पीएचडी थीसिस से ज्यादा छात्रा के कपड़े की चर्चा हो, तो समझो समस्या बड़ी है
अमेरिकी यूनिवर्सिटी में एक महिला प्रोफेसर ने एक छात्रा को शॉर्ट्स पहनने पर टोक दिया. गुस्से में छात्रा ने टीचर्स और साथी छात्रों के सामने अपने सारे कपड़े उतार दिए सिवाए अंतर्वस्त्रों के, और पूरी थीसिस सिर्फ अंडरगार्मेंट्स में प्रेजेंट की.
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आपने स्कूल और कॉलेजों में लड़कियों के पहनावे को लेकर कई बार बहस होते देखी होगी, लेकिन ऐसा कभी नहीं देखा होगा जो अमेरिका की इस यूनिवर्सिटी में हुआ.
न्यूयॉर्क की कॉरनेल यूनिवर्सिटी में एक महिला प्रोफेसर ने थीसिस प्रेजेंट करती हुई एक छात्रा को शॉर्ट्स पहनने पर टोक दिया. छात्रा ने प्रोफेसर की दमनकारी सोच और भेदभाव के खिलाफ ऐसा कदम उठाया जो कोई सोच नहीं सकता. छात्रा ने टीचर्स और साथी छात्रों के सामने अपने सारे कपड़े उतार दिए सिवाए अंतर्वस्त्रों के. और पूरी थीसिस सिर्फ अंडरगार्मेंट्स में प्रेजेंट की.
छात्रा लेतीतिया चाई ने इस पूरी घटना के बारे में फेसबुक पर बताया. उनका कहना था कि - जैसे ही वो अपनी थीसिस प्रेजेंट करने उठीं, प्रोफेसर ने उनसे कहा- 'क्या तुम सच में यही पहनोगी? तुम्हारे शॉर्ट्स बहुत छोटे हैं'. चाई बताती हैं कि "मैंने लंबी आस्तीन नीली बटन वाली शर्ट और डेनिम के शॉर्ट्स पहने थे.
प्रोफेसर ने पूरी क्लास के सामने मुझपर आरोप लगाया कि मैं लड़कों का ध्यान अपनी प्रेजेंटेशन से हटाकर अपने शरीर पर केंद्रित करना चाहती हूं'. क्लास में बैठा एक पुरुष छात्र तो प्रोफेसर की इस बात से सहमत भी था. और इसके बाद प्रोफेसर क्लास से निकल गईं. इस पूरे वाकिए के बाद चाई अंदर तक हिल गई, उसे बहुत गुस्सा आया और उसने ये कदम उठाया.
बड़े आत्मविश्वास के साथ चाई खड़ी रहीं और अपनी थीसिस पूरी की
बाद में प्रोफेसर ने उसे सफाई देते हुए कहा कि वो उसे एक मां की हैसियत से बोल रही थीं. तब चाई ने कहा कि 'मेरा मां एक फेमनिस्ट, जेंडर और सेक्सुअलिटी स्टडीज़ की प्रोफेसर हैं और उन्हें मेरे कपड़ों से कोई परेशानी नहीं है'
उधर प्रोफेसर का कहना है कि 'मैं अपने छात्रों को ये नहीं बताती कि उन्हें क्या पहनना चाहिए क्या नहीं, और न ही मैं उन्हें ये बताती हूं कि सही पहनावा कैसा होना चाहिए.'
खैर छात्रा और प्रोफेसर के बीच जो हुआ वो दो विचारधाराओं का टकराव था. जब दो अलग विचार टकराते हैं तो नतीजा अक्सर उम्मीद से परे ही होता है. और फासला जब विचारधारा के साथ-साथ पीढ़ी का भी हो तो जो हो जाए सो कम है.
शिक्षा हमारी वैचारिक ताकत और हैसियत को बढ़ाती है. या यूं कहें कि वैचारिक प्रतिबद्धता के लिए शिक्षा टॉनिक की तरह है. ऐसे में छात्रा का ये कदम ये बताता है कि वो अपने कपड़ों से ज्यादा अपनी वैचारिक स्वतंत्रता को तवज्जो देती है, जबकि प्रोफेसर का कथन ये बताता है कि विचारों के साथ अनुभव भी समाज में जीने के लिए जरूरी है.
बहरहाल जो लड़कियां अपने कपड़ों को ज्यादा अहमियत नहीं देतीं उनके लिए अगर ये कहा जाए कि वो लड़कों का ध्यान आकर्षित करने के लिए छोटे कपड़े पहनती हैं तो गुस्सा आना स्वाभाविक है और ऐसों को जवाब देना भी उतना ही जरूरी है. क्योंकि वास्तव में कपड़े वैसे ही पहनने चाहिए जिसमें इंसान सहज महसूस करे, ये किसी भी इंसान का खुद का निर्णय हो कि वो कब क्या पहने.
इस पूरे मामले की एक बात जो सबसे ज्यादा अपील करती है, वो ये कि छात्रा ने जिस बेबाकी से कपड़े उतारे और अपनी थीसिस पर फोकस किया, उसका एक पर्सेंट तनाव या अफसोस भी उसके चेहरे पर नहीं दिखाई दे रहा था. और शायद यही उसकी जीत थी.
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