सनी लियोनी के पति ने गोद ली हुई बेटी निशा के बारे में जो लिखा वो सभी को पढ़ना चाहिए!
ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे के पेज पर सनी लियोनी के पति डैनियल वीबर ने अपने मन की बात कही. उन्होंने बताया कि कैसे निशा कौर वीबर यानी उनकी गोद ली हुई बेटी ने उनकी जिंदगी बदल दी और क्यों आखिर वो उसे सबसे बेहतर मानते हैं.
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सनी लियोनी और उनके पति डैनियल वीबर को हममें से कई लोग सही नहीं समझते हैं. लोगों को लगता है कि सनी और उनके पति अश्लील हैं और एक ऐसी इंडस्ट्री से आते हैं जिसे हम स्वीकार नहीं करते. हम छुपकर सनी के वीडियो देख सकते हैं, लेकिन हम खुलकर उनके और उनके पति द्वारा किए अच्छे कामों की सराहना नहीं कर सकते. बच्चे को गोद लेने से लेकर बच्चों के बीच आइटम नंबर न करने की शर्त, एनजीओ में दान, बच्चों की शिक्षा के लिए पैसे देने से लेकर सनी लियोनी और उनके पति ने न जाने समाज सेवा के कितने ही काम किए हैं जिन्हें हम जानते तो हैं, लेकिन हमारा समाज उसे खुलकर नहीं कहता क्योंकि सनी के बारे में आखिर सही बातें कहां हो सकती हैं.
खैर, ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे के पेज पर सनी लियोनी के पति डैनियल वीबर ने अपने मन की बात कही. उन्होंने बताया कि कैसे निशा कौर वीबर यानी उनकी गोद ली हुई बेटी ने उनकी जिंदगी बदल दी और क्यों आखिर वो उसे सबसे बेहतर मानते हैं.
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मैं हमेशा यही सोच लेकर बड़ा हुआ कि परिवार पहले है. जब मैं सनी से मिला रिश्ते में सीरियसनेस आ गई. मुझे पता था कि मुझे इसके साथ परिवार बनाना है. ये एक ऐसी चीज़ थी जो हम दोनों को चाहिए थी. हमारी जिंदगी काफी बिजी चल रही थी इसलिए हमने सैरेगेसी की मदद लेने की सोची. पर इसी के बीच हम एक अनाथआश्रम में गए और हमने सोचा - 'क्यों न अडॉप्ट कर लिया जाए'. ऐसे कई बच्चे हैं जिन्हें घर की जरूरत है. उन्होंने हमें प्रोसेस के बारे में बताया और हमने सोचा क्यों नहीं हम ये करेंगे. हालांकि, अडॉप्शन प्रोसेस काफी पेचीदा था.
सनी और डैनियन ने लातूर के एक अनाथआलय से निशा को गोद लिया
एक समय तो लगा कि हमें वो नहीं मिलेगी. उस समय हमारा दिल टूट गया था. वो बहुत मुश्किल प्रोसेस था. मानसिक तौर पर भी और पेपरवर्क भी. पर पिछले साल जब मैं लॉस एंजिलिस में सेरोगेसी अपॉइंटमेंट के लिए तैयार हो रहा था. मेरे पास एक ईमेल आया और उसमें लिखा था आपको एक बच्चे से मैच किया गया है. निशा हमारी बेटी बनने वाली थी. हम खुशी से पागल हो गए और हर वो तैयारी करने लगे जो उसे घर लाने के लिए जरूरी थी.
उस समय मैं अपनी बेटी से पहली बार मिला. पर वो पहली नजर का प्यार बिलकुल नहीं था. मैं परेशान था कि कहीं मैं एक बुरा पिता न बनूं, क्या मैं जिम्मेदारी निभा पाऊंगा? क्या वो मेरे साथ जुड़ पाएगी? मैं हमेशा डरा रहता था. इस पूरी प्रक्रिया में एक महीना लगा, लेकिन एक दिन मैंने कमरे का दरवाज़ा खोला और उसने ज़ोर से चिल्लाया 'पापा'. वो मेरे पास आ गई और मेरा पैर पकड़ लिया.
मैंने रोना शुरू कर दिया. उस दिन मेरी बेटी ने मुझे पिता के रूप में पहचान लिया था और एक अनोखा कनेक्शन जुड़ गया था. उसके बाद से हमारे बीच एक अनोखा रिश्ता है. मैं उसके बिना कहीं नहीं जा सकता. यहां तक कि सनी भी कहती है हमेशा कि निशा के लिए हमेशा सिर्फ पापा- पापा ही रहता है. ये मुझे बहुत खुशी देता है.
अशर और नोआह दोनों जुड़वा बेटे भी आखिरकार हमारी जिंदगी में आ गए. अब मुझे लगता है कि मेरा परिवार पूरा है. हर सुबह उठने से लेकर खाना बनाने और रात के बीच उठकर बच्चों को देखने तक मेरी दुनिया इसी के इर्द-गिर्द घूमती है.
और सबसे अजीब बात तो ये है कि मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं अपने अंदर अपने पिता को देख पाऊंगा. आप हमेशा एक अच्छे पिता बनना चाहते हैं. आप कभी ऐसे नहीं बनना चाहते जिनसे कोई संबंध न रहे.
दो महीने पहले मैंने निशा के लिए जूते खरीदे और उसने कहा 'नहीं पापा ये मैच नहीं कर रहे'. ऐसा लगा किसी ने गोली मार दी हो. मैं उससे बहस कैसे कर सकता हूं, मैं बिलकुल एक कूल पिता नहीं हूं. वो मुझसे बहुत काम करवाती है. पर मेरे पिता की तरह मैं सिर्फ एक ही बात अपने बच्चों से कहना चाहता हूं. मैं उन्हें एक अच्छा इंसान बनाना चाहता हूं.
किसी दिन मैं निशा को वापस उसी अनाथआश्रम में लेकर जाऊंगा. लातूर में. मैं उसे वो सहानुभूति और जुड़ाव की भावना देना चाहता हूं. मैं उसे ये बताना चाहता हूं कि जिंदगी कैसे बदल सकती है. और ये जरूरी है कि उन बदलावों को स्वीकार किया जाए. इसके अलावा, मैं खुश हूं कि मेरे पास एक बेहतरीन परिवार है और मैं जो कुछ भी हूं उनकी वजह से हूं सिर्फ उनकी.
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सनी और डैनियल की कहानी ये बताती है कि इंसान का कर्म अच्छा होना चाहिए पेशा चाहे जो भी हो.
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