बच्चों की चिंताओं को हल्के में लेंगे तो पछताएंगे
अगर आपका टीनेज बच्चा भी चिड़चिड़ा है, ढंग से खाता नहीं, उसे नींद नहीं आती या फिर अकेला रहना पसंद करता है तो संभल जाएं, हो सकता है वो तनाव का शिकार हो.
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हमारे समाज में एक बात बड़ी खास है कि यहां हर कोई बच्चों को बच्चा ही समझता है. बच्चे अगर भूल से ये कह भी दें कि उन्हें किसी बात का तनाव है या वो टेंशन में हैं, तो बजाए उसकी बात को समझने के माता-पिता पलटकर कहते हैं 'हां, जरा से हो नहीं, तुम्हें अभी से तनाव होने लगा है'. आगे बच्चा कुछ नहीं बोल पाता. अपने माता-पिता से मदद की उम्मीद का मौका वो यहीं खो देते हैं.
लोगों को ये क्यों लगता है कि तनाव लेने के लिए शादीशुदा होना या बच्चे वाला होना या बूढ़ा होना जरूरी है. शायद आपको यकीन न हो लेकिन आजकल वयस्कों से ज्यादा टेंशन टीनेजर्स को होती है.
तनाव इतना कि बच्चे अब खुद को ही नुक्सान पहंचा रहे हैं
पहले बात ब्रिटेन की. हाल ही में एक स्टडी से पता चलता है कि 14 साल की बच्चियों में 4 में से 1 तनाव की वजह से खुद को चोट पहुंचा रही है. चिल्ड्रन सोसाइटी ने शोध में पाया कि इस उम्र के 76 हजार लड़कियों और 33 हजार लड़कों ने एक साल में खुद को किसी न किसी तरह से चोट पहुंचाई है. चोट यानी- अपनी त्वचा को काटना, जलाना, खुद को पीटना, या किसी तरह का जहरीला पदार्थ खाना. इसमें शराब और ड्रग्स का गलत इस्तेमाल के साथ-साथ बहुत ज्यादा एक्सरसाइज़ करना और ईटिंग डिसऑर्डर तक शामिल हैं.
बच्चों ने जो वजह बताई वो ध्यान देने वाली है-
बच्चों का कहना था कि उन्हें नहीं लगता कि वो अच्छे दिखते हैं, या अच्छे हैं और खुद को चोट पहुंचाकर उन्हें बेहतर महसूस होता है.
सोशल मीडिया पर जो बच्चे लगातार खुद की तुलना दूसरों से करते हैं उनके मानसिक स्वास्थ्य पर ये तेजी से असर कर रहा है. इस बात की चिंता सबसे ज्यादा है कि वो कैसे लग रहे हैं, खासकर लड़कियों में. लेकिन इस रिपोर्ट में और भी कई बातें सामने आई हैं. जैसे उनकी सेक्सुएलिटी और जेंडर स्टीरोटाइप्स.
भारत में किए गए एक शोध से ये पता चलता है कि किशोरों में तनाव की वजहें बहुत सी हैं. बेकार की तुलना किया जाना, बाल शोषण, साथियों का दबाव, प्रेम संबंध और खराब समय प्रबंधन किशोरों में तनाव कुछ मुख्य कारण हैं.
इस रिपोर्ट के अनुसार 25% किशोरों को स्कूल के दौरान 'extreme stress' यानी बेहद तनाव का अनुभव होता है. यूं तो हर बढ़ते बच्चे में चिंता और घबराहट होती है है लेकिन यही तनाव का कारण बनती हैं. कुछ बच्चे दूसरों से ज्यादा प्रभावित होते हैं. माता-पिता, शिक्षकों और अभिभावकों की ये साझी जिम्मेदारी है कि वो बच्चों के तनाव को समझें और बच्चों को तनाव से लड़ने में मदद करें.
