आदत डाल लीजिये, स्कूल में अब बच्चों का भविष्य खून के लाल रंग से लिखा जाने वाला है
हरियाणा में छात्र द्वारा प्रिंसिपल को गोली मारे जाने के बाद ये बात साफ है कि जब शिक्षा का बाजारीकरण हो गया हो और शिक्षा व्यापार बन गयी हो तो भविष्य में स्कूलों में सभी इबारतें खून के लाल रंग से ही लिखी जाने वाली हैं
-
Total Shares
इधर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में कक्षा 6 की छात्रा द्वारा महज छुट्टी के लिए एक फर्स्ट ग्रेडर को चाकू मारने का मामला अभी थमा नहीं है. जगह-जगह चर्चा का दौर जारी है. चैनलों पर शिक्षाविदों के पैनल बैठे हैं और बच्चों में पनप चुकी हिंसक भावना के लिए परवरिश या पेरेंटिंग को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. उधर हरियाणा में जो हुआ उसने दोबारा मौजदा शिक्षा प्रणाली को कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया है. हरियाणा में घटित घटना ने साफ बता दिया है कि, जब शिक्षा का उद्देश्य पैसा कमाना हो तो इस व्यापार में आगे की सभी इबारतें लहू के लाल रंग से ही लिखी जाएंगी.
जी हां बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप. खबर है कि हरियाणा के एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ने वाला 12 वीं का छात्र अपने को स्कूल से निष्काषित किये जाने पर इतना आहत था कि उसने पेरेंट्स टीचर मीटिंग के दौरान अपनी प्रिंसिपल की गोली मारकर हत्या कर दी. ये दिल दहला देने वाला मामला, हरियाणा के यमुनानगर में एक निजी स्कूल परिसर के अंदर से सामने आया है. बताया जा रहा है कि शनिवार को स्कूल में पैरेंट्स मीटिंग थी. आरोपी छात्र शिवांश पैरेंट्स मीटिंग में अपने पिता की रिवॉल्वर लेकर पहुंचा और उसने प्रिंसिपल ऋतु छाबड़ा पर अपने पिता की रिवॉल्वर से ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी. घायल प्रिंसिपल को तत्काल प्रभाव में अस्पताल पहुंचाया गया जहां उनकी मौत हो गयी. पुलिस के अनुसार आरोपी छात्र शिवांश को गिरफ्तार कर लिया गया है.
हरियाणा में छात्र द्वारा प्रिंसिपल को गोली मारना अपने आप में बहुत कुछ कह देता है
चाहे रेयान इंटरनेशनल स्कूल में कक्षा 11 के छात्र द्वारा की गयी 7 वर्षीय छात्र की हत्या हो, चाहे लखनऊ के ब्राइटलैंड स्कूल में छात्रा द्वारा, छात्र को चाकू मारने का मामला हो या फिर ये ताजातरीन घटना. आज हम एक ऐसी जगह पर खड़े हैं जहां रहकर हमें इन घटनाओं को देखना होगा. इनके पैटर्न को समझना होगा. साथ ही हमें उन वजहों पर भी बात करनी होगी जिन वजहों के चलते लगातार ऐसे मामले प्रकाश में आ रहे हैं जो आज हमारे सामने एक गंभीर चिंता का विषय बने हुए हैं.
इन सभी मामलों में गौर करें तो पहली नजर में जिस जवाब से पल्ला झाड़ा जाएगा वो ये कि इन बच्चों की परवरिश सही नहीं हो रही है. या हो सकता है कोई ये कहे कि आजकल बच्चे इसलिए ऐसे हो रहे हैं क्योंकि मां बाप समय के आभाव में और अपनी व्यस्त जीवनशैली के कारण अपने बच्चे को बिल्कुल भी टाइम नहीं दे पा रहे हैं.
बहाने और फसाने कुछ भी हो सकते हैं. मगर इन जवाबों में सबसे दिलचस्प ये बात है कि, यहां हम मां बाप को तो दोषी मान फैसला सुना चुके हैं मगर उस ओर हमारा ध्यान ही नहीं गया जो इस समस्या की जड़ या ये कहें कि इसका मूल है. हमारा इशारा स्कूलों की तरफ है. शायद ये बात आपको हैरान कर दे और परेशानी में डाल दे मगर ये सच है कि इन घटनाओं में अगर दोष मां बाप पर मढ़ा जा रहा है तो हमें स्कूलों को भी संज्ञान में लेना होगा.
किसी समय में शिक्षा का मंदिर काहे जाने वाले स्कूलों की कार्यप्रणाली क्या है ये बात किसी से छुपी नहीं है. शायद हमारे और आपके लिए ये कहना भी गलत न हो कि आज स्कूल भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा अड्डा हैं. एडमिशन के नाम पर डोनेशन के जरिये धन उगाही कोई नई बात नहीं है. ये भी ख़बरें पुरानी हैं जब हम स्कूलों द्वारा ये फरमान सुनते आए हैं कि पेरेंट्स को अब किताब कॉपियां, ड्रेस, खाना सब स्कूलों से ही लेना होगा.
जब हम स्कूलों को विद्या का आलय न मानकर एक फाइव स्टार होटल की तरह देख रहे हैं तो फिर रंज किस बात का? जब सभी स्कूल एक ही ढर्रे पर चल रहे हैं, सबके अपने बिजनेस प्लान हैं, मार्केटिंग स्ट्रेटर्जी हैं. सब अपने को एक दूसरे से बेहतर दिखाना चाहते हैं तो फिर वहां से इस तरह की ख़बरें आना लाजमी है.
दोषी मां बाप नहीं ये स्कूल हैं. हां वो स्कूल जो बच्चे के बचपन को छीन रहे हैं. वो स्कूल जो किसी मासूम को एक जीते जागते रोबोट में तब्दील कर रहे हैं. वो स्कूल जहां बच्चे की पीठ पर बस्ते के बोझ से टार्गेट सेट किये जा रहे हैं. वो स्कूल जहां आगे निकलने और अपने को दूसरे से बेहतर दिखाने की होड़ में नीचता की सारी हदें पार की जा रही हैं.
बहरहाल हम ये कहते हुए अपनी बात खत्म करेंगे कि शिक्षा के नाम पर बच्चों के साथ जो हो रहा है और जिसके परिणाम हमारे सामने आ रहे हैं वो दुखद है. मगर ये भी कहना गलत नहीं है कि अभी तो ये बस शुरुआत है. आगे हम ऐसी और इनसे मिलती जुलती कई और घटनाओं के साक्षी बनेंगे. ऐसा इसलिए क्योंकि जहां बाजार होता है वहां आगे निकलने की होड़ होती है. जब आगे निकलने की होड़ होगी तब जाहिर है कि आने वाले वक़्त में भविष्य की इबारतें खून के लाल रंग से लिखी जाएंगी और हम दूर खड़े बेबस होकर इसे यूं ही देखते और शर्मसार होते रहेंगे.
ये भी पढ़ें -
छुट्टी न लेना सामाजिक अपराध है
आखिर क्यों हम अपने बच्चों को नहीं बचा पा रहे?
नया गेम : इसमें सुसाइड नहीं, दूसरों की जान लेना सीख रहे हैं बच्चे !
आपकी राय