ट्विटर ट्रेंड के डर से टाटा का तनिष्क एड वापस लेना क्या दिखाता है?
कुछ वक़्त पहले zomato ने मुस्लिम बॉय से delivery ना लेने के पक्ष में कहा था 'खाने का कोई धर्म नहीं होता'. टाटा को ज़ोमटो से सीख लेते हुए सोचना चाहिये था कि विज्ञापन वापस लेने से भारत की उस सर्व धर्म समभाव छवि का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कितना नुक़सान होगा, जिसकी वाहवाही lockdown से पहले अहमदाबाद में ट्रंप (Donald Trump) ने की और पूरा देश झूम गया था.
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टाटा (TATA) जैसी अंतरर्राष्ट्रीय स्तर की कंपनी का ट्वीटर ट्रेंड के डर से विज्ञापन वापस लेना क्या दर्शाता है? जवाब है फेस्टिव सीज़न में रिस्क नहीं लेना चाहिये. या बहुसंख्यक आक्रामक हुआ है. मैं पहले वाले ऑप्शन के साथ जाऊंगी. दूसरा इसलिये नहीं क्योंकि हिन्दू-मुस्लिम को लेकर ये कोई पहला बवाली ऐड नहीं है. (सर्फ़ एक्सेल याद है ना!) जब आपका स्वरचित 'लव जिहाद' (Love Jihad ) धड़ बगैर सर के सूटकेस में पैक हिंदू लड़की के लिए हाहाकार करने लगता है ठीक तभी मुझे निदा फ़ाज़ली, शाहरुख खान, अज़हरूद्दीन की हिंदू पत्नियां याद आती हैं. दूसरे खेमे की तरफ से फराह खान, सुजैन खान, शबाना (नेहा) के हिंदू पति भी याद आते हैं. मायानगरी का कोई धर्म नहीं होता कह कर इसलिये नहीं खारिज किया जाएगा क्योंकि आमिर, शाहरुख खान को सहिष्णुता के मुद्दे पर पाकिस्तान जाने की धमकी दी जा चुकी है.
हिंदू मुस्लिम भाईचारा दिखाकर ब्रांडिंग करना तनिष्क को महंगा पद गया है
बॉलीवुड ठीक ना लग रहा हो तो सुब्रमण्यम स्वामी, एल के अडवाणी, अशोक सिंघल, शहनवाज़ हुसैन, मुख्तार अब्बास नकवी का ही उदाहरण ले लीजिये.
लेकिन पहले लव जिहाद की परिभाषा तो तय कीजिये. अंतर्धार्मिक विवाह या हिन्दू मुस्लिम विवाह? अगर इंटररिलिजन इश्यू है तो किसी भी दो धर्म के बीच विवाह को मुद्दा होना चाहिये. और यह सुनिश्चित होना चाहिये कि दो अलग धर्म के लोग विवाह के बाद भी अपने-अपने धर्म का पालन करेंगे. अगर मुद्दा सिर्फ हिन्दू-मुस्लिम (खासकार मुस्लिम लड़का, हिन्दू लड़की) है तो ट्विटर पर हैशटैग चलाकर एनर्जी ना ज़ाया कीजिये. रातों रात क़ानून बनाने वाले गृहमंत्री से कहिये कि हिन्दू मुस्लिम विवाह रोकने के लिये क़ानून ले आएं. फिर जो करेगा शादी उसकी होगी बरबादी.
प्रैक्टिकली मुश्किल लग रहा. तो क्या? मुश्किल तो राम मंदिर भी था. 370, नोटबंदी भी. जबसे मोदी है, सब मुमकिन है.
हां, हैशटैग खेलने में ही मज़ा आ रहा हो तो बात अलग है.
कुछ वक़्त पहले zomato ने मुस्लिम बॉय से delivery ना लेने के पक्ष में कहा था 'खाने का कोई धर्म नहीं होता'. टाटा को ज़ोमटो से सीख लेते हुए सोचना चाहिये था कि विज्ञापन वापस लेने से भारत की उस सर्व धर्म समभाव छवि का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कितना नुक़सान होगा, जिसकी वाहवाही लॉकडाउन से पहले अहमदाबाद में ट्रंप ने की और पूरा देश झूम गया था.
तनिष्क़ भैया, त्योहारी सीज़न में आपने रिस्क नहीं लिया. अच्छा किया. देश की समरसता को ज़ोमेटौ और असल मुस्लिम परिवार की खुशहाल हिन्दू बहुएं (ठीक इसके उलट भी) बचाती रहेंगी.
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