तनाव में अगर बच्चे अक्सर ऐसा करते हैं
अगर बच्चों के तनाव को अनदेखा किया जाता है तो बच्चे खुद को चोट पहुंचाने लगते हैं. इसपर काम न किया गया तो स्थिति और भी गंभीर हो जाती है. एक ऑनलाइन सर्वे की मानिए तो 65% युवाओं (22-25 साल) में डिप्रेशन के शुरुआती लक्षण पाए गए हैं. आप अंदाजा लगा सकते हैं कि तनाव कितनी कम उम्र में लोगों को अपना शिकार बना रहा है.
कैसे पहचाने कि बच्चा तनाव में है-
- अगर बच्चा चिंतित हो या उसे घबराहट हो रही हो.
- किसी भी चीज का सामना करने में खुद को असमर्थ पा रहा हो.
- खान-पान अव्यवस्थित हो. कुछ खाने का मन नहीं करता हो.
- सही समय पर न सोना. रात में देर तक जागना.
- किसी काम में ध्यान न लगा पा रहा हो.
- चिड़चिड़ा होना, या गु्स्सा ज्यादा करता हो.
- कम आत्म विश्वास का होना.
- आलोचना के प्रति बहुत संवेदनशील होना.
- सामाजिक न होना, अकेले रहना पसंद करता हो.
- थकान, नींद न आना और सिरदर्द रहता हो.
- जीवन के प्रति नकारात्मक रवैया हो.
- दूसरों पर भरोसा न करना, उनपर भी नहीं जो उसके अपने हों.
- रिस्क लेने से डरना.
- ये सोचना कि उसे कोई प्यार नहीं करता, कोई नहीं चाहता.
- अपने फेसले खुद न लेना.
खुद को चोट पहुंचाने से बच्चों को अच्छा महसूस होता है
कैसे तनाव कम किया जा सकता है-
- नींद किसी भी इंसान के मूड पर प्रभाव डालती है. सोने से चिड़चिड़ाहट, दुख और चिंता कम होती है, इसलिए बच्चे को पर्याप्त सोने दें.
- तनाव कम करने के लिए बच्चे को कोई खेल खेलने या व्यायाम करने के लिए प्रेरित करें. वो काम जिसमें शारीर थकान महसूस करे. कुछ नहीं तो टहलना ही काफी कारगर होता है.
- माता पिता का साथ बहुत जरूरी है, परेशानी में बच्चे अपने माता-पिता को साथ पाते हैं तो वो काफी संतुष्ट रहते हैं. माता-पिता बच्चों के दोस्त बनें और उन्हें अपने दिल की बात बताने के लिए प्रेरित करें.
- बच्चे तनाव में होते हैं तो जंक फूड खाने लगते हैं. उनके खाने को रुचिकर बनाएं. अच्छा खानपान भी तनाव कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
- उन्हें वो करने दें जो वो करना चाहते हैं. जैसे संगीत सुनना, फिल्म देखना, कोई खेल खेलना. मन का करके तनाव काफी हद तक कम होता है. माहौल को खुशनुमा बनाएं, हंसी मजाक होगा तो तनाव के लिए जगह कम पड़ेगी.
- बच्चों को उनकी कमियां गिनाने के बजाए उनकी ताकत बताएं. उन्हें ये न कहें कि तुम इतना भी नहीं कर सकते, बल्कि वो क्या कर सकते हैं ये बताएं.
बच्चे चाहे अपने देश के हों या विदेशी, तनाव के सबके अलग अलग कारण होते हैं. कोई सिर्फ इसलिए परेशान है कि वो अच्छा नहीं दिखता, तो किसी को इस बात का तनाव है कि माता-पिता उसे कम और दूसरों के बेहतर कहते हैं. वजह चाहे कोई भी हो कितनी भी छोटी हो, लेकिन सच ये है कि आज बच्चे तनाव में हैं. इसलिए कुछ और करने से पहले माता-पिता उनको इस समस्या से बाहर निकालें. नहीं तो आगे चलकर ये छोटी-छोटी चिंताएं कब डिप्रेशन का रूप ले लेंगी आपको पता ही नहीं चलेगा. अपना बचपन याद करें, और फिर अपने बच्चों का बचपन देखें, उन्हें निश्चिंत और खुशहाल बचपन देना हमारी ही जिम्मेदारी है.
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