ड्रेस का मतलब लड़की ही क्यों और कब तक ?
रणवीर सिंह के अजीब लिबास पर किसी भी तरह का हल्ला नहीं मचता और दो ही दिन में लोग उसे भूल भी जाते हैं. लेकिन करीना कपूर के सलवार कमीज के कलर कॉम्बीनेशन पर भी ट्वीटर टूट पड़ता है.
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गूगल में ड्रेस टाइप करें तो लड़कियों की फोटो का अंबार लग जाएगा. ड्रेस मतलब लड़की. यहीं से भेदभाव की शुरुआत होती है. उदाहरण के लिए रणवीर सिंह के अजीब लिबास पर किसी भी तरह का हल्ला नहीं मचता और दो ही दिन में लोग उसे भूल भी जाते हैं. लेकिन करीना कपूर के सलवार कमीज के कलर कॉम्बीनेशन पर भी ट्विटर टूट पड़ता है. यहां तक कि हमारे यहां पर 'संस्कारी' परिधान माने जाने वाले सलवार कमीज और साड़ी को लेकर भी बवाल मच जाता है. विद्या बालन के सूट पहनने पर भी लोगों ने आंखें तरेर ली थीं. ऐसा क्यों और कब तक?
फैशन हर कोई करना चाहता है. और फैशन का सिंबल अगर कोई है तो वो हैं सेलिब्रिटी. सेलिब्रिटी और फैशन एक ही सिक्के के दो पहलू जैसे हैं. फैशन के बाजार में सेलिब्रिटी को मानक के रुप में पेश किया जाता है. युवा भी इन्हें ही फॉलो करते हैं. चाहे वो हमारे पीएम नरेंद्र मोदी हों या बॉलीवुड के हॉट-शॉट्. जबकि हमें पता होता है कि हम इन स्टार्स के फैशन स्टेटमेंट को पाना तो दूर की बात छू भी नहीं सकते. लेकिन फिर भी इनके स्टाइल स्टेटमेंट को जानना हमारे लिए हमेशा से ही उत्सुकता और कौतुहल का विषय रहता है.
'संस्कारी' कपड़े भी स्टाइल में पहनें!
चाहे बात ऑस्कर की हो, कान्स की या फिर भारत में ही किसी समारोह की. हर जगह, हर बार जिसके पहनावे को लेकर बात होती है वो हैं हिरोइनें. किस हिरोइन ने क्या कपड़ा पहना, कैसी लग रही थी. ड्रेस किस डिजायनर की थी और उसे वो कैसे कैरी कर रही थी. ये लिस्ट खत्म ही नहीं होती. वहीं हीरो या कोई भी पुरुष क्या पहनता है इसके बारे में शायद ही कभी बात होती है.
हिरोइनों के टैलेंट की जगह उनके पहनावे को मापा जाता है. वो किसी फिल्म के बारे में क्या सोचती हैं इससे फर्क नहीं पड़ता. पर उन्होंने किसी डिजाइनर के कपड़े पहन रखे हैं और कौन सा परफ्यूम लगा रखा है. सैंडल उनके कपड़े से मैच कर रही है या नहीं इस पर भी पैनी नजर लगाकर रखते हैं. अभी हाल ही में हुए ऑस्कर समारोह में प्रियंका चोपड़ा अपनी ड्रेस को लेकर सुर्खियों में रहीं तो वहीं देव पटेल की चर्चा सिर्फ इसलिए हुई क्योंकि वो अपनी मां के साथ समारोह में शामिल हुए थे.
कुछ भी का तो ऑप्शन ही नहीं हैइसी तरह कभी ऐश्वर्या राय तो कभी सोनम कपूर को उनके कपड़ों के लिए ही अंतरराष्ट्रीय समारोहों में ट्रोल किया गया. लेकिन उन्हीं समारोहों में उसी साल कितने भारतीय पुरुष अभिनेताओं ने भाग लिया इसका शायद ही किसी को पता होगा, ना ही किसी ने ये जानने में कोई दिलचस्पी ली होगी. हिरोइनों के कपड़ों में अगर सिलवट तक दिख जाए तो वो गुनाह बन जाता है. लेकिन हीरो अगर पायजामा भी पहनकर निकले तो बात नहीं होती.
कपड़े ही नहीं लिपस्टिक भी मायने रखते हैं
क्या किसी को ये याद है कि 2009 में ऑस्कर जीतने वाली भारतीय जोड़ी गुलजार और ए आर रहमान ने समारोह में क्या कपड़े पहने थे? कपड़े रहने दीजिए ये दोनों वहां गए भी थे या नहीं ये भी अधिकांश लोगों को नहीं पता होगा. पर वहीं ऐश्वर्या राय ने कान्स समारोह में बैंगनी रंग की लिपस्टिक लगाकर फैशन का कौन सा रुल तोड़ा या सेट किया इसपर लोग पूरी थीसिस बयान कर देंगे. सोनम कपूर कौन से कपड़े में 'माल' लग रही थी और किस लिबास में नहीं जंची ये सभी को पता होगा.
निशाने पर हमेशा आप ही रहेंगीकई लोग ये कहेंगे कि खुबसूरती की तारीफ करना या उस पर नजर रखना कोई बुराई तो नहीं है! लेकिन मेरा ये सवाल है कि खुबसूरती का ये पैमाना सिर्फ महिलाओं तक ही सीमित क्यों हो? लिंग भेद का ये एक सधा हुआ और तारीफ की चाशनी में लपेटा हुआ तरीका है. ठीक वैसे ही जैसे हिंदी व्याकरण में यमक अलंकार के अनुसार कनक शब्द के ही दो अर्थ बनते हैं. एक सोना और दूसरा धतूरा. पुरुष जो भी पहनें वो उनका अधिकार है. वो स्वतंत्र हैं अपना रहन-सहन से लेकर पहनावा तक चुनने में. लेकिन लड़कियों को कैसे बोलना चाहिए से लेकर क्या खाना चाहिए और क्या पहना चाहिए तक लड़की खुद नहीं तय कर सकती. लड़की के अलावा पूरी दुनिया इस बात का निर्णय करती है कि किसी लड़की को सांस भी किस स्पीड से लेनी चाहिए, कब लेनी चाहिए और तरीका क्या होना चाहिए!
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