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Updated: 08 मई, 2019 01:46 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
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10 अप्रेल को तेलंगाना बोर्ड के इंटरमीडिएट का रिजल्ट आया था. रिजल्ट देखकर कुछ बच्चे खुश हुए तो खुश निराश. लेकिन कई बच्चों के लिए ये रिजल्ट उनकी मौत का सबब बनकर आया. अपने रिजल्ट से निराश 22 बच्चों ने आत्महत्या कर ली. लेकिन ये जानकर दिल और भर आया कि बच्चों की असफलता उनकी अपनी गलती की वजह से नहीं बल्कि पेपर जांचने में हुई गड़बड़ी की वजह से थी.

तेलंगाना बोर्ड से करीब 10 लाख छात्रों ने 12वीं की परीक्षा दी थी जिसमें से 3 लाख छात्र फेल हो गए. और इनमें से कुछ ये बर्दाश्त नहीं कर पाए और अपनी जान दे दी. ये अपने आप में हैरान और परेशान कर देने वाली बात है कि पेपर जांचने में हुई गड़बड़ी की सजा कुछ मासूम बच्चों को मिली. जिसमें उनकी कोई गलती नहीं थी.

suicideरिजल्ट से निराश तेलंगाना के 22 छात्रों ने मौत को गले लगा लिया

पेपर जांचने में कैसे हुई गड़बड़ी

तेलंगाना बोर्ड ने इस साल परीक्षा के लिए रजिस्‍ट्रेशन से लेकर रिजल्‍ट जारी करने की पूरी जिम्‍मेदारी एक प्राइवेट फर्म Globarena Technologies को दी थी. इस फर्म के सॉफ्टवेयर में तकनीकी खराबी थी. जब रिजल्ट में गड़बड़ी के आरोप लगे तो कंपनी ने सिस्टम में गड़बड़ी की बात को स्वीकार तो किया लेकिन ये भी कहा कि उसे सुधार लिया गया था.

इंडिया टुडे ने कॉपियां जांचने वाले इवैलुएटर से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि- कुछ कॉपियों में कुछ उत्तरों को सही से चेक नहीं किया गया है. वहीं कुछ कॉपियों में सही उत्तरों को 0 नंबर भी दिए गए थे. जिस छात्र को 79 नंबर मिलने चाहिए थे उसे केवल 29 नंबर दिए गए.

छात्रों की आत्महत्या पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने राज्य सरकार से 4 हफ्ते में रिपोर्ट मांगते हुए सवाल किए थे कि- क्यों प्रशासन ने हैदराबाद की निजी कंपनी ग्लोबलरेना टेक्नोलाजी को परीक्षा एनरोलमेंट का ठेका दिया, जबकि पहले इसे किसी सरकारी एजेंसी को ही दिया जाता था? आरोपियों के खिलाफ क्या किया गया और पीड़ित परिवारों की कैसे मदद की गई? 12वीं के नतीजों को देखते हुए राज्‍य सरकार ने परीक्षा में फेल हुए सभी छात्रों की कॉपियों को दोबारा जांचने के आदेश भी दे दिए.

लेकिन बच्चों की मौत पर पूरे राज्य में हाहाकार वाली स्थिति है. होना स्वाभाविक भी है. ये कोई छोटी बात नहीं है, 22 बच्चों ने अपनी जानें गंवाई हैं. छात्रों के माता-पिता, छात्र संगठन और राजनीतिक पार्टियां सभी अपने अपने स्तर पर प्रदर्शन कर रहे हैं. लेकिन विपक्ष हर तरह से सरकार को घेरने में लगा है.

