परमाणु युद्ध के मुहाने पर खड़ी दुनिया और नोबेल शांति पुरस्कार...
नोबेल पुरस्कार समिति ने 'इंटरनेशनल कैंपेन टू एबोलिश न्यूक्लियर वेपन्स (आईसीएएन)' को ऐसे समय शांति का नोबेल पुरस्कार देने की घोषणा की है, जब उत्तर कोरिया न केवल परमाणु परीक्षण कर रहा है.
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इस समय संपूर्ण विश्व पर परमाणु युद्ध की प्रबल संभावनाएँ हैं. इसलिए नोबेल पुरस्कार समिति ने "इंटरनेशनल कैंपेन टू एबोलिश न्यूक्लियर वेपन्स (आईसीएएन)" को ऐसे समय शांति का नोबेल पुरस्कार देने की घोषणा की है, जब उत्तर कोरिया न केवल परमाणु परीक्षण कर रहा है, बल्कि हमले भी की धमकी भी दे रहा है. नोबेल शांति समिति की अध्यक्ष बेरिट रिस एंडरसन ने कहा, "आईसीएएन को यह पुरस्कार परमाणु हथियारों के इस्तेमाल से होने वाली त्रासदी की ओर ध्यान खींचने और वैश्विक संधि के जरिये ऐसे हथियारों पर रोक लगाने की दिशा में अभूतपूर्व प्रयास करने के लिए दिया जा रहा है. "आईसीएएन की स्थापना 2007 में वियना में की गई थी. फिलहाल 101 देशों के 468 गैरसरकारी संगठन इससे जुड़े हुए हैं. आईसीएएन दुनियाभर की समस्याओं को परमाणु हथियारों से पैदा हुए खतरे को लेकर आगाह कर रहा है. साथ ही इस अभियान के तहत परमाणु संपन्न देशों को नष्ट करने की अपील की जा रही है.
इस कैंपेन का असर यह हुआ कि इसी वर्ष 7 जुलाई 2017 को संयुक्त राष्ट्र के 122 सदस्य देशों ने परमाणु हथियारों को प्रतिबंधित करने वाली संधि को स्वीकार किया था. इसमें हालांकि भारत, अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन, ब्रिटेन, पाकिस्तान, उत्तर कोरिया और इजराइल शामिल नहीं हैं. आईसीएएन के प्रयास से संयुक्त राष्ट्र में पारित संधि "ट्रीटी ऑन द प्रोहिबिशन ऑफ न्यूक्लियर वेपंस (टीपीएनडब्लू) "परमाणु हथियारों को पूरी तरह से नष्ट करने की पहली अंतर्राष्ट्रीय संधि है.
इस संधि को संयुक्त राष्ट्र के 122 सदस्य देशों ने स्वीकार किया है, लेकिन जब 50 देश इसे हस्ताक्षरित और अनुमोदित करेंगे, तभी संधि प्रभावी होगी. नोबेल समिति द्वारा जारी बयान के मुताबिक 108 देशों ने संधि के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई है. इसके प्रभावी होने पर परमाणु हथियार भी बारुदी सुरंग, क्लस्टर आयुध और जैविक व रासायनिक हथियार की तरह कानूनी तौर पर प्रतिबंधित हो जाएंगे. एक आंकड़े के मुताबिक रूस के पास 7000, अमेरिका के पास 6800, फ्रांस के पास 300, चीन के पास130, भारत के पास 120 तथा इजराइल के पास 80 परमाणु हथियार हैं. ऐसे में परमाणु युद्ध के विकरालता को समझा जा सकता है. परमाणु बमों की लगातार धमकियों से स्थिति और बिगड़ रही है. यही कारण है कि आईसीएएन की कार्यकारी निदेशक बिट्रीस फेन (Beatrice Fihn) ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उत्तर कोरियाई तानाशाह किम जोंग को कड़ा संदेश दिया है. उन्होंने कहा, "परमाणु हथियार अवैध हैं. इनकी धमकी देना भी गैरकानूनी है. परमाणु हथियार रखना और उसका विकास अवैध है. इसे रोकने की जरूरत है."
जहाँ एक ओर मानवता की रक्षा के लिए परमाणु निशस्त्रीकरण की बात हो रही है, वहीं उत्तर कोरिया तथा महाशक्तियों हाइड्रोजन बम की ओर अग्रसर हो रही हैं. ऐसे में हाइड्रोजन बम के विनाशलीला को समझना आवश्यक है. हाल ही में सियोल के कुकमिन यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर ने न्यूयार्क जैसे बड़े शहर पर हाइड्रोजन बम से हमले की कल्पना कर संपूर्ण दुनिया को इसकी भयंकर विनाशलीला से परिचय कराया. अगर उत्तर कोरिया अपने हाइड्रोजन बम का प्रयोग न्यूयॉर्क जैसे शहर पर करता है, तो पूरा न्यूयॉर्क शहर तबाह हो जाएगा और एक भी आदमी जिंदा नहीं बचेगा. सियोल की कुकमिन यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर एंड्री बताते हैं कि एक हाइड्रोजन बम न्यूयॉर्क शहर को पूरी तरह से तबाह कर सकता है. धमाके के बाद एक भी व्यक्ति जीवित नहीं बचेगा, जबकि एक परमाणु बम से न्यूयार्क शहर का एक हिस्सा मैनहटन ही तबाह हो पाएगा.
ऐसे में आईसीएएन के परमाणु मुक्त विश्व के प्रयासों को शांति का नोबेल पुरस्कार दिया जाना, सर्वथा उचित, प्रशंसनीय व प्रासंगिक कदम है. आईसीएएन के इस कैंपेन की बदौलत ही दुनिया को परमाणु हथियारों से मुक्त कराने की दिशा में धीमी गति से ही सही पर गंभीर प्रयास शुरू हुए हैं. पूर्व में भी अमेरिका एवं रूस ने आपसी समझौतों के द्वारा भारी संख्या में अपने परमाणु जखीरे को घटाया है. सच तो यही है कि परमाणु हथियारों से दुनिया के खत्म होने का खतरा है. जब तक ये हथियार रहेंगे, खतरा बरकरार रहेगा. इसलिए सुरक्षित विश्व तथा मानवता के रक्षा के लिए परमाणु निशस्त्रीकरण अब अपरिहार्य हो चुका है.
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