सब्सिडी नहीं है, गरीबों की मुश्किलों का हल
केंद्र की मोदी सरकार ने भी आम आदमी को राहत देने के लिए सब्सिडी का सहारा लिया है लेकिन सरकार का ये कदम गरीबों के साथ नहीं बल्कि गरीबों के खिलाफ है.
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केंद्र की मोदी सरकार ने भी आम आदमी को राहत देने के लिए सब्सिडी का सहारा लिया है लेकिन सरकार का ये कदम गरीबों के साथ नहीं बल्कि गरीबों के खिलाफ है. जानिए कैसे?
ट्रेन का किराया
सरकार का खर्च: यात्री किराए पर 51 हजार करोड़ की सब्सिडी
हकीकत: 80 फीसदी गरीब परिवारों में से 28.1% ही ट्रेन से सफर करते हैं.
एलपीजी सिलेंडर
सरकार का खर्च: एलपीजी पर 23746 करोड़ की सब्सिडी
हकीकत: गरीब और निचले 50 फीसदी परिवारों में से सिर्फ 25% परिवार ही एलपीजी का इस्तेमाल करते हैं.
सब्सिडी वाला कैरोसिन
सरकार का खर्च: पीडीएस के जरिए 20415 करोड़ की सब्सिडी
हकीकत: व्यवस्था की खामियों के कारण 41% आवंटन व्यर्थ हो जाता हैं और शेष 46% ही गरीब लोगों तक पहुंच पाता है.
सस्ती बिजली
सरकार का खर्च: बाजार मूल्य से कम दाम के लिए सरकार ने सब्सिडी दी 32300 करोड़ रुपए
हकीकत: सिर्फ 67.2% परिवार ही बिजली से जुड़ पाए हैं.
सस्ता पानी
सरकार का खर्च: 14208 करोड़ रुपए, बतौर सब्सिडी
हकीकत: ज़्यादातर सब्सिडी निजी नलों के लिए आवंटित की गई है जबकि 60% से ज़्यादा गरीब परिवार सार्वजनिक नलों से पानी लेते हैं.
सस्ता अनाज
सरकार का खर्च: पीडीएस के जरिए 12,900 करोड़ की सब्सिडी
हकीकत: 15% चावल और 54% गेहूं रख-रखाव की खामियों के चलते नष्ट हो जाता है. गरीबों की झोली में सिर्फ 53% चावल और 56% गेहूं ही आता है.
चीनी या शक्कर
सरकारी का खर्च: पीडीएस सिस्टम के जरिए 33000 करोड़
हकीकत: 48% शक्कर पीडीएस में खामियों के चलते नष्ट हो जाती है. गरीब परिवारों के पास सिर्फ 44% पहुंच पाती है.
बैक अकाउंट में सीधे कैश का जाना शायद गरीब परिवारों की स्थिति में कुछ सुधार करे. लेकिन उनको गरीबी से निकालने के लिए सब्सिडी नहीं नौकरी और अवसरों की ज़रुरत है
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