक गांव की जगह कल हमारे-आपके गांव की खबर आए... कहीं ऐसा न हो कि हम सबके 'प्यारे' बेटे कुंआरे रह जाएं...
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