parents protestमाता-पिता अपने अपनों को खोने के बाद प्रदर्शन करने को मजबूर हैं

बोर्ड की ये बातें हैरान करती हैं

मामले को बढ़ता देख तेलंगाना बोर्ड ऑफ इंटरमीडिएट एजुकेशन (TSBIE) ने आत्महत्या करने वाले छात्रों की कॉपियां दोबारा जांचीं और एक रिपोर्ट दी, जो काफी हैरान करने वाली है. रिपोर्ट में बोर्ड का कहना है कि उन्होंने छात्रों की कॉपियों को दोबारा जांचने के लिए विषयों के एक्रसपर्ट्स की एक कमेटी बनाई जिन्होंने आत्महत्या करने वाले छात्रों की कॉपियों को दोबारा जांचा कि कहीं कोई गलती तो नहीं थी. और सभी मामलों में ये पाया गया कि ऐसी कोई बड़ी गलती नहीं हुई थी कि फेल हुए छात्रों के नंबर फेल से पास कर दिए जाएं. बोर्ड का मानना है कि कोई भी छात्र तकनीकि गड़बड़ी की वजह से फेल नहीं हुआ. वो फेल इसलिए हुए क्योंकि कुछ विषयों में उनका प्रदर्शन खराब था.

बोर्ड ने ये भी कहा कि 25 में से 10 बच्चे एक विषय में फेल हुए, 12 एक से ज्यादा विषयों में फेल थे, जबकी तीन छात्र ऐसे भी थे जो फेल ही नहीं हुए थे फिर भी उन्होंने आत्महत्या की. एक छात्र ने तो 85 प्रतिशत नंबर लाने के बावजूद भी आत्महत्या की.

बोर्ड ने छात्रों की आत्महत्याओं पर खेद तो जताया लेकिन स्पष्ट रूप से ये भी कह दिया कि इन आत्महत्याओं की वजह कोई भी तकनीकि गड़बड़ी नहीं है.

studentsबच्चे फेल इसलिए हुए क्योंकि वो कुछ विषयों में कमजोर थे- बोर्ड

तो फिर कौन जिम्मेदार है?

बोर्ड की बातों से साफ पता चल रहा है कि वो इन मौतों की जिम्मेदारी लेने से बच रहा है. और जब बोर्ड ने अपनी गलती न मानने का मन बना ही लिया है तो फिर आप चाहें कितनी ही बार कॉपियों की जांच करा लें, कोई फर्क नहीं पड़ेगा. क्योंकि कमेटी भी इनकी और बच्चों की कॉपियां भी इनके पास हैं. बोर्ड अपने सिर पर इन मौतों का बोझ नहीं लेना चाहता इसलिए ये तर्क भी दे रहा है कि एक बच्चे ने तो 85 प्रतिशत नंबर आने के बावजूद भी आत्महत्या कर ली. ये भी तो हो सकता है न कि वो बच्चा 99 प्रतिशत की उम्मीद करता हो लेकिन इतने कम नंबर लाकर उसे शर्मिंदगी हुई हो और वो आत्महत्या को मजबूर हुआ हो. लेकिन बोर्ड को बच्चे की काबिलियत से ज्यादा मशीन पर विश्वास है कि मशीन से कोई गड़बड़ी नहीं हुई.

गौरतलब है कि एक छात्र जिसने 6ठीं मंजिल से कूदकर जान दी वो अपनी क्लास में अकेला ऐसा बच्चा था जिसने इस बार 85 प्रतिशतों से JEE की परीक्षा उत्तीर्ण की थी, लेकिन वो इंटरमीडिएट के गणित के पेपर में फेल था. वो ये बर्दाश्त नहीं कर सका कि वो 12वीं में फेल हो जाएगा.

माना कि कई छात्र अपनी नाकामी की वजह से फेल हुए होंगे, और कई लोगों ने इसलिए आत्महत्या की होगी कि वो अपनी असफलता पर शर्मिंदा हुए होंगे. लेकिन क्या इसे सही माना जा सकता है, जबकि प्राइवेट फर्म सॉफ्टवेयर में तकनीकी खराबी की बात स्वीकार भी कर चुकी थी, और खुद को बचाने के लिए ये भी कह दिया था कि उसे सुधार लिया गया था. क्या आत्महत्या उन बच्चों ने नहीं की जिन्हें खुद पर पूरा यकीन था? क्यों बोर्ड तकनीकी खामियों की बात को खारिज कर रहा है? और अगर ऐसा है तो फिर क्यों इन बच्चों की आत्महत्या को 'हत्या' नहीं माना जाए?

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पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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